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• वीतरागी विज्ञानमां जणातो––
विश्वना ज्ञेय पदार्थोनो स्वभाव *
[श्री प्रवचनसार गाथा ९९ उपरनां पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोनो सार]
कारतक वद ४ मंगळवार
द्रव्यो स्वभाव विषे अवस्थित, तेथी ‘सत्’ सौ द्रव्य छे; उत्पाद–ध्रौव्य–विनाशयुत परिणाम द्रव्यस्वभाव छे. ९९.
आ गाथा अलौकिक छे. आ गाथामां आचार्यदेवे वस्तुना स्वभावनुं रहस्य मूकी दीधुं छे. उत्पाद–
व्ययध्रुवयुक्त परिणाम ते वस्तुनो स्वभाव छे ने ते स्वभावमां द्रव्य नित्य अवस्थित छे, तेथी द्रव्य सत् छे.
अहीं द्रव्यना समय समयना परिणाममां उत्पाद–व्यय–धु्रव समजाववा माटे आचार्यदेव क्षेत्रनो दाखलो
आपे छे. द्रव्यनुं (आत्मानुं) असंख्यप्रदेशी क्षेत्र एक साथे पहोळुं–पथरायेलुं छे तेथी ते झट लक्षमां आवे, माटे
ते क्षेत्रनो दाखलो आपीने परिणामनां उत्पाद–व्यय–धु्रव समजावे छे.
जेम द्रव्यने आखा विस्तारक्षेत्र तरीके लक्षमां ल्यो तो तेनुं वास्तु (क्षेत्र) एक छे, तेम आखा द्रव्यना
त्रणे काळना समय समयना परिणामोने एक साथे लक्षमां ल्यो तो तेनी वृत्ति एक छे; छतां, जेम क्षेत्रमां
प्रदेशक्रम छे तेम द्रव्यना परिणमनमां प्रवाहक्रम छे. द्रव्यना विस्तारक्रमनो अंश ते प्रदेश छे तेम द्रव्यना
प्रवाहक्रमनो अंश ते परिणाम छे.
जुओ, आ ज्ञेय अधिकार छे. बधांय ज्ञेयो सत् छे, ने तेने जाणनारुं ज्ञान छे. बधांय ज्ञेयो जेम छे तेम
एक साथे ज्ञानमां जणाय छे. अहीं आत्मा ज्ञाननो सागर छे अने सामे स्व–पर समस्त ज्ञेयोनो सागर पड्यो
छे. बस, आमां एकली वीतरागता ज आवी, ज्ञेयमां ‘आ आम केम’ एवो राग–द्वेष के फेरफार करवानुं न रह्युं.
अहो! आचार्यदेवे गाथाए गाथाए वीतरागी सुखडीना थर नांख्या छे, एकेक गाथामांथी वीतरागतानां
चोसलां नीकळे छे.
समयसारना सर्वविशुद्धज्ञानअधिकारमां द्रव्य पोताना क्रमबद्ध परिणामथी ऊपजे छे–ए वात करीने त्यां
सम्यग्दर्शननो आखो विषय बताव्यो छे– द्रव्यद्रष्टि करावी छे. अने अहीं ज्ञानप्रधान कथन छे तेथी, बधां द्रव्यो
परिणमन स्वभावमां रहेलां छे–एम कहीने पूर्ण ज्ञान अने पूर्ण ज्ञेय बताव्यां छे; एवा सर्व ज्ञेयोना स्वभावनी
अने तेने जाणनारा ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा करवी ते सम्यग्दर्शन छे.
कारतक वद प बुधवार
दरेक आत्मा, दरेक परमाणु अने धर्मास्तिकाय वगेरे द्रव्यो छूटा छूटा स्वयंसिद्ध पदार्थ छे. सामान्यपणे
जोतां ते दरेक द्रव्यनुं क्षेत्र अखंड एक छे, छतां ते क्षेत्रना विस्तारनो जे सूक्ष्म अंश ते प्रदेश छे. छ द्रव्योमांथी
परमाणु अने काळनुं तो क्षेत्र एकप्रदेश ज छे. आत्मानुं असंख्यप्रदेशी क्षेत्र छे. ते क्षेत्र समग्रपणा वडे एक होवा
छतां तेनो छेल्लो अंश ते प्रदेश छे. ए प्रमाणे अहीं क्षेत्रनुं तो द्रष्टांत छे, ने सिद्धांत तरीके वस्तुना उत्पाद–
व्यय–धु्रव परिणाम समजाववा छे. जेम असंख्यप्रदेशी विस्तार एक साथे लेतां द्रव्यनुं क्षेत्र एक छे तेम एकेक
द्रव्यनी अनादि–अनंत परिणमनधारा समग्रपणा वडे एक छे. ने ते आखा प्रवाहनो नानामां नानो एक अंश
ते परिणाम छे. एकेक परिणामने जुदो पाड्या वगर समग्रपणे द्रव्यना अनादिअनंत प्रवाहने जोतां ते एक छे;
अनादि निगोदथी मांडीने अनंत सिद्धदशा सुधी द्रव्यनो परिणमनप्रवाह एक ज छे. जेम आखुं क्षत्र पथरायेलुं
एक साथे पड्युं छे, तेमां प्रदेशभेदथी न जुओ तो द्रव्यनुं क्षेत्र एक ज छे. तेम त्रिकाळी द्रव्यना प्रवाहमां
परिणामनो भेद न पाडो तो आखो य प्रवाह एक ज छे, अने ते त्रिकाळीक प्रवाहक्रमनो एकेक अंश ते
परिणामो छे.
अहीं प्रदेशोनो विस्तारक्रम ते क्षेत्र अपेक्षाए छे ने परिणामोनो प्रवाहक्रम ते परिणमन अपेक्षाए छे.