Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ४४: : आत्मधर्म: ८७
अहीं क्षेत्रनुं द्रष्टांत आपीने आचार्यदेव परिणामोनुं स्वरूप समजाववा मांगे छे.
आ, ज्ञानमां जणावायोग्य ज्ञेय पदार्थोनुं वर्णन छे. कोई कहे के आवी सूक्ष्म वात केम जणाय?–पण
भाई, ए बधां ज्ञेयो छे माटे जरूर जणाय तेवां छे, ने तारो ज्ञानस्वभाव बधां ज्ञेयोने जाणे तेवो छे. आत्मा
ज्ञाता छे ने पोते स्वज्ञेय पण छे. तथा अन्य जीव–पुद्गलादि परज्ञेयो छे. ते ज्ञान अने ज्ञेयने केवां प्रतीतिमां
लेवाथी सम्यक्त्व थाय तेनी आ वात छे.
धर्मास्तिकाय वगेरेना असंख्य प्रदेशो एम ने एम पड्या–पाथर्या छे, आकाशना अनंत प्रदेशो एम ने
एम पड्या–पाथर्या छे, तेमां कदी एक पण प्रदेशनो क्रम आडो–अवळो थतो नथी; तेम द्रव्यनो अनादिअनंत
प्रवाहक्रम पण कदी तूटतो नथी. प्रवाहक्रम कहीने आचार्यदेवे अनादिअनंत ज्ञेयने एक साथे स्तब्ध बतावी दीधां
छे. ‘प्रवाहक्रम’ कहेतां बधाय परिणामोनो क्रम व्यवस्थित ज छे, कोई पण परिणाम–कोई पण पर्याय आडा–
अवळा थता ज नथी. आ प्रतीतिमां ज द्रव्यद्रष्टि अने वीतरागता छे.
समय समयना परिणामोनो एकदम सूक्ष्म सिद्धांत समजाववा माटे प्रदेशोनो दाखलो आप्यो छे ते पण
सूक्ष्म पडे एवो छे. अंदर पोताना लक्षमां जो वस्तुनो ख्याल आवे तो समजाय तेवुं छे. ‘आ स्वरूप आ रीते
कहेवा मांगे छे’ एम पोताने अंदर भास थवो जोईए. जुओ, समजवा माटे सीडीनुं द्रष्टांत लईए: जेम क्षेत्रथी
जोतां आखी सीडी एम ने एम पडी छे, तेनो एक नानो अंश ते प्रदेश कहेवाय; तेम ज सीडीनी लंबाईथी जोतां
एक पछी एक पगथियांनो प्रवाह छे, आखी सीडीनो प्रवाह एक छे, अने तेनुं एकेक पगथियुं ते तेना प्रवाहनो
अंश छे. ते पगथियाना प्रवाहनो क्रम तूटे नहि. बे पगथियां वच्चे पण झीणा झीणा भाग पाडो तो अनेक
भाग पडे छे, ते चडतो चडतो एकेक सूक्ष्म भाग ते परिणाम समजवो. तेम आत्मा असंख्य प्रदेशमां पथरायेलो
एक छे, ने तेना क्षेत्रनो एकेक अंश ते प्रदेश छे; तेम ज आखा द्रव्यनी हयाती अनादि–अनंत प्रवाहपणे एक छे
ने ते प्रवाहनो एकेक समयनो अंश ते परिणाम छे. ते परिणामोनो प्रवाहक्रम सीडीना पगथियांनी जेम क्रमबद्ध
छे, ते परिणामोनो क्रम आघोपाछो न थाय. एटले बधुं य जेम छे तेम जाणवानो ज आत्मानो स्वभाव छे. ए
सिवाय वच्चे बीजुं कांई घाले तो तेने वस्तुना सत् स्वभावनी श्रद्धा नथी. अने वस्तु जेम होय तेम जाणे–माने
तो ज्ञान–श्रद्धा साचां थाय ने! वस्तु होय तेना करतां बीजी रीते माने तो ज्ञान–श्रद्धा साचां थाय नहि एटले
धर्म थाय नहि.
अहीं क्षेत्रना द्रष्टांते परिणामनुं स्वरूप समजाव्युं छे.
जेम द्रव्यनुं क्षेत्र ते विस्तार, ने विस्तारक्रमना अंशो ते प्रदेशो. तेम द्रव्यनुं परिणमन ते प्रवाह, ने
प्रवाहक्रमना अंशो ते परिणामो.
ए प्रमाणे क्षेत्रना द्रष्टांते परिणामो सिद्ध करीने एक वात पूरी करी. हवे ते परिणामोनो एकबीजामां
अभाव बतावे छे. ‘जेम विस्तारक्रमनुं कारण प्रदेशोनो परस्पर व्यतिरेक छे, तेम प्रवाहक्रमनुं कारण
परिणामोनो परस्पर व्यतिरेक छे.’
द्रव्यमां विस्तारक्रम एटले के क्षेत्र अपेक्षाए पहोळाईनुं कारण प्रदेशोनुं परस्पर जुदापणुं छे. पहेला
प्रदेशनो बीजामां अभाव, बीजानो त्रीजामां अभाव–एम प्रदेशोना भिन्न भिन्नपणा वडे विस्तारक्रम रचायेलो
छे. जो प्रदेशोनो एकबीजामां अभाव न होय, ने एक प्रदेश ते बीजा प्रदेशमां पण भावपणे वर्ततो होय एटले
के बधा थईने एक ज प्रदेश होय तो द्रव्यनो विस्तार ज न थाय, पण द्रव्य एक ज प्रदेशी थई जाय. माटे
विस्तारक्रम कहेतां ज प्रदेशो एकबीजापणे नथी एम आवी जाय छे. ‘विस्तारक्रम’ ते अनेकता सूचवे छे, केम के
एकमां क्रम न होय. हवे अनेकता क्यारे नक्की थाय? के बधामां एकता न होय पण भिन्नता होय, तो ज
अनेकता नक्की थाय, ने अनेकता होय तो ज विस्तारक्रम होय; माटे विस्तारक्रमनुं कारण प्रदेशोनो परस्पर
व्यतिरेक छे.
ए ज प्रमाणे विस्तारक्रमनी जेम प्रवाहक्रमनुं स्वरूप हवे कहेवाय छे. ‘प्रवाहक्रम’ कहेतां ज परिणामोनी
अनेकता साबित थाय छे, अने परिणामोनी अनेकता कहेतां ज एकनो बीजामां अभाव साबित थाय छे. केम के
जो एकनो बीजामां अभाव होय तो ज अनेकपणुं थाय. जो तेम न होय तो तो बधुं एक ज थई जाय. माटे
विस्तारक्रममां जेम एक प्रदेशनो