ज्ञाता छे ने पोते स्वज्ञेय पण छे. तथा अन्य जीव–पुद्गलादि परज्ञेयो छे. ते ज्ञान अने ज्ञेयने केवां प्रतीतिमां
प्रवाहक्रम पण कदी तूटतो नथी. प्रवाहक्रम कहीने आचार्यदेवे अनादिअनंत ज्ञेयने एक साथे स्तब्ध बतावी दीधां
छे. ‘प्रवाहक्रम’ कहेतां बधाय परिणामोनो क्रम व्यवस्थित ज छे, कोई पण परिणाम–कोई पण पर्याय आडा–
अवळा थता ज नथी. आ प्रतीतिमां ज द्रव्यद्रष्टि अने वीतरागता छे.
कहेवा मांगे छे’ एम पोताने अंदर भास थवो जोईए. जुओ, समजवा माटे सीडीनुं द्रष्टांत लईए: जेम क्षेत्रथी
एक पछी एक पगथियांनो प्रवाह छे, आखी सीडीनो प्रवाह एक छे, अने तेनुं एकेक पगथियुं ते तेना प्रवाहनो
अंश छे. ते पगथियाना प्रवाहनो क्रम तूटे नहि. बे पगथियां वच्चे पण झीणा झीणा भाग पाडो तो अनेक
भाग पडे छे, ते चडतो चडतो एकेक सूक्ष्म भाग ते परिणाम समजवो. तेम आत्मा असंख्य प्रदेशमां पथरायेलो
एक छे, ने तेना क्षेत्रनो एकेक अंश ते प्रदेश छे; तेम ज आखा द्रव्यनी हयाती अनादि–अनंत प्रवाहपणे एक छे
ने ते प्रवाहनो एकेक समयनो अंश ते परिणाम छे. ते परिणामोनो प्रवाहक्रम सीडीना पगथियांनी जेम क्रमबद्ध
छे, ते परिणामोनो क्रम आघोपाछो न थाय. एटले बधुं य जेम छे तेम जाणवानो ज आत्मानो स्वभाव छे. ए
सिवाय वच्चे बीजुं कांई घाले तो तेने वस्तुना सत् स्वभावनी श्रद्धा नथी. अने वस्तु जेम होय तेम जाणे–माने
तो ज्ञान–श्रद्धा साचां थाय ने! वस्तु होय तेना करतां बीजी रीते माने तो ज्ञान–श्रद्धा साचां थाय नहि एटले
जेम द्रव्यनुं क्षेत्र ते विस्तार, ने विस्तारक्रमना अंशो ते प्रदेशो. तेम द्रव्यनुं परिणमन ते प्रवाह, ने
परिणामोनो परस्पर व्यतिरेक छे.’
छे. जो प्रदेशोनो एकबीजामां अभाव न होय, ने एक प्रदेश ते बीजा प्रदेशमां पण भावपणे वर्ततो होय एटले
के बधा थईने एक ज प्रदेश होय तो द्रव्यनो विस्तार ज न थाय, पण द्रव्य एक ज प्रदेशी थई जाय. माटे
विस्तारक्रम कहेतां ज प्रदेशो एकबीजापणे नथी एम आवी जाय छे. ‘विस्तारक्रम’ ते अनेकता सूचवे छे, केम के
एकमां क्रम न होय. हवे अनेकता क्यारे नक्की थाय? के बधामां एकता न होय पण भिन्नता होय, तो ज
अनेकता नक्की थाय, ने अनेकता होय तो ज विस्तारक्रम होय; माटे विस्तारक्रमनुं कारण प्रदेशोनो परस्पर
व्यतिरेक छे.
विस्तारक्रममां जेम एक प्रदेशनो