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बीजामां अभाव छे तेम प्रवाहक्रममां एक परिणामनो बीजामां अभाव छे. अने ए प्रमाणे परिणामोमां एकना
बीजामां अभावथी अनादिअनंत प्रवाहक्रम रचायेलो छे. आवो द्रव्यनो स्वभाव छे, आवा परिणामस्वभावमां
द्रव्य रहेलुं छे.
अहीं विस्तारक्रम तो द्रष्टांतरूप छे ने प्रवाहक्रम सिद्धांतरूप छे. द्रष्टांत सर्वप्रकारे लागु न पडे. पुद्गल अने
काळद्रव्यनो तो विस्तार एकप्रदेशी ज छे तेथी तेमां प्रदेशोना परस्पर व्यतिरेकनुं द्रष्टांत लागु न पडे, पण
प्रवाहक्रमनो जे सिद्धांत छे ते तो बधाय द्रव्योमां एकसरखी रीते लागु पडे छे.
जेम २५ ओरडाना विस्तारवाळी ओसरी क्यारे थाय? के जो ते ओरडाओ क्रमसर एकबीजाथी जुदा
जुदा होय तो. तेम आत्मामां असंख्यप्रदेशी विस्तारवाळुं क्षेत्र क्यारे थाय? के जो एक प्रदेशनो बीजा प्रदेशमां
अभाव होय ने ते बधा प्रदेशो विस्तारक्रममां सळंगपणे एकबीजानी साथे संकळायेला होय.
ए ज प्रमाणे (प्रदेशोना विस्तारक्रमनी जेम) द्रव्यनो अनादि–अनंत लांबो प्रवाहक्रम क्यारे थाय? के
जो एक परिणामनो बीजा परिणाममां अभाव होय तो. पहेलो परिणाम बीजा परिणाममां नथी, बीजो
त्रीजामां नथी–एम परिणामोमां व्यतिरेक होवाथी द्रव्यमां प्रवाहक्रम छे. द्रव्यना अनादिअनंत प्रवाहमां एक
पछी एक परिणाम क्रमे थया करे छे; आवा द्रव्यो ते ज्ञेयो छे. ज्ञेयद्रव्यनी जेम छे तेम प्रतीत करतां श्रद्धामां
निर्विकल्पता अने वीतरागता थाय ते मोक्षनो मार्ग छे.
अहो! एक ज द्रव्यना एक परिणाममां बीजा परिणामनो पण ज्यां अभाव छे त्यां एक द्रव्यनी
अवस्थामां बीजुं द्रव्य कांई करे ए वात तो क्यां ऊभी ज रहे छे? एक तत्त्व बीजा तत्त्वमां कांई करे अथवा
तो एक द्रव्यना क्रम परिणामोमां फेरफार करी शकाय–एम जे माने छे तेने ज्ञेयतत्वनी खबर नथी तेम ज
ज्ञेयोने जाणनारा पोताना ज्ञानतत्त्वनी पण खबर नथी.
कोई एम माने के ‘में मारी बुद्धिथी पैसा मेळव्या.’ तो तेम नथी. केम के बुद्धिना जे परिणाम थया ते
आत्माना प्रवाहक्रममां आवेलो परिणाम छे ने पैसा आव्या ते पुद्गलना प्रवाहक्रममां आवेलो पुद्गलनो
परिणाम छे. बंने द्रव्यो पोतपोताना प्रवाहक्रममां भिन्नभिन्नपणे वर्ती रह्यां छे. आत्मा पोताना
परिणामप्रवाहमां रहेलो छे, ने जडपदार्थो जडना परिणाम–प्रवाहमां रहेलां छे. बंने पदार्थोनुं भिन्न भिन्न
अस्तित्व छे. जेणे पदार्थोनुं आवुं स्वरूप जाण्युं तेने ‘हुं परमां कांई फेरफार करुं के परना कारणे मारामां कांई
फेरफार थाय’–एवी मिथ्याबुद्धि तो टळी गई, एटले ते बधां द्रव्योनो ज्ञाता रही गयो. केवळी भगवान
वीतरागपणे बधाना ज्ञाता छे तेम आ पण ज्ञाता ज छे. हजी साधक छे तेथी अस्थिरताना राग–द्वेष थाय छे
परंतु ते पण ज्ञातानुं ज्ञेय छे, ज्ञान अने रागनी एकता पूर्वक राग–द्वेष थता नथी पण ज्ञानना ज्ञेयपणे राग–
द्वेष थाय छे. एटले अभिप्रायथी (श्रद्धाथी) तो ते साधक पण पूरो ज्ञाता ज छे.
यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणतां पोते छए द्रव्योनो ज्ञाता थई गयो ने छए द्रव्यो ज्ञानमां ज्ञेय थया. आ
तरफ पोते एक ज्ञाता, अने सामे छए द्रव्यो ज्ञेय, एम ज्ञातापणुं बताववा ‘स्वात्मानुभव मनन’ मां कह्युं छे के
आत्मा सप्तम द्रव्य हो जाता है.
अहो! ज्ञान ज्ञाता तरीके छे, ते ज्ञाननी प्रतीत ते निर्विकल्प सम्यक्त्वनुं कारण छे. समये समये उत्पाद–
व्ययधु्रवरूप आवा द्रव्यस्वभावने नक्की करे तो ज्ञान जाणवानुं ज काम करे; ने ज्ञेयमां ‘आम केम’ एवो
मिथ्याबुद्धिनो विकल्प न आवे. अस्थिरतानो विकल्प आवे ते तो ज्ञाननुं ज्ञेय थई जाय छे, केम के ज्ञानमां
स्वपरप्रकाशक सामर्थ्य प्रगटी गयुं एटले ते रागने पण ज्ञानथी भिन्न ज्ञेय तरीके जाणे छे, एटले ते विकल्पमां
‘आवो विकल्प केम?’ एवुं विकल्पनुं जोर आवतुं नथी, परंतु ‘आ राग पण ज्ञेयपणे सत् छे’ एम ज्ञान जाणी
ल्ये छे एटले ज्ञाननी ज अधिकता रहे छे,–बीजी रीते कहीए तो ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान थई जाय छे. अने
पछी पण एवा ज्ञानस्वभावना आधारे ज्ञेयोने जाणतां ते ज्ञाननो विकास थईने तेनी सूक्ष्मता अने
वीतरागता वधती जाय छे, ने क्रमेक्रमे पूर्ण वीतरागता अने केवळज्ञान थतां आखो लोकालोक ज्ञेयपणे एक
साथे ज्ञानमां डूबी जाय छे.–एवो आ अधिकार छे.
अहीं आत्मामां केवळज्ञाननुं आखुं दळ, ने सामे लोकालोक ज्ञेयनुं दळ. बस! ज्ञेय–ज्ञायक स्वभाव रही
गयो. ज्ञेय–ज्ञायकपणामां राग–द्वेष करवानुं के फेरफार करवानुं