केवळज्ञाननां बीजडां छे.
हयाती अपेक्षाए एकपणुं ने परिणामोनी अपेक्षाए अनेकपणुं–एम सत्मां एक–अनेकपणुं पण साबित कर्युं.
ए प्रमाणे बे वात सिद्ध करी, तेनो विस्तार करीने हवे तेमांथी उत्पाद–व्यय–धु्रव काढे छे.
“जेम ते प्रदेशो पोताना स्थानमां स्व–रूपथी उत्पन्न ने पूर्वरूपथी विनष्ट होवाथी तथा सर्वत्र (बधेय)
तेम ते परिणामो पोताना अवसरमां स्व–रूपथी उत्पन्न ने पूर्वरूपथी विनष्ट होवाथी तथा सर्वत्र परस्पर
अनुस्यूतिथी रचायेला एकप्रवाहपणा वडे अनुत्पन्न–अविनष्ट होवाथी उत्पत्ति–संहार–ध्रौव्यात्मक छे.”
प्रश्न:– आ शुं विषय चाले छे?
उत्तर:– आ वस्तुना स्वभावनी वात चाले छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप परिणाम ते पदार्थोनो स्वभाव छे,
करी गया के–द्रव्यनी वृत्ति अनादिअनंत अखंडपणे एक होवा छतां, तेना प्रवाहक्रमनो अंश ते परिणाम छे. ते
ते परिणामो एकबीजामां प्रवर्तता नथी पण तेमनो एकबीजामां अभाव छे. तेमांथी हवे विस्तार करीने उत्पाद–
व्यय–धु्रव काढे छे. तेमां पण पहेलांं क्षेत्रनुं द्रष्टांत आपे छे.
पोतापणे उत्पादरूप छे ने पूर्वना प्रदेशनी अपेक्षाए व्ययरूप छे, ए रीते बधाय प्रदेशो उत्पादव्ययरूप छे ने सर्व
प्रदेशोनो विस्तार साथे लेतां द्रव्यना प्रदेशो धु्रवरूप छे. ए रीते ते बधाय प्रदेशो एक समयमां उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप
छे. (अहीं प्रदेशोनां जे उत्पाद–व्यय–धु्रव कह्या छे ते क्षेत्र अपेक्षाए समजवां.) तेना दाखले समय समयना
परिणामोमां पण उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं छे. अनादिअनंत एक प्रवाहनी अपेक्षाए परिणामो उत्पत्ति–विनाशरहित
धु्रव छे, ने ते परिणामो पोतपोताना स्वकाळमां उत्पादरूप छे तथा पूर्वपरिणाम अपेक्षाए व्ययरूप छे. ए रीते
बधाय परिणामो उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे. ने एवा उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप परिणामो ते वस्तुनो स्वभाव छे.
स्वभावनी छे. पण अहीं आत्मानी मुख्यताथी वात करवामां आवे छे.
अखंड धारावाही प्रवाह तरीके तेओ उत्पन्न के विनष्ट नथी, एटले ते परिणामो उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप छे.
बेसे तेवी नथी. आनी प्रतीतमां सम्यग्दर्शन छे, ने चोसठ पोरी पीपर घूंटाती होय तेम, आना घूंटणमां एकली
वीतरागता ज घूंटाय छे. अहो! अद्भुत वात मूकी छे.