नक्की करे तो पोताना ज्ञायकपणानी प्रतीति थई जाय. द्रव्यना दरेक परिणामने पोतपोतानो अवसर भिन्न छे.
सामे त्रणकाळना परिणामो एक साथे ज्ञेय छे ने अहीं आत्मा तेनो जाणनार छे. आवा ज्ञेयज्ञायकपणामां वच्चे
राग न रह्यो, एकली वीतरागता ज आवी. पहेलां आवी श्रद्धा करतां वीतरागी श्रद्धा थाय छे ने पछी
ज्ञानस्वभावमां स्थिरता थतां वीतरागी चारित्र थाय छे.
तो परिणाम थाय, के निमित्तने लीधे अहीं परिणाममां फेरफार थाय, कर्मना उदयथी विकार थाय, के व्यवहार
करतां करतां परमार्थ प्रगटे, अथवा तो पर्यायना आधारे पर्याय थाय’–एवी कोई वात ऊभी रहेती नथी. बधा
परिणामो पोतपोताना अवसरे द्रव्यमांथी प्रगटे छे. ज्यां द्रव्यना दरेक परिणामो पोतपोताना अवसरे ‘सत्’ छे
त्यां वळी निमित्त सामे जोवानुं ज क्यां रह्युं?–अने ‘हुं परमां फेरफार करुं के परथी मारामां फेरफार थाय’ –ए
वात पण क्यां रही? –मात्र ज्ञाता अने ज्ञेयपणुं ज रहे छे, ए ज मोक्षनो मार्ग छे, ए ज सम्यक् पुरुषार्थ छे.
दरेक परिणाम पोतपोताना अवसरमां सत् छे. आमां त्रणकाळना परिणामोनी एक सळंग सांकळ लईने
उत्पाद–व्यय–धु्रवनी वात करी छे. द्रव्य पोताना परिणामस्वभावमां रहेलुं छे. अत्यारे परिणामनो स्वभाव शुं
छे ते वात चाले छे. पहेलांं परिणामोनो उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभाव साबित करे छे; अने पछी, द्रव्य ते
परिणाम–स्वभावमां रहेलुं होवाथी ते द्रव्य पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं सत् छे–एम छेल्ले साबित करशे. ज्ञाता,
वस्तुना आवा स्वभावने जाणे ने ज्ञेयोमां फेरफार करवानुं न माने ते सम्यक्त्व छे, ने पदार्थोना स्वभावनो
ज्ञाता रहे तेमां वीतरागता छे.
थता त्रणकाळना परिणामो ते ज्ञेयो छे,–आवी प्रतीति करतां क्यांय फेरफार के आघुंपाछुं करवानी बुद्धि न रही,–
राग–द्वेषनी बुद्धि न रही, एटले ज्ञान स्वमां ठर्युं. आ ज वीतरागता अने केवळज्ञाननुं कारण छे.
उत्पाद्–व्यय–धु्रववाळुं छे. आवा द्रव्यना सत् स्वभावनी प्रतीति करवी ते सम्यग्दर्शन छे. ए ज खरुं
अद्धरथी थता नथी पण परिणामीना परिणाम छे; एटले परिणामनो निर्णय करतां परिणामी द्रव्यनो ज निर्णय
थाय छे, ने एकला परिणाम उपरथी रुचि खसीने त्रिकाळी द्रव्य–स्वभाव तरफ रुचि अने ज्ञान वळे छे,–ए ज
सम्यग्दर्शन अने वीतरागतानुं मूळ छे.
पण उत्पाद–व्यय–धु्रववाळुं छे–एम आ गाथामां सिद्ध करवुं छे.
(१) टीकामां, पहेलांं तो द्रव्यमां समग्रपणा वडे अनादि–