Atmadharma magazine - Ank 088
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ७८ : आत्मधर्म : ८८
परनुं लक्ष होय छे ने अशुभभाव थाय तेमां स्त्री, पुत्र, शरीरादि परनुं लक्ष होय छे. कोई पण शुभ–
अशुभभाव थाय ते परनी सन्मुखताथी थाय छे, आत्मानी सन्मुखताथी शुभाशुभभावनी उत्पत्ति थती नथी
पण शुद्ध भावनी ज उत्पत्ति थाय छे. पोताना स्वरूपमां लीन न रही शके त्यारे धर्मीने पण परद्रव्यने अनुसार
शुभ–अशुभ परिणाम थाय छे, अने अशुभथी बचवा पूजा–भक्ति–स्वाध्याय वगेरे शुभभाव थाय छे. जो
शुभ–अशुभ भाव न ज थाय तो तो वीतराग–केवळी थई जाय अथवा जो परद्रव्यनी सन्मुखता वखते
शुभभाव न थाय तो अशुभभाव थाय केमके परद्रव्यना लक्षे कां शुभ होय ने कां अशुभ होय. धर्मीने नीचली
दशामां अशुभथी बचवा पुरतो शुभभाव थाय छे पण ते परना अवलंबने थाय छे, तेमां धर्म नथी. आत्माना
स्वभावना अवलंबने जो शुभाशुभभावो थता होय तो ते भावो आत्मानो स्वभाव ज थई जाय, अने ते कदी
टळी शके नहि. आत्माना स्वभावमां पुण्य–पाप नथी तेथी आत्मस्वभावने अनुसरतां पुण्य–पापनी उत्पत्ति
थती नथी.
आत्माधीन परिणतिथी पुण्य–पाप उपजतां नथी पण ते बंने भावो कर्मना मंद–तीव्र उदय दशामां रहेला
परद्रव्य अनुसार परिणतिने आधीन थवाथी ज प्रवर्ते छे, तेमां धर्म नथी. आत्मा स्वद्रव्यने आधीन न परिणमे
अने परद्रव्य अनुसार परिणति करे तो ते बंधनुं ज कारण छे. अज्ञानीने स्वद्रव्य अने परद्रव्यनी भिन्नतानुं
भान नथी एटले ते तो श्रद्धा अपेक्षाए पण परद्रव्यअनुसार ज परिणमे छे. धर्मी जीवने स्वाधीन
आत्मतत्त्वनी द्रष्टि होवाथी श्रद्धा अपेक्षाए तो ते स्वद्रव्यअनुसार ज परिणमे छे, छतां हजी संपूर्णपणे
स्वरूपमां ठरातुं नथी त्यां अस्थिरताथी परद्रव्यअनुसार परिणतिने आधीन थईने परिणमे छे तेटली
शुभाशुभभावनी उत्पत्ति छे.
अहीं श्री आचार्यदेवे सिद्धांत मूक्यो छे के स्वद्रव्य अनुसार परिणमवुं ते शुद्धतानुं कारण छे ने परद्रव्य
अनुसार परिणमवुं ते ज अशुद्धतानुं कारण छे. कोई कर्म के कुदेवादि परवस्तुओ आत्माने अशुद्धतानुं कारण
नथी पण ते परद्रव्यने अनुसार परिणमवुं ते एक ज अशुद्धतानुं कारण छे.
‘परद्रव्यानुसार परिणतिने आधीन’ एटले शुं? कांई पहेलांं परद्रव्य अनुसार परिणति थई ने पछी आत्मा
तेने आधीन थयो–एम नथी; पण आत्मा स्वद्रव्यने अनुसार परिणति चूक्यो ते ज वखते परद्रव्यने अनुसार
परिणतिने आधीन थयो छे. परद्रव्य अनुसार परिणति थवानो अने तेने आधीन थवानो काळ जुदो नथी.
आत्मा पोते जो परद्रव्यने अनुसार परिणमे तो ज अशुद्धता थाय छे, जो स्वद्रव्य अनुसार परिणमे तो
अशुद्धता थती नथी. एटले, ‘आत्माए पूर्वे अशुद्धभावथी जे कर्मो बांध्या ते कर्म ज्यारे उदयमां आवे त्यारे
एक वार तो तेमां जोडाईने विकार करवो ज पडे’–आम कोई अज्ञानी माने छे ते वात तद्न जूठी छे; केम के ते
वखते पण जो आत्मा स्वद्रव्यने आधीनपणे परिणमे तो तेने अशुद्धता थती नथी ने कर्मनो उदय पण टळी
जाय छे.
(१७) राग–द्वेष टाळवा–एटले शुं?
वळी कोई अज्ञानी एम माने छे के पहेला समये जे राग–द्वेष थया तेने बीजा समये टाळवा. जुओ,
आमां पण पर्यायद्रष्टिनी सूक्ष्म भूल छे. शुं पहेला समयना राग–द्वेष बीजा समये विद्यमान छे? तारे कोने
टाळवा छे? पहेला समयना राग–द्वेषनो बीजा समये तो अभाव थई ज जाय छे, तेने टाळवा पडता नथी.
राग–द्वेष टाळवा उपर जेनी द्रष्टि छे ते पण मिथ्याद्रष्टि छे. खरेखर राग–द्वेषने टाळवा पडता नथी पण बीजा
समये पोते स्वभावने आधीन परिणमे तो रागद्वेषनी उत्पत्ति ज थती नथी, एटले राग–द्वेषने टाळ्‌या एम
उपचारथी कहेवाय छे. स्वभावद्रष्टि करीने तेना आश्रये परिणमतां शुद्धतानो उत्पाद थाय छे ने अशुद्धतानो
उत्पाद ज थतो नथी. एटले स्वभावनी द्रष्टि प्रगट करीने स्वभावना आश्रये परिणमवुं ते ज धर्म छे.
आत्म–मार्ग
यथार्थ आत्मस्वरूपने समज्या विना देहादिनी क्रियानी वातो अने तेना
झगडामां जगत रोकाई रहे छे. आत्ममार्ग तो अंर्तअनुभवमां छे. अनादिनी ऊंधाईथी
जीवे जे मान्युं छे ते साचुं नथी.
–समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ८६