अशुभभाव थाय ते परनी सन्मुखताथी थाय छे, आत्मानी सन्मुखताथी शुभाशुभभावनी उत्पत्ति थती नथी
पण शुद्ध भावनी ज उत्पत्ति थाय छे. पोताना स्वरूपमां लीन न रही शके त्यारे धर्मीने पण परद्रव्यने अनुसार
शुभ–अशुभ परिणाम थाय छे, अने अशुभथी बचवा पूजा–भक्ति–स्वाध्याय वगेरे शुभभाव थाय छे. जो
शुभभाव न थाय तो अशुभभाव थाय केमके परद्रव्यना लक्षे कां शुभ होय ने कां अशुभ होय. धर्मीने नीचली
दशामां अशुभथी बचवा पुरतो शुभभाव थाय छे पण ते परना अवलंबने थाय छे, तेमां धर्म नथी. आत्माना
स्वभावना अवलंबने जो शुभाशुभभावो थता होय तो ते भावो आत्मानो स्वभाव ज थई जाय, अने ते कदी
टळी शके नहि. आत्माना स्वभावमां पुण्य–पाप नथी तेथी आत्मस्वभावने अनुसरतां पुण्य–पापनी उत्पत्ति
थती नथी.
अने परद्रव्य अनुसार परिणति करे तो ते बंधनुं ज कारण छे. अज्ञानीने स्वद्रव्य अने परद्रव्यनी भिन्नतानुं
भान नथी एटले ते तो श्रद्धा अपेक्षाए पण परद्रव्यअनुसार ज परिणमे छे. धर्मी जीवने स्वाधीन
आत्मतत्त्वनी द्रष्टि होवाथी श्रद्धा अपेक्षाए तो ते स्वद्रव्यअनुसार ज परिणमे छे, छतां हजी संपूर्णपणे
स्वरूपमां ठरातुं नथी त्यां अस्थिरताथी परद्रव्यअनुसार परिणतिने आधीन थईने परिणमे छे तेटली
शुभाशुभभावनी उत्पत्ति छे.
नथी पण ते परद्रव्यने अनुसार परिणमवुं ते एक ज अशुद्धतानुं कारण छे.
एक वार तो तेमां जोडाईने विकार करवो ज पडे’–आम कोई अज्ञानी माने छे ते वात तद्न जूठी छे; केम के ते
वखते पण जो आत्मा स्वद्रव्यने आधीनपणे परिणमे तो तेने अशुद्धता थती नथी ने कर्मनो उदय पण टळी
वळी कोई अज्ञानी एम माने छे के पहेला समये जे राग–द्वेष थया तेने बीजा समये टाळवा. जुओ,
टाळवा छे? पहेला समयना राग–द्वेषनो बीजा समये तो अभाव थई ज जाय छे, तेने टाळवा पडता नथी.
राग–द्वेष टाळवा उपर जेनी द्रष्टि छे ते पण मिथ्याद्रष्टि छे. खरेखर राग–द्वेषने टाळवा पडता नथी पण बीजा
समये पोते स्वभावने आधीन परिणमे तो रागद्वेषनी उत्पत्ति ज थती नथी, एटले राग–द्वेषने टाळ्या एम
उपचारथी कहेवाय छे. स्वभावद्रष्टि करीने तेना आश्रये परिणमतां शुद्धतानो उत्पाद थाय छे ने अशुद्धतानो
जीवे जे मान्युं छे ते साचुं नथी.