Atmadharma magazine - Ank 088
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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महा : २४७७ : ७३ :
छे. पुण्य अने पाप ते बंने अशुद्धभाव छे–अशुद्ध वेपार छे, अने ते भाव रहित आत्माना स्वरूपमां ठरवुं ते
शुद्धभाव छे–शुद्ध वेपार छे, तेनुं नाम मोक्षनुं साधन छे.
महिमावंत शुद्ध उपयोगी मुनिवरो अनादि संसारथी रचायेला विकट कर्मकपाटने तोडवाना अति उग्र
प्रयत्नवडे पराक्रम प्रगट करी रह्या छे तेथी ते मुनि भगवंतोने मोक्षतत्त्वनुं साधनतत्त्व जाणवुं. शुद्धोपयोग वडे
स्वरूपमां लीन थनारा मुनिओ अनादिकाळना निद्धत्त अने निकाचित कर्मने पण क्षणवारमां तोडी नाखे छे. जेम
जमशेदपुरना लोखंडना कारखानानी मोटी भठ्ठीमां लोढानो गोळो पण मीणनी जेम ओगळी जाय, तेम अहीं
मुनिवरोए ‘सिद्धसमान सदा पद मेरो’ एवुं भान करीने स्वरूपना ध्यानवडे शुद्धोपयोगरूपी अग्नि प्रगट कर्यो
छे, तेमां अनादिकाळना निद्धत्त अने निकाचित कर्मो पण बळीने भस्म थई जाय छे. आ रीते मुनिओ
अनादिना कर्मकपाटने खोलवानो अति उग्र प्रयत्न करी रह्या छे, खरेखर पोतानी ज्ञानशक्ति अनादिथी
बीडायेली छे तेने केवळज्ञानपणे प्रगट करवानो उग्र प्रयत्न करी रह्या छे, कर्मनी वात निमित्तथी करी छे.
शुद्धोपयोगी मुनि कर्मकपाटने तोडवानो जे अति उग्र प्रयत्न करी रह्या छे ते ज खरुं पराक्रम छे; मोक्ष माटेनो
अति उग्र प्रयत्न तेने ज अहीं पराक्रम कह्युं छे, संसारमां लौकिक पराक्रम ते खरेखर पराक्रम नथी. जेम घणा
घणा काळथी बंध रहेली गुफाना वज्र कपाटने चक्रवर्ती तोडी नाखे छे, तेम चैतन्यना चक्रवर्ती भगवंत
शुद्धोपयोगी मुनि शुद्धोपयोग वडे अनादिना कर्मकपाटने तोडवानो अति उग्र प्रयत्न करी रह्या छे. जाणे के
हमणां केवळज्ञान लीधुं के लेशे! एम केवळज्ञाननी तैयारी छे. आने ज मोक्षतत्त्वनुं साधनतत्त्व कहेवामां आवे
छे.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी प्रतीत करीने तेमां ठरे तो अनादिथी बंधायेला विकट कर्मो पण तूटी जाय छे.
कर्मनुं जोर छे अने कर्म नहि तूटे एवी वात ज लीधी नथी, पण कर्मकपाटने तोडी नांखवाना अति उग्र प्रयत्न
वडे पराक्रम प्रगट करवानी ज वात लीधी छे. शुद्धोपयोगवडे अनादिना कर्मने तोडवानो ने केवळज्ञान प्रगट
करवानो उग्र प्रयत्न जे करी रह्या छे एवा, सकळ महिमावंत भगवंत शुद्धउपयोगी मुनि ते मोक्षनुं साधनतत्त्व
छे. आ ज मोक्षनुं साधन छे, बीजुं कोई साधन नथी.
आ रीते २७१मी गाथामां संसारतत्त्वनुं, २७२मी गाथामां मोक्षतत्त्वनुं अने २७३ मी गाथामां
मोक्षतत्त्वना साधनतत्त्वनुं वर्णन कर्युं. हवे श्री आचार्यभगवान् मोक्षतत्त्वना साधनतत्त्वने सर्व मनोरथना
स्थान तरीके अभिनंदे छे,–ए वात २७४मी गाथामां आवशे.
।।२७३।।
* * * * *
लोकोने खबर नथी
कोई कोईनो उपकार करी शकतो नथी, मात्र तेवा भाव करी
शके छे. × × × घणा लोको जगतने कहे छे के अमारो स्वार्थत्याग तो
जुओ, अमे जगतने माटे मरी फीटीए, अमारुं बगाडीने पण
जगतनुं सुधारी दईए.–पण आम कहेनारे सामा जीवोने पराधीन
अने नमाला ठराव्या, ए वातनी लोकोने खबर नथी.
–समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ११७
बाह्य प्रवृत्तिनी मीठाश
बाह्यनी मान्यताए घर घाल्यां, तेथी जीवने लौकिक प्रवृत्तिमां
मीठाश लागे छे, अने पुण्यपाप रहित शुद्ध आत्मधर्मनी मीठाश लागती
नथी; ऊलटा तेवी वात सांभळतां बाह्यद्रष्टि जीवो निंदा ने द्वेष करे छे. सौ
स्वतंत्र छे, संसार अनंतकाळ रहेवानो छे!
समयसार–प्रवचनो भाग १ पृ. ९०