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शुद्धभाव छे–शुद्ध वेपार छे, तेनुं नाम मोक्षनुं साधन छे.
जमशेदपुरना लोखंडना कारखानानी मोटी भठ्ठीमां लोढानो गोळो पण मीणनी जेम ओगळी जाय, तेम अहीं
मुनिवरोए ‘सिद्धसमान सदा पद मेरो’ एवुं भान करीने स्वरूपना ध्यानवडे शुद्धोपयोगरूपी अग्नि प्रगट कर्यो
छे, तेमां अनादिकाळना निद्धत्त अने निकाचित कर्मो पण बळीने भस्म थई जाय छे. आ रीते मुनिओ
अनादिना कर्मकपाटने खोलवानो अति उग्र प्रयत्न करी रह्या छे, खरेखर पोतानी ज्ञानशक्ति अनादिथी
बीडायेली छे तेने केवळज्ञानपणे प्रगट करवानो उग्र प्रयत्न करी रह्या छे, कर्मनी वात निमित्तथी करी छे.
शुद्धोपयोगी मुनि कर्मकपाटने तोडवानो जे अति उग्र प्रयत्न करी रह्या छे ते ज खरुं पराक्रम छे; मोक्ष माटेनो
अति उग्र प्रयत्न तेने ज अहीं पराक्रम कह्युं छे, संसारमां लौकिक पराक्रम ते खरेखर पराक्रम नथी. जेम घणा
घणा काळथी बंध रहेली गुफाना वज्र कपाटने चक्रवर्ती तोडी नाखे छे, तेम चैतन्यना चक्रवर्ती भगवंत
हमणां केवळज्ञान लीधुं के लेशे! एम केवळज्ञाननी तैयारी छे. आने ज मोक्षतत्त्वनुं साधनतत्त्व कहेवामां आवे
छे.
वडे पराक्रम प्रगट करवानी ज वात लीधी छे. शुद्धोपयोगवडे अनादिना कर्मने तोडवानो ने केवळज्ञान प्रगट
करवानो उग्र प्रयत्न जे करी रह्या छे एवा, सकळ महिमावंत भगवंत शुद्धउपयोगी मुनि ते मोक्षनुं साधनतत्त्व
छे. आ ज मोक्षनुं साधन छे, बीजुं कोई साधन नथी.
स्थान तरीके अभिनंदे छे,–ए वात २७४मी गाथामां आवशे.
जुओ, अमे जगतने माटे मरी फीटीए, अमारुं बगाडीने पण
जगतनुं सुधारी दईए.–पण आम कहेनारे सामा जीवोने पराधीन
अने नमाला ठराव्या, ए वातनी लोकोने खबर नथी.
नथी; ऊलटा तेवी वात सांभळतां बाह्यद्रष्टि जीवो निंदा ने द्वेष करे छे. सौ
स्वतंत्र छे, संसार अनंतकाळ रहेवानो छे!