Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ८७ :
झीलती भगवाननी मूद्रा उपशमरसथी रेलाई रहे छे... ए पावनकारी भव्यमुद्राना दर्शनथी दूरदूरना
यात्राळुजनो पोताने कृतकृत्य माने छे. खरेखर––
‘जेनी मुद्रा जोतां आत्मस्वरूप लखाय छे रे, जेनी भक्तिथी चारित्र विमळता थाय... एवा
चैतन्यमूर्तिप्रभुजी अहो! अम आंगणे रे.’
भगवाननी प्रतिष्ठा बाद राजकोटना मुमुक्षुसंघे पू. गुरुदेवश्रीने राजकोट पधारवानी विनंति करेल त्यारे
पू. गुरुदेवश्रीए कहेल के ‘आ वर्षे तो विहार करवो नथी... अहीं भगवान पधार्या छे एटले तेमनां धराई
धराईने दर्शन करवा माटे आ वर्षे तो क्यांय विहार करवो ज नथी.’
सोनगढना जिनमंदिरमां मूळनायक भगवान श्री सीमंधर प्रभु छे; ने तेमनी आजुबाजुमां श्री पद्मप्रभु
तथा श्री शांतिनाथ प्रभु छे ए उपरांत श्री महावीरप्रभु, श्री आदिनाथ प्रभु अने श्री पार्श्वनाथप्रभु छे. तथा
जिनमंदिरना उपरना भागमां गीरीनगरना वासी श्री नेमनाथ प्रभुजी बिराजे छे. वीर सं. २४६६ ना फागण
सुद बीजे नेमनाथप्रभुनी कल्याणक भूमि गीरनारनी टोच उपर नेमनाथप्रभुनी भक्ति ने शुद्धात्मानी धून थई
हती.. ने २४६७ ना बराबर फागण सुद बीजे अहीं जिनमंदिरमां नेमनाथ प्रभुजी पधार्या... जाणे के भक्तिए
भगवानने आकर्षी लीधा!
ए रीते सोनगढनो ए प्रतिष्ठा महोत्सव सौराष्ट्रने माटे अपूर्व हतो.. ए महोत्सव नजरे नीहाळवानुं
महाभाग्य जेमने मळ्‌युं हशे तेमना अंतरपटमां ते वखतना उल्लासित संस्मरणो हजी गूजतां हशे... अहोभाग्य
छे भक्तजनोना के परम पूज्य गुरुदेवश्रीना प्रतापे भगवान भेट्या... अने तेओश्रीना ज महान उपकारथी
भक्तजनो भगवानने ओळखता थया... आजे य भक्तजनो गौरवपूर्वक गद्गद् भावे वारंवार कहे छे के...
‘हे गुरुदेव... हे गुरुदेव! आपना ज परम परम प्रतापथी अमने अहीं श्री सीमंधरादि जिनेन्द्र
भगवंतोनो भेटो थयो... आवा आवा सर्व प्रसंगोमां, हे कृपानाथ! आपनो ज महान उपकार छे... अमारा
जीवनमां आपनो परम उपकार छे...
जेनी द्वारा जिनजी आव्या भव्ये ओळख्या रे, ते श्री कान गुरुनो छे अनुपम उपकार... नित्ये देव–
गुरुनां चरणकमळ हृदये वसो रे...’
प्र... भा.. व... ना
स्मृति... अने... आभार
‘आत्मधर्म’ ना आ खास ‘भगवान श्री सीमंधर जिनस्वागत अंक’ ना खर्च तरीके
राजकोटना स्व० शेठ भगवानलाल रणछोडदासना रमरणार्थे तेमना सुपुत्र भाई श्री
बुद्धिधन वगेरे तरफथी रूा. ७प० श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टने आपवामां आव्या छे..
अने ए रीते ‘आत्मधर्म’ नी प्रभावनामां साथ आप्यो छे. आ उपरांत ‘श्री कुंदकुंद
श्राविकाशाळा’ ना फंडमां पण रूा. २प१ तेमना तरफथी आपवामां आव्या छे. तेमनी आ
मदद माटे तेमनो आभार मानवामां आवे छे.
बीजुं, आ अंकमां छपायेल भावनाचित्र तेम ज मुख पृष्ठना स्केच अने ब्लोक करावी
आपवा माटे, तेम ज आ अंकनुं पूंठुं मुंबईमां छपावी आपवा माटे भाई श्री रतिलाल जेचंद
शाहे घणी महेनत लीधी छे, ते माटे तेमना आभारनी पण नोंध लईए छीए.
सुधारो
आत्मधर्म अंक ८८ पृ. ७९ कोलम १ लाईन ८–९ मां ‘श्रद्धामां
तो पुण्य अने पाप बंने होय छे’ एम छपायुं छे तेने बदले ‘श्रद्धामां
तो पुण्य अने पाप बंने हेय छे’ ए प्रमाणे सुधारीने वांचवुं.
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)