Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ८६ : आत्मधर्म : ८९
फागण सुद बीजे प्रभुश्रीना निर्वाण कल्याणक प्रसंगे पावापुरीनो देखाय थयो हतो. (प्रतिष्ठामां विधिनायक श्री
महावीर प्रभुजी हता.)
पंचकल्याणकना विधविध प्रसंगोए वारंवार ‘उदक चंदन...’ आदि श्लोको द्वारा जिनेन्द्र पूजन थतुं हतुं
ते पण सौराष्ट्रना मुमुक्षुओने माटे आनंदाश्चर्यजनक हतुं.
आ प्रतिष्ठा महोत्सवमां पंच कल्याणकना नवा नवा भक्तिभीनां द्रश्यो देखीने कठण हैयां पण भक्तिथी
पीगळी जतां हतां... प्रतिष्ठा महोत्सव देखीने शेठ श्री बेचरलालभाईने प्रमोद आवी जतां पोताना मोटाभाई
(शेठश्री नानालालभाई) ना पगमां पडीने आंसुभीनी आंखे कहेता के ‘भाई! आ बधुं तमारा प्रतापे अमने
जोवा मळ्‌युं छे...’ त्यारे नानालालभाई कहेता... ‘गुरुदेवनो ए बधो उपकार छे.’
* * * * *
पंच कल्याणक वखते ज्यारे भगवान ने मंडपमां लाववामां आवता हता त्यारे पू. गुरुदेव श्री
भक्तिवशे भगवानी पाछळ पाछळ ज फरतां हतां... जाणे के एक क्षण पण प्रभुथी अळगा रहेवुं गमतुं न
हतुं... अने, अहो! प्रतिष्ठित थयेला श्री सीमंधर भगवाने ज्यारे जिनमंदिरमां प्रवेश कर्यो त्यारे तो
गुरुदेव बारणामां ज तेमनुं स्वागत करतां प्रभुजी पासे नमी पड्या... जिनमंदिरना द्वारमां प्रभु पधारतां
ज तेमनाथी साष्टांगनमन थई गयुं.. ते वखते घणा भक्तोना नयनमांथी भक्तिरस वरसतो हतो... जेम
चक्रवर्ती पोते ज्यारे कोईना चरण ते ढळी पडे ने ए द्रश्य तेना सेवकोने निःस्तब्ध बनावी दे... तेम
भगवान श्री सीमंधरनाथनी सन्मुख ज्यारे गुरुदेव बहु भक्तिपूर्वक नमी पड्या त्यारे सौ भक्तजनोए
द्रश्य निःस्तब्ध पणे नीहाळता रही गया... अने कोई जुदुं ज वातावरण छवाई गयुं... खरेखर! आवा
आवा कोईक प्रसंगे भगवान पासे बाळक जेवा बनी जनारा ए महात्माओनां हृदयना भावो कळवा
घणीवार मुश्केल बनी जाय छे. ए खास प्रसंगनुं वर्णन करतां आत्मार्थी भाई श्री हिंमतलालभाई पू.
गुरुदेवश्रीना जीवन चरित्रमां लखे छे के–
‘सीमंधर भगवान मंदिरमां प्रथम पधार्या त्यारे
गुरुदेवने भक्तिरसनी खूमारी चडी गई अने आखो देह
भक्तिरसना मूर्त स्वरूप जेवो शांत शांत निश्चष्ट भासवा
लाग्यो. गुरुदेवथी साष्टांग प्रणमन थई गयुं अने
भक्तिरसमां अत्यंत एकाग्रताने लीधे देह एम ने एम बे
त्रण मिनिट सुधी निश्चेष्टपणे पडी रह्यो. आ भक्तिनुं
अद्भुत द्रश्य, पासे ऊभेला मुमुक्षुओथी जीरवी शकातुं
नहोतुं; तेमनां नेत्रोमां अश्रु ऊभरायां अने चित्तमां भक्ति
ऊभराई. गुरुदेवे पोताना परम पवित्र हाथे प्रतिष्ठा पण
भक्ति भावमां जाणे देहनुं भान भूली गया होय एवा
अपूर्व भावे करी हती.’
श्री सीमंधर भगवानना प्रतिमाजी एटला बधा
भव्य... सुंदर... अने भाववाहिनी छे के तेना दर्शन करनारने तृप्ति ज नथी थती... फरी फरीने ए जिनमूद्रा जोया
ज करवानुं मन थया करे छे... एनी मुखमूद्रा पण जाणे के महाविदेहना सीमंधर भगवाननी मूद्राने मळती
आवती होय! –एवुं ज लागे छे. तेमांय ज्यारे चारे बाजु प्रकाश होय त्यारे तो शांतसुधारस
(भगवान श्री सीमंधर जिन स्वागत अंक)