महावीर प्रभुजी हता.)
(शेठश्री नानालालभाई) ना पगमां पडीने आंसुभीनी आंखे कहेता के ‘भाई! आ बधुं तमारा प्रतापे अमने
जोवा मळ्युं छे...’ त्यारे नानालालभाई कहेता... ‘गुरुदेवनो ए बधो उपकार छे.’
हतुं... अने, अहो! प्रतिष्ठित थयेला श्री सीमंधर भगवाने ज्यारे जिनमंदिरमां प्रवेश कर्यो त्यारे तो
गुरुदेव बारणामां ज तेमनुं स्वागत करतां प्रभुजी पासे नमी पड्या... जिनमंदिरना द्वारमां प्रभु पधारतां
ज तेमनाथी साष्टांगनमन थई गयुं.. ते वखते घणा भक्तोना नयनमांथी भक्तिरस वरसतो हतो... जेम
चक्रवर्ती पोते ज्यारे कोईना चरण ते ढळी पडे ने ए द्रश्य तेना सेवकोने निःस्तब्ध बनावी दे... तेम
भगवान श्री सीमंधरनाथनी सन्मुख ज्यारे गुरुदेव बहु भक्तिपूर्वक नमी पड्या त्यारे सौ भक्तजनोए
द्रश्य निःस्तब्ध पणे नीहाळता रही गया... अने कोई जुदुं ज वातावरण छवाई गयुं... खरेखर! आवा
आवा कोईक प्रसंगे भगवान पासे बाळक जेवा बनी जनारा ए महात्माओनां हृदयना भावो कळवा
घणीवार मुश्केल बनी जाय छे. ए खास प्रसंगनुं वर्णन करतां आत्मार्थी भाई श्री हिंमतलालभाई पू.
गुरुदेवश्रीना जीवन चरित्रमां लखे छे के–
भक्तिरसना मूर्त स्वरूप जेवो शांत शांत निश्चष्ट भासवा
लाग्यो. गुरुदेवथी साष्टांग प्रणमन थई गयुं अने
भक्तिरसमां अत्यंत एकाग्रताने लीधे देह एम ने एम बे
त्रण मिनिट सुधी निश्चेष्टपणे पडी रह्यो. आ भक्तिनुं
अद्भुत द्रश्य, पासे ऊभेला मुमुक्षुओथी जीरवी शकातुं
नहोतुं; तेमनां नेत्रोमां अश्रु ऊभरायां अने चित्तमां भक्ति
ऊभराई. गुरुदेवे पोताना परम पवित्र हाथे प्रतिष्ठा पण
भक्ति भावमां जाणे देहनुं भान भूली गया होय एवा
अपूर्व भावे करी हती.’
ज करवानुं मन थया करे छे... एनी मुखमूद्रा पण जाणे के महाविदेहना सीमंधर भगवाननी मूद्राने मळती
आवती होय! –एवुं ज लागे छे. तेमांय ज्यारे चारे बाजु प्रकाश होय त्यारे तो शांतसुधारस