फागण : २४७७ : ८५ :
भगवाननी भक्तिनुं सौभाग्य पोताने मळ्युं ते माटे पोतानो प्रमोद जाहेर करी रह्यो होय.. ने पोताने धन्य
मानी रह्यो होय! आम तेनी मलपति चाल उपरथी भक्तोने लागतुं हतुं.
माह वद अमासे, भगवाननो जन्म कल्याणक थयो त्यारे, एक बाजु जन्मनी वधाईनां वाजां... बीजी
बाजु दीपकोनो झगमगाट... एम अचानक द्रश्यो जोईने भक्तो थोडी वार तो ‘आ शुं? ...आ शुं?’ एवा
आश्चर्यमां पडी जतां... ने पछी ज्यारे खबर पडती के अहो! आ तो भगवानना जन्मनी वधाई! के तरत ज
पाछुं वातावरण उल्लासथी ऊभराई जतुं. अहो! ए प्रसंगो नजरे निहाळनारा तो कहे छे के ते दिवसे अमने
एम ज लागतुं हतुं के आ सोनगढ जाणे के महाविदेह बनी गयुं हतुं अने अहीं ज सीमंधर भगवानना पंच
कल्याणक थता हता.
हाथी उपर, भगवानना जन्म कल्याणकनी भव्य यात्रा नीकळी हती. जन्माभिषेक माटे नदी किनारे
मेरुपर्वतनी रचना थई हती. हजारो भक्तोनां टोळां वच्चे मेरुपर्वत उपर ज्यारे भगवाननो जन्माभिषेक थयो
हतो ते वखते आकाश एवुं विचित्र रंगबेरंगी थतुं हतुं–जाणे के... प्रभुना जन्माभिषेकने देखीने प्रभुना
चरणोमां कोई रंगबेरंगी साथिया पूरी रह्युं होय!
फागण सुद एकमे भगवानना दीक्षा कल्याणकनो प्रसंग हतो. तेमां ज्यारे प्रभुश्रीनो केशलोच करवानुं
आव्युं त्यारे दीक्षावनमां आम्रवृक्ष नीचे पू. गुरुदेवश्रीए आते गंभीरताथी भगवाननो केशलोच करतां कह्युं के
‘हे भगवान! आप तो स्वयंबुद्ध छो... आप तो आपना स्व हस्ते ज केशलोच करो, पण आ तो आपनी
स्थापना होवाथी मात्र अमारो उपचार छे.’
दीक्षाविधि पूरो थतां वनमांथी पाछा फरवानो समय आव्यो त्यारे, भगवानने न देखवाथी अनेक
भक्तो पूछवा लाग्या के ‘भगवान क्यां? भगवान क्यां?’ अने ज्यारे प्रतिष्ठा करावनार पंडितजीए
खूलासो करतां कह्युं के ‘भगवान तो हवे मुनि थया.. ने तेओ तो वन जंगलमां विचरी गया... हवे ते
आपणी साथे पीछा नहि आवे..’ त्यारे बधां भक्तो उदासचित्ते पाछा फर्या... भगवान वगर बधाने सूनुं
सूनुं लागतुं हतुं.
केटलाक वखत बाद, वनमां विहार करीने प्रभुजी ज्यारे पाछा पधार्या त्यारे, स्वरूपानंदमां झूलता ए
परम वीतरागी नाथने नीरखतां ज जे अति अति भावथी पू. गुरुदेवश्रीए तेमने नमस्कार कर्या हता... ते
प्रसंगनुं भाव भर्युं द्रश्य भक्तोना स्मृतिपटमां आजे य तरवरी रह्युं छे.
पछी ज्यारे मुनि थयेला भगवान गाममां आहार माटे पधार्या त्यारे अति प्रसन्नता पूर्वक प्रभुने
आहार देतां भक्तोना हैये हरख समातो न हतो... उपरथी रत्नवृष्टि थई रही हती... अने ज्यारे हाथमां खीर
लईने प्रभुजीने आहार कराव्यो त्यारे तो जाणे साक्षात् भगवानने आहारदान करता होईए तेवो आहलाद
अंदरमां जागतो हतो. ‘अहो! ते वखतना भावोनी शुं वात करीए?’
पहेली फागण सुद बीजे भगवानना केवळज्ञान कल्याणकनो प्रसंग आव्यो. भगवानने केवळज्ञान थयुं...
दीपकोथी जगमगता समवसरणनी रचना थई... ए समवसरणने देखी देखीने भक्तजनो भक्तिथी नाचवा
लाग्या. अने वाजित्रो लईने समवसरणनी प्रदक्षिणा करवा लाग्या.
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)