Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ८४ : आत्मधर्म : ८९
घणो वखत भगवान पासे बेसी रहेतां... ‘हरतां फरतां प्रगट हरि देखुं रे...’ एना जेवी ते वखतनी स्थिति
हती. भगवाननी मूद्रा एटली बधी भव्य हती के गुरुदेवने तो ते जोतां तृप्ति ज थती न हती... वारंवार हरतां
ने फरतां प्रभु पासे जईने बेसतां अने भगवाननी
शांत मूद्रा नीहाळी नीहाळीने कहेतां के–– ‘अहो...
अमिय भरी मूरति रची रे... उपमा न घटे
कोय, शांत सुधारस झीलती रे... निरखत तृप्ति न
होय सीमंधर जिन... दीठां लोयण आज...’
वळी बहारगामना जे नवा नवा भक्त
जनो आवे तेमने पण पूछतां के ‘तमे भगवान
जोया? चालो... तमने भगवान बतावुं.’ –एम
कहीने ओरडीमां तेडी जईने बतावतां के जुओ,
आ भगवान! आपणे अहीं प्रतिष्ठा थवानी छे ते
आ भगवान छे...
माह वद ११ थी फागण सुद २ सुधी
भगवाननी पंचकल्याणक प्रतिष्ठानो अठ्ठाई
महोत्सव ऊजवायो... जीवनमां पहेली ज वार
पंचकल्याणक प्रतिष्ठानो प्रसंग होवाथी, ने पहेल
वहेला ज भगवान भेटता होवाथी भक्तजनोने
अपूर्व उल्लास हतो... जाणे प्रभुना पंचकल्याणक
साक्षात् ज थता होय एवुं लागतुं हतुं. त्यारे भक्तो होंसथी गाता हता के–
‘सुंदर स्वर्णपुरीमां स्वर्ण–रवि आजे ऊग्यो रे,
भव्यजनोना हैये हर्षानंद अपार... श्री सीमंधर प्रभुजी
पधार्या छे एम आंगणे रे...’
प्रतिष्ठा महोत्सवना ए दिवसोमां पू. गुरुदेवश्रीनां
व्याख्यानो पण वीतरागी सीमंधर भगवानने भेटवानी
धूनथी भरेलां आवतां हतां... भक्तिरसना भाव भीनां ए
प्रवचनोमां वारंवार भगवानने याद करतां पू. गुरुदेव
आंसुभीनी आंखे कहेतां... ‘हे भगवान्! आपना विरहमां
आपनी स्थापना करीने विरहने भूलावशुं..!’ दस वर्ष
पहेलांंना ए प्रवचनो आजे पण मुमुक्षु भक्त जनोनां हैयांने
हचमचावी मूके छे ने तेमना रूंवाटे रूंवाटे भक्ति जगाडे छे.
ए प्रतिष्ठा महोत्सवने नजरे नीहाळवा भाग्यवंत
थयेला भक्तजनोने ते वखतना उल्लासनुं वर्णन करतां
आजे पण तृप्ति थती नथी अने अति प्रमोदित थतां कहे छे
के ‘अहो! शुं कहीए! ए वखते तो पहेली ज वखत
प्रतिष्ठानो महोत्सव... जीवनमां कदी नहि जोयेल भगवानना भेटा... अने तेमांय वळी मूळनायकपणे श्री
सीमंधरनाथ भगवान! एटले पछी शुं बाकी रहे!’ प्रभु भक्तोना अंतरपटमां कोतराई गयेला ए धन्य
प्रसंगना संस्मरणोनो अंश मात्र आजे दस वर्षे अहीं शब्दारूढ थयो छे.
ए प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे ‘कहाननगर’ वसाव्युं हतुं... प्रतिष्ठा महोत्सवमां एक हाथी पण हतो.
प्रभुजीना जन्मकल्याणक वगेरे प्रसंगे ज्यारे कहाननगरने प्रदक्षिणा करवानुं आवतुं हतुं त्यारे ते हाथी पण
एवी गंभीरपणे प्रदक्षिणा करतो हतो–जाणे के ते पण
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागतअंक)