हती. भगवाननी मूद्रा एटली बधी भव्य हती के गुरुदेवने तो ते जोतां तृप्ति ज थती न हती... वारंवार हरतां
ने फरतां प्रभु पासे जईने बेसतां अने भगवाननी
शांत मूद्रा नीहाळी नीहाळीने कहेतां के–– ‘अहो...
होय सीमंधर जिन... दीठां लोयण आज...’
जोया? चालो... तमने भगवान बतावुं.’ –एम
कहीने ओरडीमां तेडी जईने बतावतां के जुओ,
आ भगवान! आपणे अहीं प्रतिष्ठा थवानी छे ते
आ भगवान छे...
महोत्सव ऊजवायो... जीवनमां पहेली ज वार
पंचकल्याणक प्रतिष्ठानो प्रसंग होवाथी, ने पहेल
वहेला ज भगवान भेटता होवाथी भक्तजनोने
अपूर्व उल्लास हतो... जाणे प्रभुना पंचकल्याणक
साक्षात् ज थता होय एवुं लागतुं हतुं. त्यारे भक्तो होंसथी गाता हता के–
पधार्या छे एम आंगणे रे...’
प्रवचनोमां वारंवार भगवानने याद करतां पू. गुरुदेव
आंसुभीनी आंखे कहेतां... ‘हे भगवान्! आपना विरहमां
आपनी स्थापना करीने विरहने भूलावशुं..!’ दस वर्ष
पहेलांंना ए प्रवचनो आजे पण मुमुक्षु भक्त जनोनां हैयांने
हचमचावी मूके छे ने तेमना रूंवाटे रूंवाटे भक्ति जगाडे छे.
आजे पण तृप्ति थती नथी अने अति प्रमोदित थतां कहे छे
के ‘अहो! शुं कहीए! ए वखते तो पहेली ज वखत
सीमंधरनाथ भगवान! एटले पछी शुं बाकी रहे!’ प्रभु भक्तोना अंतरपटमां कोतराई गयेला ए धन्य
प्रसंगना संस्मरणोनो अंश मात्र आजे दस वर्षे अहीं शब्दारूढ थयो छे.
एवी गंभीरपणे प्रदक्षिणा करतो हतो–जाणे के ते पण