प्रभुनी पंच कल्याणक प्रतिष्ठा थई त्यारे ऊजवायो.
स्मरण करतां आजे पण भक्तजनोनां हृदय भक्तिरसमां भींजाई जाय छे.
पण भगवाननी वीतरागीमूद्रानां पण दर्शन न मळे!’ एम भाव थतां सोनगढमां वीतरागी प्रतिमा स्थापवानुं दील
थयुं...पछी तो भगवानने स्थापवा माटेनी भक्तोनी ए भावना फेलाती फेलाती पू. गुरुदेवश्री पासे पहोंची अने पू.
गुरुदेवश्रीने पण वीतरागी जिनप्रतिमा स्थापवाना भाव थया...ने एकवार पद्मनंदी पचीसीना वांचन वखते
प्रवचनमां जिनप्रतिमा संबंधी एवी वात आवी के ‘जे भव्य जीव नानामां नानुं जिनमंदिर अने जव जेवडा
जिनप्रतिमा बनावे छे तेने पण एवा पुण्यनी प्राप्ति थाय छे के साक्षात् सरस्वती पण तेना पुण्यनुं वर्णन करी शकती
नथी; तो बीजानी तो शुं वात?’ पू. गुरुदेवना श्री मुखेथी ए वात सांभळतां राजकोटना शेठ श्री नानालालभाई
तथा तेमना बंधुओने सोनगढमां वीतरागी जिनमंदिर कराववानी भावना थई... अने तेमना तरफथी जिनमंदिर
बधायुं. ए रीते भक्तोना अंतरनी ऊंडी भावनानां
बीजडां फाल्यां ने खरेखर सोनगढमां सीमंधर भगवान
भेट्या...
उल्लास पूर्वक श्री सीमंधरादि भगवंतोनो ग्राम
प्रवेशोत्सव थयो हतो. भगवान पधार्या... ने पहेली
वखत तेमनी भव्य मूद्रा नीरखतां ज पू. गुरुदेव
भक्तिथी स्तब्ध थई गया... आंखोमांथी आंसु वही
गया. हजी भगवाननी प्रतिष्ठा थई न हती पण पू.
गुरुदेवने एटली बधी लगनी लागी हती के वारे वारे
भगवान पासे जईने बेसता ने दिवसनो