सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने अंतर रमणतारूप चारित्रदशा ते आत्मानो निज वैभव छे.
समृद्धिना सर्व सामर्थ्यथी हुं आ स्वथी एकत्व अने परथी जुदा आत्माने दर्शावीश. जेम गृहस्थने त्यां
लग्न होय त्यारे जेटली समृद्धि होय तेटली बहार काढे, तेम अहीं समयसारमां मोक्षना मांडवे श्री
कुंदकुंदाचार्य भगवान पोताना सर्व आत्मवैभववडे शुद्धात्मानुं वर्णन करे छे. ‘अहीं पचमकाळ छे, अमे
छद्मस्थ छीए, छतां अमे आत्म–रिद्धि पाम्या छीए, ने पूर्ण ज्ञानी जे कही गया ते ज जगत पासे
स्वानुभव वडे मूकीए छीए. जेटलो अमारो अंतर ज्ञान वैभव प्रगट्यो छे ते सर्वथी, आत्मानुभव रूप
श्रद्धाना पूरा बळथी आ एकत्व विभक्त आत्माने दर्शावीशुं.’
कह्युं छे. अहीं आचार्यदेव सघळी जवाबदारी पोताना उपर राखीने जाहेर करे छे, तेथी जे कहेशे ते क्यांयथी
झडपी लीधुं छे–एम नथी, पण निज वैभवथी स्वानुभववडे आत्मानो अपूर्व धर्म कहे छे अने कहे छे के जेम हुं
मारा निजआत्मवैभवथी कहुं छुं तेम तमे पण तमारा स्वानुभवथी प्रमाण करजो.