: ८८ : आत्मधर्म : ८९
जिनप्रतिमा जिनसारखी
“ते सर्वने साथे तथा प्रत्येकने प्रत्येकने,
वंदुं वळी हुं मनुष्यक्षेत्रे–वर्तता अर्हंतने.”
आजे अहींना जिनमंदिरमां भगवान श्री सीमधर प्रभुनी प्रतिष्ठानो महोत्सव छे तेथी मांगलिक छे...
भगवानना विरह वखते भगवाननी प्रतिमामां तेमनी स्थापना करवामां आवे छे. तीर्थंकर भगवाननी
वीतरागी प्रतिमा पण तीर्थंकर तूल्य छे. जुओ, पंडित बनारसीदासजी कहे छे के– ‘जिनप्रतिमा जिनखारखी’
हे भगवान! आपनी वीतरागी ध्यानस्थ प्रतिमाने जोतां ज्ञायकबिंबनुं स्मरण थाय छे. आवा प्रतिमाने
भगवान तरीके कोण माने? ...तो कहे छे के:–
‘कूहत बनारसी अलप भव थिति जाकी
सोइ जिनप्रतिमा प्रभानैं जिन सारखी।’
अंदरना चैतन्य भगवान आत्मानुं जेने लक्ष छे, अने बहारमां निमित्त तरीके पूर्णदशाने पामेला श्री
सर्वज्ञ परमात्मानी जेने ओळखाण थई छे, ते साक्षात् सर्वज्ञदेवना विरह वखते तेमनी प्रतिमाने सर्वज्ञदेव
तरीके स्थापे छे, ने ए रीते भानपूर्वक जिनप्रतिमाने जिनवर तूल्य मानीने दर्शन–पूजनादि करे छे. अहो!
भगवान आवा पूर्ण सर्वज्ञपदने पाम्या ने मारो स्वभाव पण आवो ज छे–आवी भावनाथी पण घणी निर्जरा
थाय छे. भगवान जेवो पोतानो स्वभाव छे एवा लक्ष पूर्वक जे जिनप्रतिमाने जिन–तूल्य माने छे तेने विशेष
भव होता नथी.
(भगवान श्री सीमधंर जिन–स्वागत अंक)