Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ८९ :
श्री परमात्म–प्रकाशमां कहे छे के आ जीवने अनादिसंसारमां बे वस्तु मळवी अत्यंत दुर्लभ छे. कई बे
वस्तु? एक तो शुद्धसम्यक्त्व अने बीजा श्री जिनवर स्वामी, जिनवर स्वामी खरेखर क्यारे मळ्‌या कहेवाय?
संयोगरूपे तो भगवान घणी वार मळी गया. पण अंतरमां भगवान जेवा पोताना आत्मानुं लक्ष करे तो
खरेखर जिनवर स्वामी मळ्‌या कहेवाय. श्री कुंदकुंदाचार्य भगवान प्रवचनसारमां कहे छे के–जे जीव अरिहंत
भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणे छे ते जीव खरेखर पोताना आत्माने जाणे छे ने तेनो मोह क्षय पामी
जाय छे. आत्माने वास्तविक तत्त्वज्ञान प्राप्त थवुं अनंतकाळे दुर्लभ छे, अने ए तत्त्वज्ञान पामवानो योग
मळवो पण घणो दुर्लभ छे. साचा देव–गुरु शुं कहे छे ते समजवानो अवसर अनंतकाळे आवे छे. आवा
प्रसंगने बराबर उत्साहथी वधावी लेवो जोईए. बहारनो प्रसंग तो तेना कारणे भजे छे, पण अंदर साची
समजणनो उत्साह जोईए. आत्मानी समजणनी दरकार वगर एकली बहारनी हो–हा करे तेमां कल्याण नथी.
आत्माना भान पछी पण वीतरागी देव–गुरु प्रत्ये बहुमान अने भक्तिनो भाव तो आवे पण ज्ञानी तेने धर्म
न माने, ते शुभरागमां ज सर्वस्व मानीने तेमां अटकी न जाय. अज्ञानीओ तो ते रागमां ज सर्वस्व मानीने,
तेने ज धर्म मानीने त्यां अटकी पडे छे. अष्टाह्निका महोत्सव वखते घणा सम्यग्द्रष्टि देवो पण नंदिश्वर द्वीपे जाय
छे, अने त्यां शाश्वत बिराजमान रत्नमणिना जिनबिंबना दर्शन–पूजन करीने भक्तिथी नाची ऊठे छे.
अंर्तद्रष्टि पूर्वकना ज्ञानीनी भक्तिना खेल अज्ञानीने समजवा मुश्केल पडे तेम छे. भगवाननी उपशांत प्रतिमा
पासे त्रण ज्ञानधारी एकावतारी सम्यग्द्रष्टि ईन्द्र–ईन्द्राणीओ पण नानी बाळिकानी जेम भक्तिभावथी नाची
ऊठे छे. अंदर चैतन्यबिंब आत्मानुं भान छे, एवी निश्चयनी भूमिका होवा छतां नीचली दशामां तेवो राग
वच्चे आवे छे, ने ते रागना निमित्तभूत वीतरागी जिनबिंब छे. एवा रागने तथा तेना निमित्तने न ज माने
तो ते अज्ञानी छे, अने ते रागथी के निमित्तथी ज धर्म माने तो ते पण अज्ञानी छे. वस्तुस्थिति जेम छे तेम
जाणवी जोईए.
श्री पद्मनंदिपच्चीसीमां दररोज करवा योग्य श्रावकना छ कर्तव्योनुं वर्णन करतां कहे छे के–
देवपूजा गुरोपास्ति स्वाध्याय संयमस्तपः।
दानश्वेति गृहस्थाणां षट्कर्माणि दिनेदिने।।७।।
श्रावकाचार
श्री जिनेन्द्रदेवनी पूजा, गुरुओनी उपासना, स्वाध्याय संयम तप अने दान–ते छ कार्यो गृहस्थोए दिन–
दिन प्रति हंमेशांं करवा योग्य छे. सर्वज्ञ भगवान केवा होय, गुरु केवा होय तेनी ओळखाणनी मुख्यता
सहितनी आ आ वात छे. मुनिओ तो ज्ञान ध्यानमां लीन रहे छे, तेथी तेमनी वात जुदी, पण गृहस्थो तो
अनेक प्रकारना हिंसादि पापमां पडेला छे ते पाप भावथी बचवा देव पूजा वगेरेनो उपदेश छे. ते उपदेशमां
गृहस्थोने आवा प्रकारनो राग होय छे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. धर्म तो अंतरना ध्रुव चैतन्य स्वभावना आश्रये
जे वीतरागीभाव थाय तेमां ज छे. अनादि वीतराग शासननुं आ वर्णन छे. अहीं जेमनी स्थापना थाय छे ते
श्री सीमंधर भगवान अत्यारे महाविदेहक्षेत्रमां आ ज वात कही रह्या छे. जे आ समजे तेनुं कल्याण छे. न
समजनारा तो रखडी ज रह्या छे एटले तेनी शुं वात करवी? भगवानना पंचकल्याणकमां भगवाने कहेलो
आत्मस्वभाव समजे तो कल्याण थाय. माटे आत्मानो स्वभाव शुं छे तेनी समजण करवी तेनी ज मुख्यता छे,
ने ते ज धर्मनुं मूळ छे.
(–लाठीमां श्री सीमंधरादि भगवंतोनी प्रतिष्ठा वखते पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी)
बादशाहनो हुकम
ऊंधी मान्यता–मिथ्यात्व ए ‘बादशाही’ गुणठाणुं छे. जेम बादशाहना हुकमने
मानवानी कोई ना न पाडे तेम परनुं कर्तापणुं मानवुं ते मिथ्यात्वरूप बादशाहनो हुकम छे, तेथी
परनुं अमे करी शकीए एवी मान्यतानी कोई अज्ञानी ना न पाडे. पुण्यथी धर्म थाय एटले के
विकारथी आत्मगुण प्रगटे–एवी ऊंधी मान्यताथी, मोहरूपी भूते अज्ञानी जीवोने वश कर्या छे.
जुओ–समयसार प्रवचनो भा. १ पृ. १२३