आ देहदेवळमां चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा रहेलो छे, ते पोते शांति अने सुख स्वभाववाळो छे.
नथी पण विकार छे. जेने आत्मानुं भान नथी ने लक्ष्मी वगेरेमां सुख मान्युं छे ते जीवने लक्ष्मीनी रुचि
होवाथी ते लक्ष्मीवाळानां वखाण करे छे; अने जेने रागरहित आत्मानुं भान छे ने वीतरागता गोठी छे ते जीव
वीतराग परमात्माने ओळखीने तेमनां गुणगान करे छे. जेम घरे लक्ष्मीवाळा बे–पांच मोटा महेमान के राजा
आवे त्यां अज्ञानी लक्ष्मीनी रुचिवाळो तेमनां गुणगान करतां कहे छे के ‘आजे मारे सोनानो सूरज ऊग्यो..’ –
पण त्यां तो मात्र ममतानुं पोषण छे. अहीं वीतरागतानी भावनावाळा भगवानना भक्त कहे छे के धन्य
ओळखीने तेमनां गाणां गाय ते साची भक्ति छे. जेम नाना छ महिनाना बाळकने पैसा शुं कहेवाय तेनी
खबर नथी, तेणे तो फक्त मातानुं दूध भाळ्युं छे एटले तेने लक्ष्मीवाळा उपर प्रेम शेनो आवे? तेम जेणे
आत्माना वीतराग स्वभावने ओळख्यो नथी, वीतराग भगवानने ओळख्या नथी तेने वीतराग भगवान
उपर खरो प्रेम आवतो नथी. जेने वीतरागतानुं भान छे ते तो वीतराग भगवानने जोतां भक्तिथी उल्लसी
जाय छे.
जशे. अंदर आत्मा देहथी भिन्न छे ते कायम टकनार छे. एवा आत्मामां ज सुख छे, तेने भूलीने अज्ञानी जीव
वीतरागदेवनुं बहुमान केम करी शके? देह अने ईन्द्रियो विनानुं साचुं सुख जेमने प्रगटी गयुं छे एवा वीतरागी
परमात्मानुं स्वरूप जाण्या विना तेमना गुणगान थई शके नहि. जेने विषयोमां सुखनी बुद्धि छे ते कदाच भगवान
पासे जशे तो त्यां पण पुण्य अने स्वर्गादिनां वखाण करशे. ‘हे परमात्मा! आप पूर्ण थई गया छो, आपने ज्ञान
अने सुख पूर्ण प्रगटी गयां छे... हुं पण शक्तिए आपना जेवो परिपूर्ण होवा छतां हजी अवस्थाए अधूरो छुं... मारुं
सुख मारा स्वभावमां भर्युं छे ते प्रगट करवा, आपनी पूर्णतानुं अनुमोदन करतां... तेनां गाणां गातां... संसारनो
प्रेम तोडीने वीतरागता वधारीश.’ ––जेने आवुं ज्ञान होय ते ज वीतरागप्रभुनी साची स्तुति करे छे.
जुओ, अहीं श्री सीमंधर परमात्मानी प्रतिष्ठा थवानी छे. ते सीमंधर परमात्मा अत्यारे महाविदेह
नथी. ए रीते राग–द्वेष–रहित ज्ञानस्वभावनी मर्यादाने भगवाने धारण करी छे अर्थात् भगवानना आत्माने
उत्कृष्ट ज्ञानदशा प्रगटी छे. भगवान जेवो पोताना आत्मानो स्वभाव ओळखवो तेने भगवाननी स्तुति
कहेवाय छे. भगवाननी स्तुति कहो के भगवानना गुणगान कहो. ‘हे नाथ! आपना जेवी पूर्णदशा मारामां
प्रगटी नथी, परंतु हे प्रभो! जेटलुं सामर्थ्य आपनामां छे तेटलुं ज परिपूर्ण सामर्थ्य मारामां भर्युं छे, तारा जेवा
मारा स्वभावमां एकाग्र थतां मारो राग टळे ने सुख मळे... ए रीते हुं पण पूर्ण परमात्मा थईश.’ आनुं नाम
भगवाननी भक्ति! जेने आवुं भान नथी ते