Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 43

background image
फागण : २४७७ : ९१ :
खरेखर भगवाननां गाणां के भगवाननी स्तुति करतो नथी, ते तो मात्र राग अने पुण्यनां गणां गाय छे.
(३) त्रण छत्रोना वर्णनद्वारा त्रिलोकपति शांतिनाथ प्रभुनी स्तुति
अहीं पद्मनंदी पचीसीना आ अधिकारमां आचार्यदेवे श्री शांतिनाथ भगवाननी स्तुति करी छे. तेमां
पहेलांं श्लोकमां कहे छे के–
त्रेलोक्याधिपतित्वसूचनपरं लोकेश्वरैरुद्धृतं।
यस्योपर्युपरीन्दुमण्डलनिभं छत्रत्रयं राजते।।
अश्रांतोद्रतकेवलोज्वलरुचा निर्भर्सितार्कप्रभं।
सोऽस्मान् पातु निरंजनो जिनपतिः श्री शांतिनाथः सदा।।
जेमना मस्तक उपर त्रण लोकनुं स्वामीत्व सूचवनारा अने चन्द्र समान, ईन्द्ररचित त्रण छत्रो शोभी रह्या
छे तेम ज निरंतर उदयमान एवी केवळज्ञाननी निर्मळ काति वडे जेमणे सूर्यनी प्रभाने पण ढांकी दीधी छे अने जेओ
सर्व पापथी रहित छे एवा श्री शांतिनाथ भगवान सदा अमारी रक्षा करो.
जेओ पूर्ण आत्मस्वरूपने पाम्या होय अने पुण्यमां पण पूरा होय ते तीर्थंकरभगवान छे. पूर्ण
आत्मस्वरूपने पामीने मुक्त थनारा घणा जीवो होय छे, पण जे पोते पूर्ण आत्मस्वरूप पामीने पोतानुं कल्याण करे
तेम ज बीजा लाखो–करोडो जीवोने कल्याणमां निमित्त थाय एवा तीर्थंकर थनारा जीवो तो बहु थोडा होय छे.
भरतक्षेत्रमां छेल्ली चोवीसीमां श्री शांतिनाथभगवान सोळमा तीर्थंकर थया. अत्यारे तो तेओ मोक्षदशामां सिद्धपणे
बिराजे छे. पण ज्यारे तेओ आ भरतक्षेत्रमां तीर्थंकर पणे विचरता हता त्यारनो उपचार करीने श्री आचार्यदेव
तेमनी स्तुति करे छे.
भगवानने पूर्ण आत्मदशा प्रगटी छे अने भगवाननी उपर भक्तिपूर्वक मणी–रत्नना त्रण छत्रो ईन्द्र
रचे छे, ते तेमना पुण्यनो अतिशय छे. आचार्यदेव कहे छे के हे नाथ! आ त्रण छत्रो एम सूचवे छे के आप ज
त्रणलोकना नाथ छो... त्रणलोकमां सारमां सार होय तो ते अनंतज्ञानने पामेलो आपनो आत्मा ज छे. ए
सिवाय देह–मन–वाणी के ईन्द्रियविषयो ते कोई आ जगतमां उत्तम नथी.
(४) गर्भकल्याणक
प्रसंगे ईन्द्रद्वारा माता–
पितानी स्तुति
जुओ, अहीं
सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठामां
महावीर भगवानना
पंचकल्याणक थशे; तेमां
घणुं आवशे. ज्यारे
गर्भकल्याणक थशे त्यारे
ईन्द्रो आवीने भगवानना
माता–पितानी स्तुति
करतां कहेशे के अहो! धन्य
माता! ने धन्य पिता! हे
माता! तमे जगतना
माता छो. तमारी
उज्जवळ कूंखे छ महिना
पछी एक त्रिलोकनाथ तीर्थंकर
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)