अहीं पद्मनंदी पचीसीना आ अधिकारमां आचार्यदेवे श्री शांतिनाथ भगवाननी स्तुति करी छे. तेमां
यस्योपर्युपरीन्दुमण्डलनिभं छत्रत्रयं राजते।।
अश्रांतोद्रतकेवलोज्वलरुचा निर्भर्सितार्कप्रभं।
सोऽस्मान् पातु निरंजनो जिनपतिः श्री शांतिनाथः सदा।।
सर्व पापथी रहित छे एवा श्री शांतिनाथ भगवान सदा अमारी रक्षा करो.
तेम ज बीजा लाखो–करोडो जीवोने कल्याणमां निमित्त थाय एवा तीर्थंकर थनारा जीवो तो बहु थोडा होय छे.
भरतक्षेत्रमां छेल्ली चोवीसीमां श्री शांतिनाथभगवान सोळमा तीर्थंकर थया. अत्यारे तो तेओ मोक्षदशामां सिद्धपणे
बिराजे छे. पण ज्यारे तेओ आ भरतक्षेत्रमां तीर्थंकर पणे विचरता हता त्यारनो उपचार करीने श्री आचार्यदेव
तेमनी स्तुति करे छे.
त्रणलोकना नाथ छो... त्रणलोकमां सारमां सार होय तो ते अनंतज्ञानने पामेलो आपनो आत्मा ज छे. ए
सिवाय देह–मन–वाणी के ईन्द्रियविषयो ते कोई आ जगतमां उत्तम नथी.
पितानी स्तुति
महावीर भगवानना
पंचकल्याणक थशे; तेमां
घणुं आवशे. ज्यारे
गर्भकल्याणक थशे त्यारे
ईन्द्रो आवीने भगवानना
माता–पितानी स्तुति
करतां कहेशे के अहो! धन्य
माता! ने धन्य पिता! हे
माता! तमे जगतना
माता छो. तमारी
उज्जवळ कूंखे छ महिना