Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ९२ : आत्मधर्म : ८९
नो आत्मा आववानो छे. हे त्रिलोकनाथनी जनेता! हे जगत जननी! तने धन्य छे! हजी तो भगवाननो
आत्मा स्वर्गादिमां होय, ने त्यांनुं आयुष्य छ महीना बाकी रहेतां ज्यां तीर्थंकरना भवनुं आयुष्य बंधाय त्यां
तो ईन्द्रोना आसन चळे अने इंद अवधि ज्ञानथी जुए के आ शुं!! अहो! त्रिलोकनाथ तीर्थंकरभगवान छ
महिना पछी आ मातानी कूखे पधारवाना... एम जाणीने ईन्द्रो पण तीर्थंकरप्रभुना माता पितानी प्रशंसा करे
छे.. ने रोज रोज रत्नवर्षो थाय छे. भगवानना गुणनो आ बधो महिमा छे. जेम आसो सुद पुनमना बींदवा
जे छीपमां पडे ते छीपुं पण जुदी जातनी होय ने तेमांथी किंमती रत्न पाके. तेम त्रिलोकनाथ तीर्थंकरनो आत्मा
जेने त्यां अवतरे ते मातापिता पण अल्पकाळे मोक्षगामी होय छे. साधारण घरे भगवान अवतरे नहि.
(प) भगवानना साचा भक्तो अने साची स्तुति
भगवान बाळकपणे जन्मे त्यारे ईन्द्रो तेमनी सामे भक्ति करे.. तो पछी केवळज्ञान थाय त्यारे
मुनिवरोने ईन्द्रो तेमनी स्तुति करे तेमां शुं नवाई! भगवान तो वीतराग छे. भगवाननी धर्मसभामां कोई
तत्त्वज्ञाननो सीधो विरोध न करी शके. मुनिवरो पण सर्वज्ञवीतराग भगवाननुं स्तोत्र बनावीने अंतरमां
पोतानी वीतरागताने घूंटे छे. ईन्द्रो तो स्तुति करे ज छे ने मुनिवरो पण भगवाननी स्तोत्र बनावीने अंतरमां
पोतानी वीतरागताने घूंटे छे. ईन्द्रो तो स्तुति करे ज छे ने मुनिवरो पण भगवाननी स्तुति करे छे. अहो!
भगवानने सर्वज्ञता प्रगटी.. एवुं केवळज्ञान लेवा माटे, संसारनो तीव्रराग छेदवा सर्वज्ञवीतरागपणुं शुं छे ते
ओळखीने, ‘मारे पण आवुं सर्वज्ञपणुं अने वीतरागता ज आदरणीय छे, बीजा कोई रागादि भावो आदरणीय
नथी’ –एवी श्रद्धा अने ज्ञान करतां कर्मनां तो खोखां ऊडी जाय छे. रागरहित स्वभावनुं भान थवा छतां
अस्थिरतानो अल्प राग रहे ते रागथी ऊंचा पुण्य बंधाई जाय छे, पण धर्मीने ते रागनी भावना नथी. घणुं
अनाज पाके त्यां साथे घास पण थाय, पण खेडुतनी द्रष्टि अनाज उपर होय छे तेम साधक भूमिकामां रागने
लीधे पुण्य थई जाय पण धर्मात्मानी द्रष्टि रागरहित स्वभाव उपर होय छे.
अहीं आचार्यदेव श्री शांतिनाथभगवाननुं स्तवन करे छे. बधा आत्मानो स्वभाव शांतिनाथ भगवान
जेवो छे. शक्तिरूपे अंदर परमात्मपणुं भर्युं छे, ते ओळखीने जेणे प्रगट कर्युं ते त्रिलोकनाथ भगवान थया छे.
एवी ओळखाण करवी ते भगवाननी साची स्तुति छे.
हे नाथ! आपने केवळज्ञान प्रगट्युं छे ते ज सार छे. आपना केवळज्ञाननी प्रभा तो निरतंर उदयमान
छे. सूर्यनी प्रभा तो सवारे ऊगे ने रात्रे अस्त थई जाय. पण आपना केवळज्ञाननी प्रभा तो ऊगी ते ऊगी...
ते कदी अस्त पामे नहि. हे प्रभो! आपना आवा त्रिकाळीज्ञानना महिमा पासे चार ज्ञाननो पण महिमा
अमने लागतो नथी, तो रागादिनो आदर तो होय ज क्यांथी? केवळज्ञानमां एक समयमां त्रण काळ त्रण लोक
जणाय छे. आ आत्माने सारमां सार वस्तु होय तो ते केवळज्ञान छे. हे नाथ! मने सम्यक्मति–श्रुतज्ञान छे
पण मारी मीट केवळज्ञान उपर छे. अंदर पूर्ण स्वभाव शक्ति पडी छे तेनुं भान छे, ने ते शक्तिमां लीन थईने
पूर्ण केवळज्ञान प्रगट करवानी भावना छे... आ अल्पज्ञान वर्ते छे तेनो महिमा नथी. –आम स्तुति करतां
आचार्यदेव कहे छे के ‘श्री शांतिनाथ भगवान अमारी रक्षा करो’ भक्तिमां तो निमित्तथी बोलाय, पण तेनो
भाव एवो छे के आत्मानुं शांतिस्वरूप वर्तमान विकार अवस्थामांथी बचावो ने पूर्ण परमात्मपद प्रगट करो.
हे वीतराग परमात्मा! आत्मा निर्मळ आनंदघन छे तेवी दशा मने प्रगटो, तेनी हुं भावना करुं छुं... ने
आपने तेवी पूर्णानंददशा प्रगटी गई छे तेथी आपना गाणां गाउं छुं... मने जे गोठ्युं छे तेनां हुं गाणां गाउं छुं.
मारी जे वर्तमानसाधक अवस्था छे तेमांथी हुं पाछो न पडुं ने स्वभावद्रष्टिना जोरे अप्रतिहतपणे आगळ ज
वधीने पूरो थाउं–एवी भावनाथी स्तुतिकार निमित्तथी कहे छे के हे शांतिनाथ भगवान! आप अमारी रक्षा
करो.
(६) भगवाननो भक्त के जडनो?
भगवान पासे जे जीव शरीरनुं रक्षण करवानी भावना करे छे तेने तो अशुभभाव छे; कोई कहे के शरीर
सारूं होय तो संयम पळे, तो तेनी वात जूठी छे. शरीर हाडका चामडानो पिंड छे, शुं तेना आधारे संयम रहेतो
हशे? संयम तो आत्मानी निर्मळ दशा छे. आत्माना पवित्र गुणोनुं भान करीने तेना आश्रये
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)