आत्मा स्वर्गादिमां होय, ने त्यांनुं आयुष्य छ महीना बाकी रहेतां ज्यां तीर्थंकरना भवनुं आयुष्य बंधाय त्यां
तो ईन्द्रोना आसन चळे अने इंद अवधि ज्ञानथी जुए के आ शुं!! अहो! त्रिलोकनाथ तीर्थंकरभगवान छ
महिना पछी आ मातानी कूखे पधारवाना... एम जाणीने ईन्द्रो पण तीर्थंकरप्रभुना माता पितानी प्रशंसा करे
जे छीपमां पडे ते छीपुं पण जुदी जातनी होय ने तेमांथी किंमती रत्न पाके. तेम त्रिलोकनाथ तीर्थंकरनो आत्मा
जेने त्यां अवतरे ते मातापिता पण अल्पकाळे मोक्षगामी होय छे. साधारण घरे भगवान अवतरे नहि.
भगवान बाळकपणे जन्मे त्यारे ईन्द्रो तेमनी सामे भक्ति करे.. तो पछी केवळज्ञान थाय त्यारे
तत्त्वज्ञाननो सीधो विरोध न करी शके. मुनिवरो पण सर्वज्ञवीतराग भगवाननुं स्तोत्र बनावीने अंतरमां
पोतानी वीतरागताने घूंटे छे. ईन्द्रो तो स्तुति करे ज छे ने मुनिवरो पण भगवाननी स्तोत्र बनावीने अंतरमां
पोतानी वीतरागताने घूंटे छे. ईन्द्रो तो स्तुति करे ज छे ने मुनिवरो पण भगवाननी स्तुति करे छे. अहो!
ओळखीने, ‘मारे पण आवुं सर्वज्ञपणुं अने वीतरागता ज आदरणीय छे, बीजा कोई रागादि भावो आदरणीय
नथी’ –एवी श्रद्धा अने ज्ञान करतां कर्मनां तो खोखां ऊडी जाय छे. रागरहित स्वभावनुं भान थवा छतां
अस्थिरतानो अल्प राग रहे ते रागथी ऊंचा पुण्य बंधाई जाय छे, पण धर्मीने ते रागनी भावना नथी. घणुं
अनाज पाके त्यां साथे घास पण थाय, पण खेडुतनी द्रष्टि अनाज उपर होय छे तेम साधक भूमिकामां रागने
लीधे पुण्य थई जाय पण धर्मात्मानी द्रष्टि रागरहित स्वभाव उपर होय छे.
एवी ओळखाण करवी ते भगवाननी साची स्तुति छे.
ते कदी अस्त पामे नहि. हे प्रभो! आपना आवा त्रिकाळीज्ञानना महिमा पासे चार ज्ञाननो पण महिमा
अमने लागतो नथी, तो रागादिनो आदर तो होय ज क्यांथी? केवळज्ञानमां एक समयमां त्रण काळ त्रण लोक
जणाय छे. आ आत्माने सारमां सार वस्तु होय तो ते केवळज्ञान छे. हे नाथ! मने सम्यक्मति–श्रुतज्ञान छे
पण मारी मीट केवळज्ञान उपर छे. अंदर पूर्ण स्वभाव शक्ति पडी छे तेनुं भान छे, ने ते शक्तिमां लीन थईने
पूर्ण केवळज्ञान प्रगट करवानी भावना छे... आ अल्पज्ञान वर्ते छे तेनो महिमा नथी. –आम स्तुति करतां
आचार्यदेव कहे छे के ‘श्री शांतिनाथ भगवान अमारी रक्षा करो’ भक्तिमां तो निमित्तथी बोलाय, पण तेनो
मारी जे वर्तमानसाधक अवस्था छे तेमांथी हुं पाछो न पडुं ने स्वभावद्रष्टिना जोरे अप्रतिहतपणे आगळ ज
वधीने पूरो थाउं–एवी भावनाथी स्तुतिकार निमित्तथी कहे छे के हे शांतिनाथ भगवान! आप अमारी रक्षा
करो.
भगवान पासे जे जीव शरीरनुं रक्षण करवानी भावना करे छे तेने तो अशुभभाव छे; कोई कहे के शरीर