Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ९३ :
रहेतां ईन्द्रियदमननो भाव प्रगटे छे, तेनुं नाम संयम छे. ते संयमभाव आत्माना आश्रये छे, शरीरना आधारे
नथी. शरीरमां रोग–निरोग अवस्था थवी ते तेने आधीन छे, ने अंदर आकुळता के शांति करवी ते आत्माने
आधीन छे.
प्रश्न:– आत्मा तो अनंतबळनो धणी छे एम आप कहो छो ने?’
उत्तर:– हा, आत्मा अनंतबळनो धणी छे ए वात साची, पण ते बळ पोतामां के परमां? आत्मानी
शक्ति परमां कांई करी न शके. जड देह–मन–वाणी वगेरे उपर आत्मानो पुरुषार्थ कांई काम करे के असर करे
एवी मान्यता ते महा मूर्खता छे, जड–चेतनना जुदापणानुं पण तेने भान नथी. पोतामां अनंतज्ञान, सुख
वगेरे प्रगट करवानी अनंत शक्ति आत्मामां छे, पण शरीरादिमां फेरफार करवानी आत्मामां जरापण शक्ति
नथी. भगवान पासे पोताना अनंत केवळज्ञाननी भावना करवाने बदले शरीरनी ने पुण्यनी भावना करे तो
तेने साची भावना करतां ज नथी आवडयुं. जेम चक्रवर्ती राजा प्रसन्न थईने कहे के ‘मांग... मांग, तुं जे माग
ते आपुं.’ त्यारे कोई मुर्खो एम कहे के ‘काढी नांख वासीदुं.’ –तो तेने मागतां ज न आवडयुं. तेम
चैतन्यचक्रवर्ती भगवानमां केवळज्ञान आपवानी ताकात छे. तेने बदले भगवान पासे जईने कोई एवी
भावना करे के हे भगवान! शरीर सारूं राखजो ने पुण्य आपजो...’ तो ते मूर्ख छे, जेने जडनी अने रागनी
भावना छे ते भगवाननो भक्त नथी... वीतरागनो दास नथी, ते आत्मानो दास नथी पण जडनो दास छे.
* * * * *
(७) दुंदुभीना वर्णन द्वारा भगवानना दिव्यज्ञाननी स्तुति
जेने पोतानी पूर्णतानी भावना छे ते सर्वज्ञपरमात्मानी पूर्णताने ओळखीने तेमनी स्तुति करे छे. अहीं
श्री शांतिनाथ भगवाननी स्तुति पद्मनंदीआचार्य करे छे. तेमां पहेलांं श्लोकमां त्रण छत्रनुं वर्णन करीने
भगवानना केवळज्ञाननी स्तुति करी. हवे बीजा श्लोकमां देवदुंदुभीनुं वर्णन करीने भगवानना केवळज्ञाननी
स्तुति करे छे––
‘देवः सर्वविदेष एव परमो नान्यस्त्रिलोकीपतिः
संत्यस्यैव समस्ततत्त्वविषया वाचः सतां सम्मताः।’
–एतद्धोषतीव यस्य विबुधैरास्फालितो दुन्दुभिः
सोऽस्मानू पातु निरंजनो जिनपतिः श्री शांतिनाथः सदा।।२।।
हे नाथ! आपना समवसरणमां देवताओ वडे बजाववामां आवती दुंदुभी (दिव्य नगारुं) नो नाद
मानो के जगतमां आ ज वातने प्रगटपणे कही रह्यो छे के– ‘समस्त पदार्थोने जाणनारा, उत्कृष्ट अने
त्रिलोकपति परमदेव श्री शांतिनाथ भगवान ज छे, अने समस्ततत्त्वोनुं वर्णन करनारा तेमना ज वचनो
सज्जनोने मान्य छे; ए सिवाय बीजुं तो कोई समस्त पदार्थोने जाणनार, उत्कृष्ट के त्रिलोकपति नथी तेम ज
तेनां वचन संमत नथी.’ एवा निरंजन श्री शांतिनाथ भगवान अमारी रक्षा करो.
(८) नगाराना नादमां भगवाननी सर्वज्ञतानो पोकार
हे प्रभु! सत्पुरुषोने एक तारु ज शरण छे... प्रभु! तुं ज सर्वज्ञ वीतराग छो.. जुओ, भगवानना
समवरणमां देवदुंदुभी वागे छे तेनो शास्त्रमां लेख छे ने महाविदेहमां ते प्रमाणे थई रह्युं छे.. श्री सीमंधर भगवाननी
धर्मसभामां देवदुंदुभी–नगारां वागे छे. बापु! आ प्रत्यक्ष वगेरे प्रमाणथी सिद्ध छे. जगतना नाना गजमां आ वात
झट न बेसे, तेनो कल्पनानो गज तो खोटो पडे.. पण आ गज खोटो पडे तेम नथी. हे भगवान! तारा दुंदुभीना
नादमां अमने तो एवुं ज संभळाय छे के– ‘अरे! मनुष्यो ने देवो! –जगतना जीवो! तमारे शरणभूत होय तो आ
शांतिनाथ भगवान बिराजे छे ते ज छे, त्यां आवो.. अने तेमनां ज वचन सांभळो... केम के त्रण लोकनुं ज्ञान होय
तो तेमने ज छे. स्तुतिकार कहे छे के हे नाथ! आ नगारानो नाद आपनी सर्वज्ञतानो ज पोकार करी रह्यो छे. हे
जीवो! तमे अहीं आवो... आ भगवाननुं शरण ल्यो. जेने त्रणकाळ त्रणलोकनुं ज्ञान प्रगट छे एवा आ भगवाननां
वचनो ज संमत करो... त्रण लोकना नाथ ने परम देवाधिदेव होय तो आ सीमंधर भगवान छे... शांतिनाथ
भगवान छे. तमारे जो सर्वज्ञवीतराग पद जोईतुं होय तो अहीं आवो..
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)