जे देव तरीके माने छे तेने अरिहंतप्रभुनो आदर नथी. जे पोते रागमां वर्ती रह्या छे ते तो पोते ज अशरण छे,
तो ते बीजाने शरणभूत क्यांथी थाय? माटे स्तुतिकारे कह्युं के हे नाथ! देवाधिदेव सर्वज्ञ तो आप ज छो, संतोने
आपनुं ज शरण छे. अहो! अत्यारे महाविदेहमां तो गणधरो ने ईन्द्रो, संतो अने चक्रवर्तीओ सीमंधर प्रभुनो
अहीं तो भगवाननो विरह छे...छतां जे जीव भाव करे तेने भाव तो पोतामां छे ने! पोताना भावनो लाभ
पोताने छे.
कोई श्रोताजन कहे छे के हे नाथ! अमारे तो आजे अहीं ज सुवर्णपुरी बनी गई...अहीं ज अमारे
(–धर्मवृद्धि) थशे...जेनां भाग्य हशे ते जोशे...जे थाय छे ते अत्यारे जोई रह्या छे. अहो! आवा पंचकल्याणकना
वात करीए? साधारण प्राणीने आ वात न बेसे, पण प्रतीत करीने मानजो...ज्ञानीना गज जुदा होय छे,
अज्ञानीना गजे माप न आवे. वळी अत्यारे देश–काळ टूंका अने विषयकषायमां डूबेलां जीवोनी वृत्ति पण टूंकी,
तेने भगवाननी कल्पना पण शुं आवे? जेम
बापे प० हाथनो ताको लावीने घेर राख्यो होय,
नानो छोकरो पोताना नाना हाथथी मापीने कहे
के ‘आ तो १०० हाथनो छे, माटे बापा भूल्या
हशे!’ पण बाप तेने कहे छे के भाई! तारा
हाथनुं माप अमारा लेवड–देवडना व्यवहारमां
अज्ञानीनी कल्पनामां न आवे, पण तेथी
ज्ञानीनी वात खोटी नथी. वस्तुनुं स्वरूप समजे
तो बधी वात अंतरमां बेसी जाय...बापु!
अणसमजणे क्यांय आरा आवे तेम नथी. अरे!
अनंतकाळे आ मोंघो मनुष्यभव मळ्यो, वळी
आवा देव–गुरु भेट्या, सत् समजीने कल्याण
करवानां टाणां आव्यां छे; देवने दुर्लभ एवा
आवे! आजे शुक्रवार... ने सामा शुक्रवारे
भगवाननी प्रतिष्ठा जुओ, आ शुक्रवारे दाळिया
थवाना छे...आत्मानुं दाळदर टाळवुं होय तेने
टळी जशे. जुओ तो खरा, कुदरत शुं करे छे!
लोकोमां बोले छे के कांई ‘शकरवार’ थाय तेम छे
एटले के कांई आपणा दाळिया थाय तेवुं छे? तो
कहे छे के–हा, अहीं शुक्रवारे दाळिया थवाना छे...
दाळदर टळवानां छे...त्रिलोकनाथ भगवान
शुक्रवारनुं आव्युं छे. भगवान पोते साक्षात् न आवे पण ते त्रिलोकनाथ