Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ९५ :
दिनां साधन वर्ततां होय तेने अंदरनो राग टळ्‌यो नथी, अने जे रागी छे ते साचा देव नथी. एवा रागी जीवने
जे देव तरीके माने छे तेने अरिहंतप्रभुनो आदर नथी. जे पोते रागमां वर्ती रह्या छे ते तो पोते ज अशरण छे,
तो ते बीजाने शरणभूत क्यांथी थाय? माटे स्तुतिकारे कह्युं के हे नाथ! देवाधिदेव सर्वज्ञ तो आप ज छो, संतोने
आपनुं ज शरण छे. अहो! अत्यारे महाविदेहमां तो गणधरो ने ईन्द्रो, संतो अने चक्रवर्तीओ सीमंधर प्रभुनो
आदर करे छे...अहीं तो रांका...भिखारी...पुण्यमां नबळा ने टूंका मनवाळां जीवो भगवाननो शुं आदर करशे?
अहीं तो भगवाननो विरह छे...छतां जे जीव भाव करे तेने भाव तो पोतामां छे ने! पोताना भावनो लाभ
पोताने छे.
(११) ‘धर्मवृद्धिनो महोत्सव’...‘कल्याणनां टाणां’...‘आत्माना शुक्रवार’...‘भगवानना भेटा...’
कोई श्रोताजन कहे छे के हे नाथ! अमारे तो आजे अहीं ज सुवर्णपुरी बनी गई...अहीं ज अमारे
महाविदेह जेवुं बनी गयुं!
श्री गुरु कहे छे के भाई! आ तो हजी शरूआत छे. हजी ‘कळश’ चडवानो तो बाकी छे. आमां बे वात
आवी जाय छे एक तो श्री जिनमंदिर उपर कळश चडवानो बाकी छे ते; अने ए उपरांत हजु कांई कांई नवीन
(–धर्मवृद्धि) थशे...जेनां भाग्य हशे ते जोशे...जे थाय छे ते अत्यारे जोई रह्या छे. अहो! आवा पंचकल्याणकना
पवित्र उत्सवो माटे तो देव पण झंखना करे...ईन्द्रो पण भगवाननी प्रार्थना करे...अत्यारे आ भरतक्षेत्रे शुं
वात करीए? साधारण प्राणीने आ वात न बेसे, पण प्रतीत करीने मानजो...ज्ञानीना गज जुदा होय छे,
अज्ञानीना गजे माप न आवे. वळी अत्यारे देश–काळ टूंका अने विषयकषायमां डूबेलां जीवोनी वृत्ति पण टूंकी,
तेने भगवाननी कल्पना पण शुं आवे? जेम
बापे प० हाथनो ताको लावीने घेर राख्यो होय,
नानो छोकरो पोताना नाना हाथथी मापीने कहे
के ‘आ तो १०० हाथनो छे, माटे बापा भूल्या
हशे!’ पण बाप तेने कहे छे के भाई! तारा
हाथनुं माप अमारा लेवड–देवडना व्यवहारमां
काम न आवे, तेम ज्ञानीनी अपूर्व वात
अज्ञानीनी कल्पनामां न आवे, पण तेथी
ज्ञानीनी वात खोटी नथी. वस्तुनुं स्वरूप समजे
तो बधी वात अंतरमां बेसी जाय...बापु!
अणसमजणे क्यांय आरा आवे तेम नथी. अरे!
अनंतकाळे आ मोंघो मनुष्यभव मळ्‌यो, वळी
आवा देव–गुरु भेट्या, सत् समजीने कल्याण
करवानां टाणां आव्यां छे; देवने दुर्लभ एवा
टांणा छे. आवा टांणे भक्ति करवा देवो पण
आवे! आजे शुक्रवार... ने सामा शुक्रवारे
भगवाननी प्रतिष्ठा जुओ, आ शुक्रवारे दाळिया
थवाना छे...आत्मानुं दाळदर टाळवुं होय तेने
टळी जशे. जुओ तो खरा, कुदरत शुं करे छे!
लोकोमां बोले छे के कांई ‘शकरवार’ थाय तेम छे
एटले के कांई आपणा दाळिया थाय तेवुं छे? तो
कहे छे के–हा, अहीं शुक्रवारे दाळिया थवाना छे...
दाळदर टळवानां छे...त्रिलोकनाथ भगवान
भेटवाना छे...प्रतिष्ठानुं मंगलमुहूर्त बीज ने
शुक्रवारनुं आव्युं छे. भगवान पोते साक्षात् न आवे पण ते त्रिलोकनाथ
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)