के जे भगवाननी यथार्थ ओळखाण करे तेने भव न रहे...जन्म–मरण त्रणकाळमां न रहे...भगवानने ओळखीने
तेनां गाणां गाय तेने त्रणलोकमां भवमां रखडवानी शंका न रहे. वळी भगवाननी प्रतिष्ठाना दिवसे बीज छे.
जेम चंद्रनी बीज ऊगी ते वधीने पुनम थाय ज...तेम आ भगवानने ओळखीने तेमनी पोताना आत्मामां जे
चंद्र ऊग्यो ते वधीने पूर्णिमा–केवळज्ञान थया विना रहे नहीं. वळी उपरना भागमां श्री नेमनाथप्रभुनी प्रतिष्ठा
थशे, तेमां पण कुदरतनो केवो मेळ छे? जुओ, गया वर्षे, नेमनाथ प्रभुनी कल्याणक भूमि गीरनार पर्वत उपर
समश्रेणीनी टूंके बराबर फागण सुद बीजे हता...ने अहीं आ वर्षे बराबर फागण सुद बीजे ज सवारे श्री
नेमनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा थशे... समश्रेणीनी टूंके भगवाननी भक्ति अने आत्मानी धून करीने ज्यारे नीचे
आव्या त्यारे लोको होंशथी एम कहेता हता के ‘अमे तो जाणे मोक्षमां जई आव्या...तेवुं लागे छे.’ त्यां जे दिवस
हतो ते ज दिवसे अहीं भगवाननी प्रतिष्ठा थशे...मांगळिकमां बधो मेळ कुदरते थई जाय छे.
श्री जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो आवो योग महाभाग्य होय तेने मळे छे. शास्त्रमां प्रतिष्ठा
पासे आवेली आ लक्ष्मी कूलटा स्त्री समान अनित्य छे, ए लक्ष्मी क्यारे वही जशे तेनो भरोसो नथी.
तेथी हुं श्री वीतराग भगवाननी प्रतिष्ठा करावीने तेनो सदउपयोग करवा मांगु छुं; माटे मने आज्ञा
आपो.–एम आज्ञा लईने ते जीव भगवाननी प्रतिष्ठा करावे छे. श्री गुरु तेने कहे छे के तारुं जीवन धन्य
छे! भगवाननी प्रतिष्ठा थतां भक्तो कहे छे के अहो! आ वीतरागदेव पधार्या...आजे अमने भगवान
भेट्या...जेने अंतरमां पूर्णानंद परमात्म स्वभावनुं लक्ष थयुं होय, ने बहारमां निमित्त तरीके साक्षात्
परमात्माने न भाळे त्यारे ते प्रतिमामां प्रभुनी प्रतिष्ठा करे छे. हे नाथ! तारा वियोगमां तारी प्रतिष्ठा
करीने तने अमारा अंतरमां पधरावीए छीए.
लीधो दुःसम काळ...
जिन पूरवधर
विरहथी रे. दुलहो
साधन चालो रे...
चंद्राननजिन...
नाथ! आ
भरतक्षेत्रे तारा
विरह पड्या छे.
अहो! महाविदेहमां
जेना चरणनी सो
सो ईन्द्रो सेवा