Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ९६ : आत्मधर्म : ८९
तीर्थंकर भगवाननी आज्ञा अनुसारे श्री सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठा थवानी छे; तेमां एवा शुक्रवार थवाना छे
के जे भगवाननी यथार्थ ओळखाण करे तेने भव न रहे...जन्म–मरण त्रणकाळमां न रहे...भगवानने ओळखीने
तेनां गाणां गाय तेने त्रणलोकमां भवमां रखडवानी शंका न रहे. वळी भगवाननी प्रतिष्ठाना दिवसे बीज छे.
जेम चंद्रनी बीज ऊगी ते वधीने पुनम थाय ज...तेम आ भगवानने ओळखीने तेमनी पोताना आत्मामां जे
प्रतिष्ठा करे एटले के हुं पण भगवान जेवो छुं–एम स्वभावनुं भान करे तेना आत्मामां सम्यग्ज्ञानरूपी बीजनो
चंद्र ऊग्यो ते वधीने पूर्णिमा–केवळज्ञान थया विना रहे नहीं. वळी उपरना भागमां श्री नेमनाथप्रभुनी प्रतिष्ठा
थशे, तेमां पण कुदरतनो केवो मेळ छे? जुओ, गया वर्षे, नेमनाथ प्रभुनी कल्याणक भूमि गीरनार पर्वत उपर
समश्रेणीनी टूंके बराबर फागण सुद बीजे हता...ने अहीं आ वर्षे बराबर फागण सुद बीजे ज सवारे श्री
नेमनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा थशे... समश्रेणीनी टूंके भगवाननी भक्ति अने आत्मानी धून करीने ज्यारे नीचे
आव्या त्यारे लोको होंशथी एम कहेता हता के ‘अमे तो जाणे मोक्षमां जई आव्या...तेवुं लागे छे.’ त्यां जे दिवस
हतो ते ज दिवसे अहीं भगवाननी प्रतिष्ठा थशे...मांगळिकमां बधो मेळ कुदरते थई जाय छे.
(१२) जिनेन्द्र प्रतिष्ठा अने प्रतिष्ठाकारनुं वेदन
श्री जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो आवो योग महाभाग्य होय तेने मळे छे. शास्त्रमां प्रतिष्ठा
करावनार गृहस्थनुं वर्णन आवे छे. ते गृहस्थ श्री गुरु पासे जईने विनयथी कहे छे के–हे स्वामी! मारी
पासे आवेली आ लक्ष्मी कूलटा स्त्री समान अनित्य छे, ए लक्ष्मी क्यारे वही जशे तेनो भरोसो नथी.
तेथी हुं श्री वीतराग भगवाननी प्रतिष्ठा करावीने तेनो सदउपयोग करवा मांगु छुं; माटे मने आज्ञा
आपो.–एम आज्ञा लईने ते जीव भगवाननी प्रतिष्ठा करावे छे. श्री गुरु तेने कहे छे के तारुं जीवन धन्य
छे! भगवाननी प्रतिष्ठा थतां भक्तो कहे छे के अहो! आ वीतरागदेव पधार्या...आजे अमने भगवान
भेट्या...जेने अंतरमां पूर्णानंद परमात्म स्वभावनुं लक्ष थयुं होय, ने बहारमां निमित्त तरीके साक्षात्
परमात्माने न भाळे त्यारे ते प्रतिमामां प्रभुनी प्रतिष्ठा करे छे. हे नाथ! तारा वियोगमां तारी प्रतिष्ठा
करीने तने अमारा अंतरमां पधरावीए छीए.
भक्तो भगवान पासे कहे छे–हे नाथ! –
भरतक्षेत्र
मानव पणो रे...
लीधो दुःसम काळ...
जिन पूरवधर
विरहथी रे. दुलहो
साधन चालो रे...
चंद्राननजिन...
भरतक्षेत्रना
भक्तो कहे छे के हे
नाथ! आ
भरतक्षेत्रे तारा
विरह पड्या छे.
अहो! महाविदेहमां
बिराजता
चैतन्यमूर्ति प्रभु
जेना चरणनी सो
सो ईन्द्रो सेवा
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)