वियोग पड्यो...हे प्रभो! तारा आ जातना विरहथी अमारो काळ जाय छे...हे सीमंधर नाथ...तारो साक्षात्
पतिनो–विरह छे ते अहीं प्रतिष्ठा करीने टाळशुं हे नाथ! ज्यां आप साक्षात् बिराजो त्यां अमारा अवतार
नहि...अमे आपनाथी दूर पड्या तो पण हे स्वामी! अमे अमारा आत्मामां आपनी प्रतिष्ठा करीने अमारुं पूरुं
त्रणलोकमां फरे तेम नथी,–जेने माटे ईन्द्रा, गणधरो ने तीर्थंकरो साक्षी छे. अहीं जेवो आत्मस्वभाव कहीए
छीए तेवो एकवार पण समजे तो एवुं अपूर्व ज्ञान प्रगटे के बस! भवनो अंत आवी जाय. अहो! आवी
परम सत्य वात, आत्म कल्याणनी अपूर्व वात! पामर जीवो तेनो विरोध करी रह्या छे, धर्मना नामे हळाहळ
थई रह्युं छे.. ज्यां जुओ त्यां घणो फेरफार छे...धर्मनो यथार्थ मार्ग भूलीने कोई कांई माने ने कोई कांई माने..
जेने जेम फावे तेम मनावी रह्या छे... हे नाथ! तीर्थंकरना विरहे भरतक्षेत्रमां जुदा जुदा अभिप्राय थई गया...
परंतु हे प्रभु! आपना प्रतापे अमारा नीवेडा आवी गया...पार आवी गयो...आपना प्रतापे बधा नीवेडा अने
हे नाथ...आपनी दिव्य वाणीनो धोध छूटतो हतो अने त्यां तो अनेक संतो केवळज्ञान पामता... तेने बदले
अहींना प्राणीमां तो अल्प पुण्य ने अल्प पुरुषार्थ? छतां य–भले ने ते अल्प होय परंतु केवळज्ञानने
ओळखीने तेनी श्रद्धा छे ने! एटले ते पुरुषार्थ अल्प होवा छतां केवळज्ञान साथे संधिवाळो छे, एटले वच्चे
भंग पड्या विना पूर्ण केवळज्ञाननो भेटो थये छूटको! ते त्रणकाळ त्रणलोकमां न फरे... हे नाथ! पूर्णतानो संदेह
नथी.. पण अधूरे आंतरा पड्या पड्या छे.. ते आंतरो अत्यारे तो आपनी ‘प्रतिष्ठा’ करीने टाळीए छीए..
हे सीमंधरनाथ! महाविदेहमां ज्यां तारी ध्वनिनो धोध छूटे त्यां गणधरो झीले ने इंन्द्रो सेवे, तेनाथी
मरेला सिंहना चामडानुं बनावेलुं नगारुं पड्युं होय ते नगारा पासे बकरानां चामडानुं नगारुं न रही शके...
सिंहना चामडानुं बनावेलुं नगारुं होय तेना उपर ज्यां डांडी पडे त्यां तेना अवाजथी बकराना चामडानुं
बनावेलुं नगारुं फाटी पडे... तेम हे नाथ! हे जिनेन्द्र! तारा प्रताप सामे कोई न टकी शके... ज्यां तारी ध्वनिना
दिव्यनाद छूटे त्यां अज्ञानीओना अज्ञान तूटी पडे.. पाखंडीओनां पाखंड छूटी जाय... कुतर्कीओना कुतर्क नाश
पामे. प्रभु! आवो हो तो जगतमां एक तुं ज छो... तारा शरण विना कोई उपाये पूरुं थाय तेवुं नथी. तारा
समवसरणमां दिव्य दुंदुभी एम पोकार करी रह्यो छे के हे जीवो! तमारा बधा प्रमादकार्यो छोडीने अहीं आवो
अने मोक्षना साथीदार एवा आ भगवाननुं सेवन करो... तेमनो दिव्यध्वनि सांभळीने आत्मानी समजण
तेम तीर्थंकर भगवाननी दिव्यवाणी आवी, तेमांथी श्री कुंदकुंदाचार्यदेव समयसारनी रचना
करीने, अज्ञान अंधकारमां सूतेला जीवो–के जेने परमां कर्तापणारूप ममताथी मोहरूपी सर्पनुं
झेर चडयुं छे–तेओने अमृत संजीवनीरूप न्याय वचन वडे मंत्रेली कलमो (–गाथाओ)