उपदेश पण एम ज करी, निवृत्त थया; नमुं तेमने.
जे उपाय अहीं वर्णव्यो ते ज उपाय बधाय तीर्थंकरोए पोते कर्यो अने तेओए जगतना भव्य जीवोने एवो ज
उपदेश कर्यो...तेओने नमस्कार हो.
स्वभावने जाणीने तेनो ज आश्रय करो...अहीं आचार्यदेवने स्वाश्रित मोक्षमार्गनो महिमा आवतां कहे छे के
अहो, ते अरिहंतोने नमस्कार हो...अने तेमणे बतावेला मार्गने नमस्कार हो.
अन्य जीवोने माटे आपनी वाणीमां पण पराश्रयना भूक्का ज छे. आपनो दिव्य उपदेश जीवोने पराश्रय छोडावे
छे. आचार्यदेवने घणो स्वाश्रयभाव तो प्रगट्यो छे ने पूर्ण स्वाश्रयभाव प्रगट करवानी तैयारी छे, तेथी
स्वाश्रयीमुक्तिमार्गनो प्रमोद आवी जतां कहे छे के–अहो! जगतना जीवोने स्वाश्रयनो उपदेश आपनारा हे
अर्हंतो आपने नमस्कार हो. नमो...नमो! हे जिनभगवंतो...आपने नमस्कार करुं छुं.