Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: ९८ : आत्मधर्म : ८९
नमो अरिहंताणं
अर्हंत सौ कर्मो तणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निवृत्त थया; नमुं तेमने.
श्री प्रवचनसारनी ८०–८१मी गाथामां मोहनो सर्वथा नाश करीने संपूर्ण शुद्धात्मानी प्राप्ति माटेना
उपायनुं वर्णन करीने पछी आ ८२ मी गाथामां बधाय तीर्थंकरोने साक्षीपणे ऊतारतां श्री आचार्यदेवे कहे छे के
जे उपाय अहीं वर्णव्यो ते ज उपाय बधाय तीर्थंकरोए पोते कर्यो अने तेओए जगतना भव्य जीवोने एवो ज
उपदेश कर्यो...तेओने नमस्कार हो.
अरिहंतो कहे छे के अमे अमारा द्रव्यस्वभावनो आश्रय करीने केवळज्ञान पाम्या छीए अने हे जगतना
जीवो! तमे पण एम पोताना स्वभावनो ज आश्रय करो, स्वभाव आश्रित मुक्तिनो मार्ग छे माटे पुरुषार्थ वडे
स्वभावने जाणीने तेनो ज आश्रय करो...अहीं आचार्यदेवने स्वाश्रित मोक्षमार्गनो महिमा आवतां कहे छे के
अहो, ते अरिहंतोने नमस्कार हो...अने तेमणे बतावेला मार्गने नमस्कार हो.
श्री कुंदकुंदआचार्यदेव कहे छे के ‘णमो तेसिं’ ते सीमंधरादि अरिहंतोने नमस्कार हो. अहोहो, नाथ!
आपे आपना आत्मामां तो स्वभावनो संपूर्ण आश्रय प्रगट करीने पराश्रय भावोना भूक्का ऊडाड्या, अने
अन्य जीवोने माटे आपनी वाणीमां पण पराश्रयना भूक्का ज छे. आपनो दिव्य उपदेश जीवोने पराश्रय छोडावे
छे. आचार्यदेवने घणो स्वाश्रयभाव तो प्रगट्यो छे ने पूर्ण स्वाश्रयभाव प्रगट करवानी तैयारी छे, तेथी
स्वाश्रयीमुक्तिमार्गनो प्रमोद आवी जतां कहे छे के–अहो! जगतना जीवोने स्वाश्रयनो उपदेश आपनारा हे
अर्हंतो आपने नमस्कार हो. नमो...नमो! हे जिनभगवंतो...आपने नमस्कार करुं छुं.
(भगवान श्री सीमंधर जिन स्वागत अंक)