Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : ९९ :
अज्ञानभावे अनंत प्रकारना पराश्रयभावमां अज्ञानी जीवो रखडे छे. अहो, जगतमां आटला आटला
पराश्रयभावो, ते बधायथी छोडावीने आत्माने एक पोताना स्वभावना ज आश्रयमां लावी मूक्यो छे. हे
तीर्थंकरो! आप पोते पण स्वभावनी श्रद्धा अने स्थिरता करीने ज मुक्त थया छो अने आपनी वाणीमां
जगतना मुमुक्षुओने पण ए ज प्रकारनो उपदेश कर्यो छे. अहो, अरिहंतो! आपने नमस्कार...आपना
स्वाश्रितमार्गने नमस्कार मारो आत्मा स्वाश्रयनी साक्षी पूरतो आपना अप्रतिहतमार्गमां चाल्यो आवे छे.
हे नाथ! अमने स्वाश्रयनो उल्लास आवे छे. धन्य प्रभु तारा कथनने! तमने हुं नमस्कार करुं छुं.
अमारो आत्मा स्वाश्रयमां नमे छे, आपनी जेम अमे पण स्वाश्रयपूर्वक अर्हंतदशा प्रगट करवा तरफ आपना
मार्गे चाल्या आवीए छीए. अहो! आवा नमस्कार कोण करे?..आवो उल्लास कोने ऊछळे? जेणे पोताना
स्वभावनी श्रद्धाथी स्वाश्रय तरफ वलण कर्युं छे अने पराश्रयना अंशनो पण नकार कर्यो छे ते स्वाश्रयना
उल्लासथी अरिहंतोने नमस्कार करे छे.
अहो अरिहंतो! हुं आपने पगले पगले आवी रह्यो छुं. सर्वे अरिहंतोने मारा नमस्कार छे. ‘बधाय
अरिहंतोए आ एक ज मार्गथी पूर्णता करी छे अने तेओए उपदेशमां पण एम ज कह्युं छें–आम कहीने पछी ते
सर्वे अरिहंतोने आचार्यदेवे नमस्कार कर्या छे. आमां आचार्यदेवना ऊंचा भणकारा छे. ‘उपदेश पण एम ज
कर्यो’–आम कहीने आचार्यदेव उपदेशवाळा अरिहंतोनी एटले के तीर्थंकरोनी वात लेवा मांगे छे. तीर्थंकरोने
केवळज्ञान प्रगट्या पछी नियमथी दिव्यध्वनि छूटे छे ने ते ध्वनिद्वारा आवो ज स्वाश्रयनो मार्ग जगतना
मुमुक्षुओने उपदेशे छे. अने ते सांभळीने स्वाश्रय करनारा जीवो पण होय ज छे. ए रीते संधि वडे
स्वाश्रयमार्गनो अछिन्नप्रवाह बताव्यो छे.
जुओ, अहीं कुंदकुंदप्रभु मोक्षनो उपाय बतावे छे अने तेमां सर्वे तीर्थंकरोनी साख पूरे छे. पोतानो
आत्मा ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वरूप छे, तेने लक्षमां लईने तेना ज आश्रये शुद्धोपयोग प्रगट करीने, भेद अने
व्यवहारनो क्षय करीने भगवान अरिहंतोए केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे. त्रणेकाळे मोहनो क्षय करवानो आ एक
ज विधि छे. तीर्थंकरोए आ ज विधि कर्यो छे, अने आ ज विधि कह्यो छे. आ सिवाय बीजो कोई विधि मोक्ष
माटे छे ज नहि.
अहो भगवंतो! आपने नमस्कार हो. आपनो पवित्र उपदेश अमने अंतरमां रुच्यो छे अने अमने
अंतरमां स्वाश्रयनो आह्लाद ऊछळ्‌यो छे. प्रभो, अमे बीजुं तो शुं कहीए? नाथ! नमो भगवद्भयः भगवंतोने
नमस्कार हो. आ रीते, अरिहंतोनो उपदेश समजनार जीव स्वाश्रयना उल्लासथी भगवानने नमस्कार करे छे.
कोई पुण्यभावथी के निमित्तोना अवलंबनथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी पण पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायथी
अभेद स्वभावना आश्रये ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे. अमने आवो पवित्र उपदेश करीने स्वाश्रयनो
मार्ग दर्शाव्यो, ते माटे हे नाथ! तमने मारा नमस्कार छे. वर्तमान शुभविकल्प छे पण ते तरफ न वळतां
स्वभावना महिमा तरफ ज अमे वळीए छीए. स्वभावना आश्रये धर्मनी वृद्धि ज छे. जे दशा आपे प्रगट करी
तेने नमस्कार करीने अमे रागरहित चैतन्यस्वभावनो ज आश्रय अने विनय करीए छीए, विकल्पनो आदर के
आश्रय करता नथी. हे नाथ जिनेश! तमारो उपदेश सांभळीने अमने स्वभाव अने परभावनुं भेदज्ञान थयुं–
अमने निश्चय स्वाश्रय रागरहित स्वभाव मळ्‌यो तेथी अमे आपने नमस्कार करीए छीए...आपे दर्शावेला
मार्गे आवीए छीए.
स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान ने स्थिरता ए एक ज प्रकार मोक्षमार्गनो छे. ए प्रकारथी तीर्थंकरोए सर्व कर्मनो
क्षय करीने शुद्ध आत्मस्वरूप पोते अनुभव्युं छे. एवा तीर्थंकरो सर्वज्ञ अने वीतराग होवाथी परम आप्त छे,
जगतना जीवोने आत्महितना उपदेष्टा छे. तीर्थंकरनो उपदेश परम विश्वासयोग्य छे. तीर्थंकरोए शुं उपदेश
कर्यो?
भगवानना श्रीमुखे एम नीकळ्‌युं छे के, अमे जे उपदेश करीए छीए ते ज प्रमाणे आ काळना के
भविष्यकाळना मुमुक्षु जीवोने मोक्षनो उपाय छे. भविष्यमां पंचमकाळ कठण आवशे माटे ते काळनो उपाय
जुदो–एम भगवाने कह्युं नथी. भगवाननो उपदेश भविष्यकाळना जीवोने माटे पण एक ज प्रकारनो छे. धर्मनो
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)