भगवाननी भक्ति करवाथी कांई भगवान कोईने कंई आपी देता नथी. पण, जेवा भगवान तेवो हुं, भगवान
पण आत्मानी शक्तिमांथी ज थया छे–आवुं भान करीने पोते पोतामांथी धर्म काढे छे. लोको पण कहे छे के
‘कोईनुं आप्युं ताप्युं पहोंचे नहि’ एटले जो भगवान मुक्ति आपता होय तो वळी बीजो कोई आवीने ते
आश्रये प्रगटेली ते मुक्ति पण नित्य टकी रहे छे. पोताना आवा स्वभावनुं भान करे तो तेणे ‘भगवाननुं
शरण लीधुं’ एम व्यवहारथी बोलाय छे.
शक्तिरूपे दरेक आत्मा पोते ‘शांतिनाथ भगवान’ छे; ने व्यक्तिरूपे जे प्रगट परमात्मा थया छे एवा
त्रिलोकीनाथ देवाधिदेव भगवान्! आपने जो एकवार ओळखीने वंदना करे तो तेने जन्म–मरण न रहे. कई
रीते? – ‘हे नाथ! जेवो आपनो स्वभाव तेवो ज मारो स्वभाव छे, हुं शुद्ध पवित्रस्वरूप छुं, कोई बीजा पासेथी
मारे लेवुं नथी, मारी अखंड चैतन्य रिद्धि मारी पासे ज छे’ आवा भानसहित भगवानने नम्यो तेने भव रहे
नहि. भगवानने ‘त्रिलोकनाथ, त्रिलोकपति’ कहेवाय छे, त्यां भगवान कांई जडना के परना धणी नथी पण
तेमना दिव्य ज्ञानमां त्रणलोक प्रतिभासे छे माटे तेमने ‘त्रिलोकपति’ कहेवाय छे. आवा भगवानने ओळखीने
तेमनी भक्ति करतां ‘हुं ज मारो रक्षक छुं’ एम न कहेतां, ‘हे भगवान! आप अमारा रक्षक छो’:–एम
विनयना भावनी भाषा आवे छे.
भक्तिमां जे शुभराग छे तेनो आदर धर्मात्माने होतो नथी. अहो! जे भावे तीर्थंकरनामकर्म बंधाय के
आदर पासे ते कोई भावनो आदर तेमने होतो नथी. जे रागथी पुण्यनी प्रकृति बंधाय ते पण बंधनभाव छे,
धर्मीने ते रागनो आदर न होवा छतां, हजी वीतरागता पूरी थई नथी एटले अधूरी दशामां धर्मवृद्धिना
शुभविकल्पथी तीर्थंकरप्रकृति वगेरे बंधाई जाय छे. देवाधिदेव तीर्थंकरनो आत्मा ज्यारे माताना गर्भमां आवे
करुं, ते सिवाय बीजुं कांई जोईतुं नथी–एवी भावनामां वच्चे अल्प राग रह्यो तेनाथी तीर्थंकरप्रकृति बंधाई
गई...ने त्रिलोकपूज्य तीर्थंकरपद थयुं.
उत्तर:– अरे भाई! रागनी भावनावाळाने ए पद–नथी मळतां. जे रागथी तीर्थंकरादि पद मळे ए राग
निर्मळज्ञानघन आत्मा छुं, रागनो एक अंश पण मारो नथी’–एवा भान सहित धर्मनुं वलण छे त्यां कंईक
राग रही गयो ते प्रशस्त राग छे, ने ते रागमां पण आदरबुद्धि नथी, त्यां तीर्थंकरप्रकृति वगेरे पुण्य बंधाई
जाय छे. जे जीव आत्माना वीतरागी स्वरूपने तो समजे नहि ने रागने आदरणीय माने ते आत्मस्वरूपनो
भक्त नथी, वीतरागदेवनो सेवक नथी. जेने आत्मानी रुचि होय ते वीतराग परमात्मा सिवाय बीजा कोईना
गाणां न गाय, एना अंतरमां लक्ष्मी कुटुंबना गाणां न होय.
पाछळ दीकरा, मकान, लक्ष्मी वगेरे मूकीने चाल्यो जाय त्यां पाछळना लोको कहेशे के ‘बापा लीलीवाडी
गयो... जीवनमां आत्मानी ओळखाण न करी तो तेनी शी गणतरी? पाछळ बधुं रह्युं तेमां आत्माने शो
लाभ? ए तो आत्माना भान विना मरीने क्यांय चाल्यो गयो.