Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४७७ : १०५ :
ओशीयाळो माने छे, पोते पोताने गाळ दे छे–एने धर्म थतो नथी. जेम सूरज सामे धूळ उडाडनार खरेखर पोते
पोतानी आंखमां ज धूळ नांखे छे, तेम भगवानने रागी माननार खरेखर पोते पोताना आत्माने ज गाळ दे छे.
हे नाथ! आपने तो कोई प्रत्ये राग के द्वेष नथी, आप पूर्ण सर्वज्ञताने पाम्या छो, ने हुं हजी अधूरो छुं, तेथी
आपने ओळखीने पूर्णतानी भावनाथी आपनी भक्ति करुं छुं. पूर्णतानी भावनाथी सो ईन्द्रो ने गणधरादि संतो
चरणकमळ सेवे तेमना प्रत्ये आपने राग नथी, ने कोई निंदा करे तो तेना प्रत्ये द्वेष नथी. मारुं पूर्ण स्वरूप
अंतरमां छे ते प्रगटतां वच्चे विकल्प ऊठ्यो छे एटले हे वीतराग नाथ! वच्चे आपने राखीने वंदन करुं छुं.
परमार्थे तो भगवाननी भक्ति एटले आत्मानी ओळखाण अने बहुमान; तेमां वच्चे विकल्प ऊठ्यो ते व्यवहार
भक्ति छे, राग छे; ते रागना फळमां पुण्य बंधाय अने बाह्यमां साक्षात् भगवाननो भेटो थाय.. ने अंदरनी
परमार्थ भक्तिना फळमां पोतानी परमात्मदशा प्रगटे. आत्मा शुद्ध छे तेनी श्रद्धा अने स्थिरतारूपी भक्ति जामी
जाय तो अंदरना भगवाननो भेटो थाय.
शांतिनाथ भगवाननी स्तुति करतां आचार्यदेव कहे छे के हे नाथ! आपनां ज वचनो सज्जनोने मान्य
छे; केम के तत्त्वनो निर्णय करवामां भगवाननुं वचन काम करे छे तेवुं अन्य कोईनुं वचन उपयोगी थतुं नथी.
माटे सज्जनो आपनी वाणी सिवाय कोईने आदरता नथी. ‘एवा शांतिनाथ भगवान अमारुं रक्षण करो;
रक्षणनो अर्थ शुं? के मारा आत्मस्वरूपनी जेटली दशा पामेलो छुं त्यांथी हेठे पडुं नहि ने आगळ वधीने पूरो
थाउ–एनुं नाम आत्मानुं रक्षण छे. पोते पोताना भावथी तेवुं रक्षण करे छे त्यां विनयथी कहे छे के ‘श्री
शांतिनाथ भगवान अमारुं रक्षण करो.’
(२१) दिव्य सिंहासन उपर बिराजमान निरालंबी जिनेन्द्रनी स्तुति
पहेलां श्लोकमां त्रण छत्रनुं वर्णन करीने भगवाननी स्तुति करी, बीजा श्लोकमां देव दुन्दुभीनुं वर्णन
करीने भगवाननी स्तुति करी, हवे त्रीजा श्लोकमां सिंहासननुं वर्णन करीने भगवाननी स्तुति करे छे–
दिव्यस्त्रीमुखपंकजैकमुकुर प्रोल्लासिनानामणि
स्फारीभूतविचित्ररश्मिरचिता नम्रामरेन्द्रायुधैः।
सच्चित्रीकृतवातवर्त्मनिलसत्सिंहासने यः स्थितः
सोऽस्मानू पातु निरंजनो जिनपतिः श्री शांतिनाथः सदा।।३।।
देवांगनाओना मुखकमळरूपी एक दर्पणमां देदीप्यमान अनेक प्रकारना रत्नोना चारे बाजु फेलायेला
किरणो वडे रचायेलुं तथा नमतुं जे ईन्द्रधनुष, तेनाथी चित्रविचित्र थयेला आकाशमां दिव्य सिंहासन उपर जे
बिराजमान छे एवा निरंजन जिनेन्द्रदेव श्री शांतिनाथ भगवान सदा अमारी रक्षा करो.
जुओ, आचार्यदेवनी भक्ति! त्रिलोकनाथ तीर्थंकर भगवान धर्मसभामां बिराजता होय छे ने ईन्द्र–
ईन्द्राणी तेमने नमस्कार करे छे. ते देवांगनाना मुखने दर्पणनी उपमा छे, ते दर्पणमां रत्नोना प्रतिबिंब पडे छे,
ने तेना प्रकाशनी झांईथी आकाशमां जुदी जुदी जातना रंग थाय छे तेथी ईन्द्रधनुष जेवुं लागे छे. –एवा
आकाशनी वचमां दिव्य–सिंहासन उपर हे नाथ! आप बिराजो छो. छत्र, दुंदुभी ईन्द्राणी के सिंहासन वगेरे
जोतां अमने तो एक भगवान ज याद आवे छे.. एक भगवानननी ज मुख्यता भासे छे. हे नाथ! तारा
पुण्यनी अलौकिक ऋद्धिमां ज्यां नजर करुं छुं त्यां सारमां सार एवा एक आपने ज देखुं छुं. समवसरणमां
भगवान सिंहासनथी पण चार आंगळ ऊंचे आकाशमां निरालंबीपणे बिराजे छे. ते निरालंबी भगवानने
जोतां, सारमां सार निर्मळ निरालंबी भगवान आत्मानुं लक्ष थाय छे. जेम भगवाननो देह निरालंबी छे तेम
आत्मानो स्वभाव पण निरालंबी छे. जेम समवसरणमां संयोगने न जोतां भगवानने ज मुख्य भाळुं छुं तेम
अहीं पण, संयोगने न जोतां अंदरमां चैतन्य भगवान बिराजे छे तेने ज भाळुं छुं. आ देह–मन–वाणी वगेरे
चित्र विचित्र पदार्थो छे, ते संयोग विनानो एकलो भगवान अंदर बिराजे छे त्यां ज मारी द्रष्टि पडी छे. आवो
आत्मा सारमां सार छे. हे नाथ! हुं आवा पूर्ण वीतराग स्वभावनो दास छुं, ए सिवाय अधूरानो दास नथी.
––आम पहेलांं पूर्ण स्वभावने श्रद्धामां–रुचिमां लेवो ते धर्म छे.
(२२) धर्म
धर्म एटले शुं? के ‘
धारयतीति धर्मः’ एटले के जे
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)