Atmadharma magazine - Ank 089
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १०६ : आत्मधर्म : ८९
धारी राखे ते धर्म छे. अखंड शुद्ध आत्माने सम्यक् श्रद्धामां धारी राखवो ने अवगुणमां न पडवा देवो तेनुं नाम
धर्म छे. पहेलांं ऊंधी श्रद्धामां विषय–कषाय वगेरेनुं धारण हतुं ते अधर्म हतो ने तेनाथी जीव संसारमां पडतो
हतो. तेने बदले हवे चैतन्यमूर्ति वीतरागी आत्मस्वभावने श्रद्धामां धारण कर्यो ने आत्माने संसारमां पडतां
धारी राख्यो–अटकाव्यो–ते धर्म छे. पहेलांं आवी आत्मानी श्रद्धा करवी ते भगवाननी साची भक्ति छे. आ
सिवाय भगवाननी भक्तिथी शरीरादि सामग्रीनी रक्षा थवानुं भगवान पासे मांगे तो ते अज्ञानी छे,
भगवाननो भक्त नथी.
(२३) भगवानना भक्तनी भावना केवी होय?
‘अहो! मारो आत्मा भगवान जेवो सर्वज्ञ वीतराग परिपूर्ण छे’ –आम समजीने जे भगवाननी
भक्ति करे ते जीव जगतनी कई चीजनी स्पृहा राखे? –जगतनी कई चीजनो आदर करे? अत्यारे तो कोई
एम पण माने छे के ‘भगवान पासे भक्तामर–स्तोत्र बोलीए तो अन्न–वस्त्र वगरना न रहीए.’ अरे
भाई! शुं भगवान पासे ते आवी आशा होय? ज्ञानी तो भावना करे छे के हे नाथ! अमारुं रक्षण करो
एटले के अमारा आत्मामां श्रद्धा–ज्ञान ने वीतरागता प्रगट थाव... वीतरागी परिणाममां भगवाननुं
निमित्त छे एटले, ‘घीना घडा’ नी जेम, ‘भगवान अमारी वीतरागतानुं रक्षण करो’ एम व्यवहारथी
कहेवाय छे, पण खरेखर भगवान पासेथी कांई लेवानुं नथी, आत्मानो पोतानो स्वभाव क्यां अधूरो छे
के ते कोईक पासे रक्षण मांगे? धर्मसभामां वीतरागी त्रिलोकनाथ परमात्माए ज्यारे धर्मनी प्ररूपणा करी
त्यारे जे जीवो स्वभाव समज्या तेओ धर्म पाम्या... एटले भगवान तेना धर्ममां निमित्त थया. त्यां ते
जीवोने भगवान प्रत्ये भक्ति ऊछळे छे. भगवानना उपदेश वखते ते झीलीने धर्म पामनारा जीवो न होय
एम बने नहि.
(२४) तीर्थंकरनी वाणी छूटे त्यां धर्मनी वृद्धि करनारा जीवो होय ज.
महावीर भगवानने वैशाख सुद ६ समे केवळज्ञान थयुं पण छांसठ दिवस सुधी वाणी न छूटी... ईन्द्र
विचारे छे के–आ शुं? भगवानने त्रिकाळी ज्ञान थयुं... शरीरना रजकणो स्फटिक जेवा ऊजळा थई गया... देह
अधर आकाशमां पांचसो धनुष ऊंचे चडी गयो...समवसरणनी रचना थई... बार सभा भराणी... छतां
भगवाननी वाणी कां न छूटे? तेणे उपयोग मूकीने ज्ञानमां जोयुं के भगवाननी उत्कृष्ट वाणी झीली शके तेवा
गणधरपदने लायक पुरुषनी सभामां गेरहाजरी छे. अने एवा समर्थ श्री ईन्द्रभूति (–गौतम) छे. पछी ईन्द्र
तेमनी पासे जईने, भगवान साथे वादविवाद करवाना बहाने तेने तेडी लावे छे... मानस्थंभ पासे आवतां ज
ईन्द्रभूतिनुं मान गळी जाय छे... भगवाननी दिव्यवाणीनी धारा छूटे छे ने ईन्द्रभूति गणधर थाय छे... पहेलांं
तो ते पहेली भूमिकामां हता ने हवे छठ्ठी–सातमी भूमिकामां विचरवा लाग्या. अहीं वाणीनी लायकात अने
सामे गणधरपदनी लायकात–एवो मेळ सहेजे थई जाय छे. तीर्थंकरभगवाननी देशना छूटे त्यां ते झीलीने
धर्मनी वृद्धि करनारा जीवो–गणधर वगेरे तैयार होय ज छे. भगवाननी वाणी नीकळे ने सभामां धर्मनी वृद्धि
न थाय–एम कदी बने नहि. सामे गणधर न हता तो अहीं भगवाननी वाणी पण न नीकळी, जुओ मेळ!
वाणी झीलनार न होय ने भगवाननी वाणी एम ने एम नीकळी जाय–एम कदी बने नहि. आ जे वात
कहेवाय छे ते त्रणे काळे सत्य छे, पूर्व साधकदशामां धर्मवृद्धिना भावे वाणी बंधाणी, ते वाणी बीजाने धर्म
पमाडनारी छे... तीर्थंकर भगवाननी वाणी धर्म पामवानुं उत्कृष्ट निमित्त छे... ते वाणी छूटे ने धर्मनो लाभ
पामनार जीवो न होय एम बने नहि. जेम–ज्यां चक्रवर्ती पाके त्यां चौद रत्नो पण जगतमां पाके छे, तेम ज्यां
तीर्थंकर पाके त्यां गणधर वगेरेनी लायकातवाळा जीवो पण पाके छे. वीतरागनी उत्कृष्टवाणी ने जीवोनी
लायकातनो मेळ खातां मोक्षना कणसलां पाके छे. जेम कल्पवृक्ष पाके ने तेनुं फळ लेनारा न होय तेम न बने.
तेम ज्यां तीर्थंकर भगवान पाके त्यां तेमनो उपदेश झीलीने मोक्ष पामनारा जीवो न होय एम बने नहि. एवा
श्री सीमंधरादि तीर्थंकर भगवान अत्यारे महाविदेहमां साक्षात् बिराजे छे, अने त्यां घणा जीवो मोक्ष पामे छे..
ते सीमंधर भगवाननी आपणे अहीं स्थापना थवानी छे.
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)