फागण : २४७७ : १०७ :
... श्री सीमंधरनाथना प्रतिष्ठा प्रसंगे पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी वहेली...
भक्ति–सरिता
तीर्थधाम सोनगढमां भगवान श्री सीमंधर प्रभुनी पंचकल्याणक
प्रतिष्ठाना अठ्ठाई महोत्सवमां, वीर सं. २४६७ ना माह वद ०)) ना रोज
प्रभुश्रीना जन्मकल्याणक प्रसंगे पद्मनंदी पचीसीना शांतिनाथस्तोत्र उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन
(२प) भगवाननो जन्म अने ईन्द्रोनी भक्ति
आ वीतराग भगवाननी स्तुति चाले छे. जे वीतरागस्वरूपना गाणां गाय तेना अंतरमां रागनी
पुण्यनी होंस न होय. जे जीव वीतरागताना गाणां गाय ते संसार भावनी होंस केम करे? एकनी रुचि थतां
बीजानी रुचि टळी जाय छे. असंख्य देवोना लाडा शक्रेन्द्र ने ऐशानेन्द्र पण भगवाननो जन्म थतां मोटो
जन्मोत्सव करवा आवे छे ने जन्माभिषेक करीने भक्तिथी थै थै करतां नाचे छे. हे तीर्थंकरनाथ! तारी भक्तिनी
शी वात करीए? साधारण जीवोना काळजे तारी भक्तिनी वात बेसवी कठण पडे तेवी छे.
तीर्थंकरना पुण्य अलौकिक होय छे...जेनाथी तीर्थंकरपद चक्रवर्तीपद; ईन्द्रपद, बळदेव–वासुदेव पद मळे
एवां पुण्य आत्मज्ञानी सिवाय बीजाने न बंधाय. भगवानने पूर्वे आत्मानुं भान हतुं... वीतरागस्वरूपनी
ओळखाण हती.. ते ओळखाण पोते पुण्यबंधननुं कारण नथी पण रागनो भाग बाकी हतो ते रागथी पुण्य
बंधाया. जेम वहाला पुत्रने जोतां मातानुं हैयुं प्रेमथी नाची ऊठे तेम भगवानने जोतां ईन्द्रो भक्तिथी नाची
ऊठे छे.
जेने आत्माना वीतराग स्वरूपनी प्रीति थई छे तेने त्रिलोकनाथ तीर्थंकर वीतराग परमात्माने देखतां
अंतरमां भक्तिनो पोरह चडे छे. ईन्द्र–ईन्द्राणी जेवा एकावतारी धर्मात्माओ पण तीर्थंकरनो जन्म थतां भक्ति
करवा आवे छे. ईन्द्राणी ते बाळकने लईने ईन्द्रना हाथमां आपे, ईन्द्र हजार नेत्र बनावीने भगवानने नीरखे
तोय तेने तृप्ति न थाय. पोते समकिती छे ने एक भवे मोक्ष जवाना छे पण ज्यां भगवानने हाथमां तेडे छे त्यां
अंदरथी पानो चडी जाय छे... त्यां वीतरागताना बहुमानना जोरे भवना भूक्का ऊडी जाय छे.
(२६) धर्मीने भगवाननी भक्ति ऊछळ्या विना रहेशे नहि.
त्रण खंडना धणी श्री कृष्ण, तेनी माता देवकी; तेने नानपणथी कृष्णनो वियोग पड्यो छे... पछी ज्यारे
घणा काळे कृष्णने देखे छे त्यारे तेने देखतां ज ‘अहो! मारा कृष्ण’ एम पुत्र प्रेमथी तेनुं हैयुं फूलाय छे ने
(भगवान श्री सीमंधर जिन–स्वागत अंक)