Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४७७ : १२९ :
“हे शिष्य! तुं
आवा
आत्मानी श्रद्धा कर”
[श्री समयसार गा. ४९ : ‘भगवान आत्मा छ प्रकारे अव्यक्त छे.’
ए विषय उपरनुं सुंदर प्रवचन : कारतक वद १२]
जिज्ञासु शिष्ये एम प्रश्न पूछयो छे के रागादि भावो छे ते जीव नथी तो एक टंकोत्कीर्ण परमार्थ स्वरूप
जीव केवो छे? –तेनुं लक्षण शुं छे? तेना उत्तरमां, श्री आचार्य भगवान आ गाथामां जीवना परमार्थ स्वरूपनुं
वर्णन करे छे. आत्माना आवा परमार्थ स्वरूपने जाणीने तेनी श्रद्धा करवाथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
‘छ द्रव्य स्वरूप लोक जे ज्ञेय छे अने व्यक्त छे तेनाथी जीव अन्य छे माटे अव्यक्त छे.’ आखो लोक
पोताथी बाह्य छे माटे ते व्यक्त छे, ने लोक अपेक्षाए पोते अंर्ततत्त्व छे तेथी आत्मा अव्यक्त छे. ते अव्यक्त
स्वभावने प्रतीतमां लेतां परमार्थ आत्मानी प्रतीति थाय छे. बाह्य तत्त्वोने व्यक्त कह्यां ने ज्ञायक एवा अंर्त–
तत्त्वने अव्यक्त कह्युं.
जो के आत्मा पोते पोतानुं स्वज्ञेय पण छे, पण ते स्वज्ञेय क्यारे थाय?–ज्यारे अंतरमां ज्ञायक स्वभाव
तरफ वळे त्यारे ज पोते पोतानुं स्वज्ञेय थाय छे. एक समयनी व्यक्त पर्यायमां त्रिकाळी तत्त्व आखुं आवी जतुं
नथी, पण एक समयनी पर्यायमां त्रिकाळी तत्त्व जणाय छे खरुं. आखुं तत्त्व ज्ञानमां जणाई जाय छे ए
अपेक्षाए व्यक्त कही शकाय, पण एक समयनी व्यक्त पर्यायमां ते आखुं तत्त्व प्रगटी जतुं नथी माटे भगवान
आत्मा अव्यक्त छे. एक समयनी व्यक्त–पर्यायनी प्रतीत करवाथी आखो आत्मा प्रतीतमां आवतो नथी माटे
आत्मा अव्यक्त छे–आवा आत्मानी प्रतीत करवी ते सम्यग्दर्शन छे.
आत्मा वर्तमान एक समयमां ज त्रिकाळी सामर्थ्यथी पूरो छे, ते शक्तिरूप होवाथी अव्यक्त छे. व्यक्त
एवा पर्यायनी द्रष्टि छोडावीने पूर्ण स्वभाव शक्तिनी द्रष्टि कराववा कह्युं के भगवान आत्मा अव्यक्त छे. ते
अव्यक्तनी श्रद्धा करनार तो वर्तमान व्यक्त पर्याय छे; कांई अव्यक्तनी श्रद्धा नथी थती, पण व्यक्त द्वारा
अव्यक्तनी श्रद्धा थाय छे. ते अव्यक्त अने व्यक्त बंने वर्तमानमां ज छे.
वस्तुना स्वभावने श्रद्धामां ल्ये तो सम्यग्दर्शन थाय; ते श्रद्धा करनारी वर्तमान पर्याय छे अने जेनी
श्रद्धा करवानी छे ते वस्तु पण वर्तमानमां ज छे. वर्तमान पर्याय द्वारा श्रद्धा थाय छे तो ते श्रद्धानुं कारण पण
वर्तमानमां ज होवुं जोईए अने जेनी श्रद्धा करवानी छे ते आखी वस्तु पण वर्तमान ज होवी जोईए. जेम
श्रद्धा वर्तमान छे तेम जो श्रद्धानो विषय पण वर्तमान ज पूरो न होय तो ते बंनेनी एकता क्यांथी थाय?
त्रिकाळी शक्तिनो पिंड धु्रव चैतन्य बिंब वर्तमान आखो अव्यक्त छे–ते श्रद्धानो विषय छे, अने तेनी श्रद्धा ते
सम्यग्दर्शन छे. श्रद्धा ते कार्य छे ने धु्रव द्रव्य तेनुं परमार्थ कारण छे. ते बंने वर्तमानमां ज छे. जो श्रद्धानुं
परमार्थ कारण (–अथवा श्रद्धानो विषय) वर्तमान परिपूर्ण न होय तो सम्यग्दर्शन रूप कार्य पण थई शके
नहि. श्रद्धा–पर्याय ते व्यक्त छे ने आखुं द्रव्य वर्तमान वर्ततुं अव्यक्त छे; ते अव्यक्तना आधारे थता व्यक्त
द्वारा अव्यक्त द्रव्यनी प्रतीत थाय छे. श्रद्धा पोते वर्तमान, अने जेनी श्रद्धा करवानी छे ते जो वर्तमान न होय,
तो तेनी श्रद्धा ज कई रीते थई शके? आखी वस्तु वर्तमान अव्यक्त (–शक्तिरूप) पडी छे तेनी श्रद्धा करवामां
कोई पर द्रव्यनी के रागनी तो अपेक्षा नथी पण ते वर्तमान वर्ततुं स्वद्रव्य पोते ज श्रद्धानुं परमार्थ कारण छे;
तेना ज आश्रये परमार्थ श्रद्धा थाय छे. ते कारण जो वर्तमानमां न होय तो श्रद्धा रूप कार्य पण वर्तमानमां
क्यांथी थाय? जो द्रव्य आखुं य वर्तमान ज न पड्युं होय तो श्रद्धा शेमां लक्ष करीने टके?–श्रद्धाने कोनो
आधार? श्रद्धानो आधार द्रव्य छे, ते पूरुं द्रव्य वर्तमानमां ज छे, तेना तरफ वळीने तेनी प्रतीत करतां
सम्यक्श्रद्धा थाय छे. तथा ए ज प्रमाणे सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र वगेरे पण वर्तमान पूर्ण द्रव्यना आश्रये ज
थाय छे. कार्य वर्तमान रूप छे तेम तेनुं जे परमार्थ कारण ते पण वर्तमानमां ज शक्ति