Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १२८ : आत्मधर्म : ९०
अंतरमां एवी भावना जागती हती के ‘अहो नाथ! सीमंधर जिनेन्द्र! आत्मस्वरूपना आश्रये प्रगटेला दर्शन
अने ज्ञानरूप बे चैतन्यदीपकोनी पवित्र ज्योति अखंडपणे जवलित रहो....तेमां कदी भंग न पडो.’
छेवटे, ‘लहरायेगा....लहरायेगा....झंडा श्री भगवान का’ ए जैन झंडा गायन गवायुं हतुं.
माह वद अमास रात्रे भजनमंडळीए नेम–राजुलनो संवाद कर्यो हतो. तेम ज आरतिनृत्य थयुं हतुं.
फागण सुद एकम श्री प्रवचनमंडपनी पांचमी वार्षिक जयंती हती. सवारे पूजन बाद श्री समयसारजीनी
रथयात्रा नीकळी हती. भजनमंडळीनी भक्तिथी रथयात्रा घणी शोभती हती. प्रवचन बाद श्रुतपूजन थयुं हतुं.
बपोरे, प्रभावना अंगनी मुख्यतावाळो, हरिषेण चक्रवर्तीनो संवाद बालिकाओए भजव्यो हतो. तेमां–
‘हरिषेन को माता को जहां सौत सताया
रथ जैन का तेरा चले पीछैं यों बताया;
उस वक्त के अनसन में सती तुम को जो ध्याया,
चक्रीश हो सुत उसके ने रथ जैन चलाया
.
ए प्रसंग गूंथवामां आव्यो हतो. संवादमां आवेला, मुनिवरोना दर्शननी भावना भरेली भक्तिनां
द्रश्यो तेम ज मुनिदशाना अमृतपानना वर्णनथी पू. गुरुदेवना अंतरमां जे भावनाओ उल्लसी हती तेनी झलक
बपोरना प्रवचनमां जणाती हती.
रात्रे, ‘तीर्थधाम सोनगढ’नी फील्म देखाडवामां आवी हती. ते फील्म द्वारा गुरुदेवना महान
धर्मप्रभावने जोईने दूरदूरना जिज्ञासुओ पण घणा प्रसन्न थया हता.
फागण सुद २ : आजे सीमंधर भगवान पधार्यानो मंगल दिन हतो. सवारमां देव–गुरु–शास्त्रनां दर्शन
माटे आवेलुं भक्तमंडळ भगवानना जिनमंदिरने प्रदक्षिणा देतुं हतुं ते द्रश्य घणुं भक्ति भर्युं हतुं....
‘सुंदर स्वर्णपुरीमां स्वर्ण रवि आजे ऊग्यो रे
भक्तजनोना हैये हर्षानंद अपार....
श्री सीमंधर प्रभुजी पधार्या छे अम आंगणे रे....’
–ईत्यादि भक्तिभावनापूर्वक भगवाननुं स्वागत करीने पछी अति भावपूर्वक दर्शन–स्तवन अने पूजन
थयुं, अने त्यारबाद जिनमंदिर उपर नूतनध्वजरोहण थयुं. आकाशमां फरकतो नूतन धर्मध्वज अति शोभतो
थको महान धर्मप्रभावने जणावी रह्यो हतो.
प्रवचन बाद जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी हती. रथयात्रामां भजनमंडळी द्वारा थती
‘गा....रे....भैया....गा....रे....भैया....गा....रे....भैया....
गा....प्रभु....गुण....गा....तुं....समय....न....गमा....’
ईत्यादि भक्तिए सौने आकर्षी लीधा हता.
बपोरे प्रवचन बाद भक्ति थई हती तेमां, तीर्थंकर प्रभुनो जन्म थया पछी ईन्द्र–ईन्द्राणी भक्ति पूर्वक
तांडव नृत्य करे छे ते द्रश्य भजन मंडळीए बताव्युं हतुं.
रात्रे राजकोटनी पंचकल्याणकनी फील्म बताववामां आवी हती.
अजमेरनी भजनमंडळीए पांच दिवस सुधी भक्तिनी धून जमावी हती. समवसरण देखीने तेओ खूब
आनंदित थया हता. फागण सुद त्रीजे सांजे अजमेर तरफ पाछा जती वखते ते मंडळीना प्रधान मंत्री डॉ. सौभाग्य
मलजी दोशी पू. गुरुदेव श्री पासे विदाय लेवा आव्या त्यारे अति गळगळा थई गयेल ने तेमनी आंखमां आंसु आवी
गया हता. पू. गुरुदेवश्रीए तेमने कह्युं: ‘तमे तो आवीने सारी भक्ति करी, आवी भक्ति आ जिंदगीमां जोई न हती.’
सुवर्णपुरीमां सीमंधरनाथ भगवान पधार्याना आ महा–उत्सवनी शोभारूपी मंदिर उपरना मंगळ कलश
तरीके फा. सुद ४ ना रोज जिनमंदिरमां विशिष्ट भाव भरेली उल्लासमय भक्ति थई हती.... ने संतोना श्री
मुखथी गुरुदेवनो महान प्रभाव वगेरेना मंगळ जयकार साथे ए उत्सव पूरो थयो हतो.
ए रीते महोत्सवना दिवसोमां ज्ञान अने भक्तिनी मोटी धून जामी हती. पू. गुरुदेवश्रीना श्री मुखथी
वहेती ज्ञानसरिता अने बीजी जिनेन्द्र भक्तिनी सरिताए बंने पावन सरिताओनो मुमुक्षुजनोना
हृदयसरोवरमां संगम थतो हतो.
सीमंधर भगवान पधार्याना दस वर्षनी पूर्णतानो आ पवित्र उत्सव यादगार बनी रहेशे.