Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 21

background image
: चैत्र : २४७७ : १२७ :
महोत्सवना समाचार

फागण सुद बीजे, तीर्थधाम सोनगढमां सीमंधरनाथ प्रभुजी पधार्याने दस वर्ष पूरां थया, ने अगियारमुं
वर्ष शरू थयुं. फागण सुद बीज आवता पहेलांं थोडा दिवस अगाउ आ प्रतिष्ठामहोत्सवनो अठ्ठाई–महोत्सव
ऊजववानुं नक्की थयुं... अने भगवान पासे भक्तिमां ‘कंकु छांटी कंकोतरी मोकलो...प्रभु भक्तो आवे सहु
भावे....’ ए स्तवन (स्तवनावली पृ. १२३) द्वारा भक्तजनोने भावभरी कंकोत्री मोकलाणी.
माह वद ७
फागण सुद बीज नजीक आवी रही हती... तेथी आजे भक्ति द्वारा सीमंधरनाथ भगवानने महाविदेहथी
विहार करवा माटे पत्र लख्यो के ‘स्वस्ति श्री महाविदेह क्षेत्रे बिराजमान हे सीमंधरनाथ! आपना भरतक्षेत्रना
भक्तोनी विनंति स्वीकारीने आप वहेला वहेला विहार करीने आ भरते पधारो..... ’
माह वद ९
आजथी समूहपूजन, विशेष भक्ति अने सांजे सांजी ईत्यादि कार्यक्रम साथे अठ्ठाई महोत्सवनी शरूआत थई.
माह वद १३
आज सवारे ‘श्री कुंदकुंद श्राविकाशाळा’नुं उद्घाटन थयुं. सवारे पू. गुरुदेवश्रीना मंगल प्रवचन बाद,
श्राविकाशाळानुं उद्घाटन करवा माटे प्रवचनमंडपेथी मुमुक्षुओनुं सरघस नीकळीने श्राविकाशाळाए आव्युं हतुं...आ
वखते अजमेरनी भजनमंडळी पण आवी गई हती ने सरघसमां साथे जोडाई हती. श्राविकाशाळाना उद्घाटन बाद
पू. गुरुदेवश्रीए त्यां मांगलिक तरीके
‘वंदित्तु सव्वसिद्धे उपर प्रवचन करीने सिद्धोनी स्थापना करी हती.
आ प्रसंगे, मुमुक्षु बेनोना रहेवासनी अगवडता दूर करवा २० नवा रूम बंधाववानुं नक्की थतां, ते माटे
एक रूमना खर्चना रू. १५००–तरीके नीचे मुजब रकमोनी जाहेरात थई हती:
३००० /– शेठ काळीदास राघवजी तरफथी रूम २ ना
१५०० /– शेठ बेचरलाल काळीदासना धर्मपत्नी हरकोर बेन तरफथी रूम १ ना
३००० /– शेठ नेमिदास खुशालदास तथा तेमना धर्मपत्नी कंचनबेन तरफथी रूम २ ना
३००० /– शेठ खीमचंद जेठालाल तथा तेमना मातुश्री तरफथी रूम २ ना
१५०० /– शेठ मोहनलाल वाघजीभाई तरफथी रूम १ ना
१२००० /–
उपर प्रमाणे ८ रूमनी रकमो नोंधाणी छे.
माह वद १४ :
चालु कार्यक्रम उपरांत आजे बपोरे १ थी २ निर्विचिकित्सागुणसूचक उदयन राजानो संवाद बाळकोए
भजव्यो हतो. तेमां पांच वर्षना बाळके पण प्रशंसनीय काम कर्युं हतुं.
बपोरे प्रवचन बाद भजनमंडळ द्वारा जिनेन्द्र भक्ति थई हती; ते वखते ‘गोदी ले ले....गोदी ले ले....
गोदी ले ले....जी’–ए भक्ति द्वारा जन्मकल्याणक प्रसंगनुं वर्णन कर्युं हतुं; अने तेमां ज्यारे ‘ईन्द्राणी बाल–
तीर्थंकरने गोदीमां ल्ये छे’ ए द्रश्य आव्युं त्यारे मुमुक्षु भक्तो अति आनंदित थया हता. ते उपरांत मंडळीए
जन्माभिषेक वगेरे द्रश्यो पण भक्ति भरेला नृत्य द्वारा देखाडया हता.
सांजे नेमनाथ प्रभुजी पासे ‘ओ....! नेमिजिनेश्वरजी....’ ए स्तुति द्वारा राजीमतिनी वैराग्यभरी
विनतिरूप भक्ति करी हती.
रात्रे ‘सर्पनृत्य’ना द्रश्य द्वारा जैनधर्मनो महिमा बताव्यो हतो. एक व्यक्तिने सर्प करडतां ते बेभान थई जाय
छे, ने कोई जिनेन्द्रभक्त त्यांथी नीकळतां करुणाबुद्धिथी जिनेन्द्रभक्तिनो श्लोक बोलीने तेना उपर जळ छांटे छे ने तेनुं
झेर ऊतरी जतां ते जिनेन्द्रदेवनी अति प्रेमपूर्वक भक्ति करे छे.–आवुं द्रश्य सर्पनृत्यमां बताववामां आव्युं हतुं.
पछी ‘आरतिनृत्य’ थयुं हतुं. तेमां बे हाथमां बे दीपको अखंड जलता राखीने प्रभुजी सन्मुख
भक्तिनृत्य कर्युं हतुं....ए द्रश्य जोतां जिज्ञासु भक्तोने