Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १३२ : आत्मधर्म : ९०
कूवामां पड्यो छे, तेमांथी तेने केम बहार काढवो तेनी आ वात छे. पहेलांं जेवो छे तेवा परिपूर्ण स्वभावनी
श्रद्धा करे तो ते श्रद्धाना बळे जेवो छे तेवो परिपूर्ण आखे आखो आत्मा चोराशीना कूवामांथी बहार नीकळी
जाय. पोताना आत्मा उपर दया लावीने, पोताना आत्माने चोराशीना अवतार रूपी कूवामांथी बहार काढवा
माटे जगतनी दरकार छोडीने–कडडीया करीने–अंदर ऊतरवा जेवुं छे.
* * * * *
अहीं ‘अव्यक्त’ विशेषणना छ बोलथी आत्मानो स्वभाव समजावे छे. तेमांथी बे बोल थया छे; हवे
त्रीजो बोल कहे छे.
‘चित्सामान्यमां चैतन्यनी सर्व व्यक्तिओ निमग्न (अंतर्भूत) छे माटे अव्यक्त छे.’ बीजा बोलमां
विकारी भावोने आत्माथी अन्य कह्या हता अने आ बोलमां निर्मळ पर्यायो आत्मामां अभेद थाय छे–एम कहे
छे. पर्याय ते स्वभावमां ज एकतावाळी थाय छे, अव्यक्त–तत्त्वथी तेनी पर्यायो जुदी पडती नथी. एटले व्यक्त
पर्यायना भेदोथी द्रव्य भेदाई जतुं नथी माटे आत्मा अव्यक्त छे. माटे पर्यायने जुदी पाडीने पर्यायने जोवानुं
नथी रहेतुं पण द्रव्यमां ज जोवानुं रहे छे.
वस्तु नित्य टकीने परिणमे छे. जो वस्तु परिणमती न होय तो आ श्रद्धा, ज्ञान वगेरे परिणामो ज
साबित न थाय. चेतन शक्ति ते कारण छे ने निर्मळ पर्याय कार्य छे, ते कारण–कार्य परमार्थे जुदां नथी केम के
पर्यायो द्रव्यमां ज अंतर्भूत थाय छे. वळी श्रद्धा–ज्ञान वगेरे पर्यायरूप कार्य वर्तमान व्यक्त छे, तो तेना
कारणरूप अव्यक्त द्रव्य पण वर्तमान ज होवुं जोईए.
श्रद्धा पर्याय प्रगटी तो ते श्रद्धानुं आखुं कारण वर्तमानमां छे.
ज्ञानपर्याय व्यक्त थई तो ते ज्ञाननुं कारण पूरी ज्ञान शक्ति वर्तमानमां छे.
आनंद प्रगट्यो तो ते आनंदना कारणरूप पूर्ण आनंद स्वभाव छे.
ए प्रमाणे अनंत शक्तिनो पिंड परिपूर्ण स्वभाव छे, ते अप्रगट छे–अव्यक्त छे–सामान्यरूप छे; अने
पर्यायो प्रगट छे–व्यक्त छे–विशेषरूप छे. सामान्य स्वभावमां ज बधी पर्यायो अंतर्मग्न थाय छे माटे ते कारण
अने कार्य जुदां पडतां नथी. व्यक्त पर्याय जेटलुं तत्त्व नथी पण आखुं अव्यक्त चैतन्यतत्त्व छे, ते ज त्रिकाळ
एकरूप परमार्थ जीवतत्त्व छे. ‘त्रिकाळ’ कहेतां ‘वर्तमान आखो’–एम पूर्णता बताववी छे, पण काळनुं लंबाण
नथी बताववुं. त्रणे काळना सामर्थ्यनो पिंड वर्तमानमां छे. वस्तु ‘वर्तमान पूरी’ छे तेने अहीं अव्यक्त कह्युं छे.
वर्तमानमां आखो–अखंड छुं–एवी द्रष्टि कर. ‘आ राग छे, तेना फळमां स्वर्ग मळशे ने भगवान पासे
जईशुं’ एम तो न जो, पण वर्तमान साधक पर्याय छे ने मोक्ष पर्याय भविष्यमां थशे–एम पर्यायना भेदने पण
मुख्यपणे न जो’ आखुं तत्त्व वर्तमान अव्यक्त छे तेनी सामे जो–तेनी प्रतीत कर.
(१) ज्ञेयो व्यक्त छे तेनाथी ज्ञायकतत्त्व भिन्न छे माटे अव्यक्त छे.
(२) विकारी भावो व्यक्त छे, तेनाथी ज्ञायकतत्त्व भिन्न छे माटे अव्यक्त छे.
(३) पर्याय व्यक्त छे ते द्रव्यमां ज निमग्न होवाथी आत्मा अव्यक्त छे.
–ए प्रमाणे अव्यक्तना त्रण बोल थया.
* * * * *
हवे चोथो बोल कहे छे–
‘क्षणिक व्यक्ति मात्र नथी माटे अव्यक्त छे.’ जुओ, आचार्यदेवे द्रव्य अने पर्याय बंनेने भेगां ने भेगां
राखीने वात करी छे. क्षणिक व्यक्ति ते पर्याय छे, तेने न माने अने तत्त्वने सर्वथा कूटस्थ ज माने तो ते स्थूळ
भूल छे. पर्याय छे खरी पण ते क्षणिक पर्याय जेटलुं ज आखुं तत्त्व नथी. जो क्षणिक व्यक्तिने नहि माने तो ते
आखा अव्यक्त आत्माने नहि मानी शके. अने जो क्षणिक व्यक्ति जेटलो ज मानीने आखा अव्यक्त स्वभावने
नहि माने तो तेने पण पूरुं तत्त्व प्रतीतमां नहि आवे. पूरा तत्त्वने प्रतीतमां लीधा वगर साची श्रद्धा के धर्म
थाय नहि.
आ समज्या विना परमार्थे केवळी भगवानने पण मान्या न कहेवाय. जुओ, केवळी कोण होय? केवळ
एटले एकला स्वद्रव्यना अवलंबने जेने पूर्ण पर्याय व्यक्त थई गई ते केवळी छे. ते पूर्ण पर्याय क्यांथी
आवी? –के पूर्ण शक्तिमांथी. एटले पर्यायनी व्यक्तिने