पर्याय शेमांथी आवशे?–बीजी क्षणे तो तत्त्वनो नाश थई जशे! माटे क्षणिक पर्याय जेटलो ज आत्मा नथी, पण
भगवान आत्मा अव्यक्त छे. आत्माने–‘अव्यक्त’ कह्यो तेनो अर्थ एम न समजवो के ते ज्ञानमां जणातो
नथी. ज्ञानमां तो ते पूरेपूरो जणाय छे तेथी ते अपेक्षाए तो ज्ञानमां ते व्यक्त छे. पण क्षणिक पर्यायमां पोते
आखो आवी जतो नथी माटे तेने अव्यक्त विशेषणथी ओळखाववामां आवे छे.
द्रष्टिमां आवती नथी. तेथी पर्यायनी बुद्धि छोडावीने वस्तुनी द्रष्टि कराववा कह्युं के आत्मा क्षणिक पर्याय मात्र नथी.
आखी वस्तु अव्यक्त छे, ते वस्तुनी द्रष्टि करो. पर्याय तो क्षणिक बदलती छे, तेना आश्रये तो क्षणिक व्यक्तिनी ज
प्रतीत थशे पण आखुं तत्त्व प्रतीतमां नहि आवे केम के तत्त्व क्षणिक व्यक्ति मात्र नथी; एक पर्याय उपरथी लक्ष
छूटी जवा छतां अंतरमां द्रव्यनुं अवलंबन छूटतुं नथी माटे आत्मा क्षणिक पर्याय जेटलो व्यक्त नथी पण अव्यक्त
छे. एवा त्रिकाळी आखा अव्यक्त आत्मानी प्रतीत करवी ते ज सम्यक्श्रद्धा छे.
‘व्यक्तपणुं तथा अव्यक्तपणुं भेळां मिश्रितरूपे तेने प्रतिभासवा छतां पण तेकेवळ व्यक्तपणाने
कार्य बंने वर्तमानमां एक साथे छे, तेमने काळभेद नथी ने ते बंनेना ज्ञाननो पण काळ भेद नथी. द्रव्य–पर्याय
बंने एक साथे छे अने ज्ञानमां ते बंने एक साथे प्रतिभासे छे. बंने एक साथे जणावा छतां एकली पर्यायने ज
जाणतो नथी माटे आत्मा अव्यक्त छे.
होवा छतां, एकली पर्यायने ज जाणतो नथी, पण द्रव्यना ज्ञानसहित पर्यायनुं ज्ञान करे छे. जुओ, सम्यक् श्रद्धा
ज्ञान पर्याय छे ते आखा द्रव्यने कबूले छे, एटले ते पर्यायने जाणतां तेना विषयरूप आखा द्रव्यनुं ज्ञान पण
तेमां आवी जाय छे–परंतु तेथी ‘ज्ञान एकली व्यक्त पर्यायने ज जाणे छे ने अव्यक्त द्रव्यने नथी जाणतुं’ –एम
नथी. ज्ञान तो अव्यक्त द्रव्य अने व्यक्त पर्याय–बंनेने जाणे छे. ज्ञानमां द्रव्य–पर्याय बंने एक साथे जणातां
होवा छतां, ते ज्ञान अव्यक्त द्रव्यनी तरफ वळीने ते द्रव्यना ज्ञान सहित पर्यायने जाणे छे. एकली व्यक्त
पर्यायने जाणतां परमार्थ आत्मा जणातो नथी पण अव्यक्त द्रव्यना ज्ञान सहित पर्यायने जाणनारा ज्ञानमां ज
अव्यक्त छे. एकली पर्यायने जाणतां भगवान आत्मानुं स्वरूप जणातुं नथी, पण द्रव्यना ज्ञान सहित पर्यायने
जाणे तो भगवान आत्मानुं स्वरूप जणाय छे.