वगरना भिन्न भिन्न ज मानवामां आवे तो तेमां दोषो आवे छे. ते
दोषो अहीं बतावे छे–
छे, ने आत्मानी धु्रवताना आधारे सम्यक्त्वनो उत्पाद थाय छे. आत्मानी धु्रवताना आधार वगर अने
मिथ्यात्वना व्यय वगर एकला सम्यक्त्वना उत्पादने ज गोते तो ते उत्पाद नहि मळे. धु्रवना आधार वगर
शेमां उत्पाद थशे? अने मिथ्यात्व पर्यायनो अभाव थया वगर सम्यक्त्व पर्यायनो उत्पाद क्यांथी थशे? नवी
पर्याय उत्पन्न थवानुं कारण जूनी पर्यायनो व्यय छे, ने नवी पर्यायनो उत्पन्न थवानो आधार ‘धु्रव’ छे. धु्रवना
उत्पाद ज न थाय; अने आत्मानी धु्रवता वगर ज जो कोई सम्यक्त्वनो उत्पाद माने तो तेने असत्नी उत्पत्ति
थवानो प्रसंग आवे.
धर्मनी उत्पत्ति नहि थाय. जो धु्रवना आधार वगर ज उत्पत्ति थाय तो असत्नी उत्पत्ति थाय.
नहि मळे पण आत्मानी धु्रवताना आधारे अने आकुळताना अभावमां सुख मळशे. धु्रवता ते सुखना
उत्पादनो आधार छे, ने आकुळतानो व्यय ते सुखनी उत्पत्तिनुं कारण छे. ए बंनेने न माने तो सुखनी उत्पत्ति
ज न थाय. परना आश्रयना व्ययथी, ने पोतानी धु्रवताना आश्रयथी सुखनो उत्पाद थाय छे. एटले सुख माटे
धु्रवनी रुचि ज करवानुं आव्युं. अहीं केटलाक दाखला कहेवाया ते, प्रमाणे बधांय द्रव्योमां समये समये जे उत्पाद
थाय छे ते धु्रव अने व्यय वगर थतो नथी, एम समजवुं. भाई! जो तारे शांति प्रगट करवी होय तो तुं तारा
धु्रवतत्त्वमां ते शोध. धु्रवतत्त्वना आधारे ज शांतिनी उत्पत्ति थशे. अशांतिनो अभाव ते शांतिनी उत्पत्तिनुं
कारण कह्युं छे; पण ते अशांतिनो अभाव अने शांतिनी उत्पत्ति क्यारे थाय?–के जो धु्रवतत्त्वनी द्रष्टि करे तो. ए
रीते शांति माटे धु्रवस्वभावनी द्रष्टि करवानुं ज आव्युं.
धु्रववाळुं छे एटलुं ज साबित कर्युं हतुं ने आ १०० मी गाथामां वधारे स्पष्टता करीने द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–
धु्रवने एक साथे बतावे छे. जो उत्पाद–व्यय–धु्रवने एक साथे ज न मानो तो वस्तु ज साबित थती नथी, ने
दोष आवे छे, तेनुं आ वर्णन चाले छे.
एवी माटी वगर ज घडा उत्पन्न थवा मांडे. आत्मामां सम्यग्दर्शननी उत्पत्ति चेतननी नित्यताना आधार
विना, अने मिथ्यात्वना व्यय विना थई शके नहीं. पर पदार्थनी रुचिरूप पूर्वनी मिथ्याभ्रांतिना नाश