Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४७७ : १५३ :
विना सम्यकत्वनी उत्पत्ति गोते तो ते मळशे नहीं; ने चैतन्यस्वरूप धु्रव आत्माना अवलंबन विना पण
सम्यग्दर्शन नहि मळे.
सम्यक्त्वनी उत्पत्तिनी साथे ज आत्मानी धु्रवता अने मिथ्यात्वनो व्यय होय छे; ते बंनेने मान्या विना
सम्यक्त्वनो उत्पाद सिद्ध नहि थाय. माटीमां, माटीपणानी धु्रवता अने पिंड–अवस्थाना व्यय वगर घडानी
उत्पत्ति सिद्ध थाय नहीं. अने जो जगतमां घडारूप एक भावनी उत्पत्ति न थाय तो जगतमां सम्यक्त्व,
सिद्धदशा वगेरे कोई भावोनी उत्पत्ति ज नहि थाय. तेम ज जो माटी वगर ज घडो थाय तो आकाशनुं फूल पण
थाय एटले के वस्तुनी हयाती वगर–अद्धरथी ज नवा नवा भावो उत्पन्न थवा मांडे,–आत्मा वगर ज सम्यक्त्व
ऊपजे–ए रीते मोटो दोष आवे छे. आत्मानी धु्रवताना अवलंबन वगर ज कदी सम्यक्त्वनी उत्पत्ति थाय नहीं.
परथी लाभ थशे एवी जे मिथ्यारुचि छे ते परसन्मुख रुचिना अभाव वगर अने स्वद्रव्यनी धु्रवताना
अवलंबन वगर समकितनी उत्पत्ति थई शकशे नहीं.
तेम सम्यग्ज्ञाननी उत्पत्ति बाबत : धु्रव ज्ञानानंद आत्माना अवलंबनथी, अने अज्ञानना व्ययथी
सम्यग्ज्ञाननी उत्पत्ति थाय छे. धु्रव चेतन विना अने अज्ञानना व्यय विना सम्यग्ज्ञाननी उत्पत्ति शोधे तो ते
मळशे नहीं.
तेम चारित्रनी उत्पत्ति बाबत : बहारनी क्रियामां के शरीरनी नग्न अवस्थामां आत्मानुं चारित्र नथी.
चारित्र एटले आत्मानी वीतरागपर्याय; ते वीतरागपर्याय रागना अभावथी अने धु्रव चिदानंद आत्माना
अवलंबनथी ऊपजे छे, महाव्रत वगेरेना रागथी ते ऊपजती नथी. धु्रवतानुं अवलंबन अने रागनो अभाव–
ए बंने विना वीतरागभावनी उत्पत्ति थई शके नहीं.
ए ज प्रमाणे केवळज्ञाननी उत्पत्ति धु्रव चैतन्य–स्वभावना अवलंबन विना अने पूर्वनी अपूर्ण ज्ञान–
दशाना व्यय विना थती नथी. आत्मानी धु्रवता रहीने अने अल्पज्ञतानो व्यय थईने पूर्णज्ञाननी उत्पत्ति थाय छे.
छेल्ली सिद्ध दशा,–ते पण आत्मानी धु्रवता अने संसारदशानो व्यय–ए बंने सहित ज थाय छे.
आमां धु्रवता ते भावसाधन छे ने व्यय ते अभावसाधन छे.
उपरना द्रष्टांतो प्रमाणे जगतना जड के चेतन बधा भावोना उत्पादमां समजवुं. कोई पण भावनो
उत्पाद वस्तुनी धु्रवता विना अने पूर्व भावना व्यय विना होतो नथी.
जो माटी वगर ज घडा उत्पन्न थवा मांडे तो तो आकाशपुष्पनी जेम वस्तु वगर ज जगतमां अवस्थाओ
थवा मांडशे. जेम आकाशनां फूल नथी तेम धु्रवस्वभाव वगर पर्यायनो उत्पाद थतो नथी. धु्रव आत्माना
अवलंबन वगर सम्यक्त्वपर्यायनो उत्पाद थाय नहि. जगतमां जो ससलानां शींगडां थाय, काचबाना वाळ
थाय के आकाशनां फूल थाय तो धु्रवना अवलंबन वगर सम्यक्त्व थाय.–ते वात कदी बने नहि. धु्रवतत्त्व वगर
एकला शून्यमांथी ज कोई भावनी उत्पत्ति थाय नहीं. माटे उत्पाद साथे धु्रव तेम ज व्ययने पण मानवा
जोईए. आवुं ज उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप वस्तुस्वरूप छे, सर्वज्ञदेवना ज्ञानमां आ ज प्रमाणे जणायुं छे, तेमनी
वाणीमां आ ज रीते आव्युं छे, संतोए पण ए ज रीते जाणीने कह्युं छे ने शास्त्रोमां पण ए ज कह्युं छे.–आवा
वस्तुस्वरूपने जे नथी जाणतो ते खरेखर देव–गुरु–शास्त्रने जाणतो नथी.
जुओ भाई! सत् सरळ छे, सहज छे, सुगम छे. पण अज्ञानताथी विषम मानी लीधुं छे तेथी कठण
लागे छे. सत्समागमे धीरो थईने समजे तो सत् सहेलुं छे, सहज छे. आ वस्तुस्वभाव समज्या वगर कोई
रीते कल्याण थतुं नथी.
वस्तु एक समयमां उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वरूप छे. विकारनी रुचिनो अभाव अने नित्य आत्माना अवलंबन
वगर सम्यक्त्वनी उत्पत्ति थती नथी. वस्तुमां जो धु्रव अने व्यय न होय तो उत्पाद थाय नहीं. ए प्रमाणे एक
उत्पादनी वात करी, अने एकलो उत्पाद मानवामां दोष आवे छे ते बताव्युं. हवे व्ययनी वात करे छे:
[] एकलो व्यय मानवामां आवता दोष
धु्रव अने उत्पाद वगरनो एकलो व्यय मानवामां पण दोष आवे छे. धु्रव अने उत्पाद वगर एकलो
व्यय न होय.
कोई कहे: माटीमां पिंडपर्यायनो नाश थयो पण घटपर्यायनी उत्पत्ति न थई तेम ज माटी कायम न