स्वपदार्थनी रुचि ऊपजी नथी ने आत्मानुं कायमपणुं भास्युं नथी;–तो तेनी वात खोटी छे. जे क्षणे परमां
सुखबुद्धिनो नाश थयो ते ज क्षणे आत्मानी रुचि न थाय अने आत्मानी धु्रवतानो आधार न भासे–एम बने
नहि. सम्यकत्वनो उत्पाद ने आत्मानी धु्रवता वगर मिथ्यात्वनो व्यय होय नहीं.
जगतमां कारणना अभावने लीधे कोई भावोनो नाश ज न थाय; अथवा तो सत्नो ज सर्वथा नाश थई जाय.
स्वनी रुचिना उत्पाद वगर अने धु्रव आत्माना अवलंबन वगर ज जो कोई मिथ्यारुचिनो व्यय करवा मागे तो
व्यय थई शके ज नहि, अथवा तो मिथ्यारुचिना नाश भेगो आत्मानो य नाश थई जाय. माटे धु्रव अने उत्पाद
ए बंने भावो वगरनो एकलो व्यय होतो नथी. एम बधा भावोमां समजवुं.
मिथ्यात्व थशे.
धु्रवता–ए बंनेने मान्या विना पोताना अस्तित्वने ज नहि मानी शकाय, अने राग–द्वेषनो नाश पण
सिद्ध नहि थाय. जो धु्रवपणुं न माने तो चेतननी धु्रवताना अवलंबन वगर राग–द्वेषनो नाश थाय नहि.
जो धु्रव वगर ज राग–द्वेषनो नाश थवानुं माने तो राग–द्वेषनो नाश थतां आत्मानुं अस्तित्व ज न रह्युं!
अने जो वीतरागतानो उत्पाद न माने तो राग–द्वेषनो नाश ज न थाय, केम के बीजा भावनी उत्पत्ति
वगर पहेलांंना भावनो नाश ज न थाय. रागनो व्यय ते वीतरागतानी उत्पत्तिरूप छे ने तेमां
चैतन्यपणानी धु्रवता छे. धु्रवना लक्षे, वीतरागतानी उत्पत्ति थतां, रागनो व्यय थाय छे. ए रीते उत्पाद–
व्यय ने धु्रव त्रणे एक साथे छे. वीतरागताना उत्पाद वगर रागनो व्यय थई शके नहि अने ए प्रमाणे
जगतमां मिथ्यात्व, अज्ञान, शरीर, घडो वगेरे कोई भावनो व्यय थाय नहि–ए दोष आवे. अने चेतननी
धु्रवता वगर ज राग–द्वेषनो नाश थाय तो ते राग भेगो सत् आत्मानो य नाश थई गयो, एटले धु्रव
वगर व्यय मानतां जगतना बधा भावोनो नाश थई जशे.–ए मोटो दोष आवे छे. माटे वस्तुमां उत्पाद–
व्यय–धु्रव त्रणे एक साथे ज छे–एवुं वस्तुस्वरूप समजवुं जोईए.
आवे छे. अने धु्रवता वगर राग द्वेषनो नाश थवानुं माने तो तेनी श्रद्धामां आत्मानो नाश थई जाय छे. जो के
आत्मानो तो नाश थतो नथी, पण आत्मानी धु्रवताना अवलंबन वगर राग–द्वेषनो नाश करवानुं जे माने छे
तेनी मान्यतामां आत्मानो ज अभाव थई जाय छे, एटले के तेनी मान्यता मिथ्या थाय छे.
स्वभावना अवलंबन वगर राग–द्वेषनो नाश करवानुं माने ते पण मूढ छे. जड कर्मोनो नाश ते पुद्गलनी
धु्रवताने अने तेनी नवी पर्यायना उत्पादने अवलंबे छे. आत्माना वीतरागभावथी पुद्गलमां कर्मदशानो व्यय
थयो–एम खरेखर नथी. हा, आत्मामां धु्रवना आश्रये वीतरागतानी उत्पत्ति थतां रागनो व्यय थाय छे.
वस्तुनां उत्पाद–व्यय–धु्रवने ते वस्तुनी साथे ज संबंध छे पण एक वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रवने बीजी वस्तु साथे
कांई संबंध नथी.