नथी. दरेक वस्तुमां समये समये स्वतंत्र पोताथी ज उत्पाद–व्यय–धु्रव थाय छे. आवी ज वस्तुस्थिति छे; कोई
ईश्वर के कोई निमित्त तेनां उत्पाद–व्यय–धु्रवमां कांई करता नथी. एक एम कहे के, आखी वस्तुने बीजाए
बनावी, अने बीजो एम कहे के, वस्तुनी अवस्थाने बीजाए बनावी,–तो ते बंनेनी मिथ्या मान्यतामां परमार्थे
धु्रवता न रहे तो तो व्यय थतां सत्नो ज नाश थई जाय, एटले जगतना बधा पदार्थोनो नाश थई जाय.
चैतन्यनी धु्रवता रहीने अने सम्यक्त्वभावनी उत्पत्ति थईने ज मिथ्यात्वभावनो व्यय थाय छे.
धु्रवने एकबीजा वगर माने तो ते पण वस्तुने जाणतो नथी. देव–गुरुने कारणे पोतामां सम्यक्त्वनो उत्पाद
थवानुं माने तो तेने सम्यक्त्वनो उत्पाद साबित थतो नथी. तेम ज पोतामां मिथ्यात्वनो व्यय ने आत्मानी
धु्रवता–ए बे बोल वगर सम्यक्त्वनो उत्पाद साबित थतो नथी. ए ज प्रमाणे मिथ्यात्वनो व्यय पण
सम्यक्त्वनो उत्पाद अने चैतन्यनी धु्रवता वगर साबित थतो नथी.
ते धर्मनी उत्पत्तिनुं कारण छे. पूर्व पर्यायनो विनाश ने उत्तर पर्यायनी उत्पत्ति ते बंनेने अरसपरस एकबीजानुं
कारण कह्युं छे. आत्मानी धु्रवताना अवलंबने मिथ्यात्वनो नाश थयो ते सम्यक्त्वनी उत्पत्तिनुं कारण छे. तेम
ज, सम्यक्त्वनो उत्पाद थया वगर अने आत्मानी धु्रवता रह्या वगर जो मिथ्यात्वनो नाश थई जाय तो ते
मिथ्यात्वनो नाश थतां आत्मा ज कांई न रह्यो, एटले एकला व्ययनी मान्यतामां आत्मानो ज नाश थई
गयो, ने ए ज प्रमाणे जगतना बधा सत् पदार्थोनो तेनी मान्यतामां नाश थई जाय छे एटले के उत्पाद अने
मान्युं तेणे ते राग घटाडतां आत्माने ज घटाडी दीधो. राग केम घटे?–रागने घटाडवाना लक्षे राग न घटे पण
जो धु्रवतानुं अवलंबन ल्ये ने वीतरागभावनी उत्पत्ति थाय तो रागनो व्यय थाय छे.
पदार्थोनो ज नाश माने छे.–आवुं माननार जीव सर्वज्ञने, गुरुने, शास्त्रने, के ज्ञेयोनो स्वभावने मानतो नथी,
अने पोताना ज्ञानस्वभावी आत्माने पण ते मानतो नथी. देव–गुरु–शास्त्र ते बधाय आवी ज वस्तुस्थिति कहे
छे. ज्ञेयनो स्वभाव पण एवो ज छे ने आत्मानो स्वभाव तेने जाणवानो छे.–आवी वस्तुस्थिति छे ते समजवा
योग्य छे. ए समजे तो ज ज्ञानमां शांति अने वीतरागता थाय तेम छे. यथार्थ वस्तुस्थितिने समज्या वगर
(२) व्यय उत्पाद अने धु्रव विना नहि.
ए बे वात साबित करी. उत्पाद अने व्यय ए बंने धु्रव वगर होतां नथी–ए वात पण ते बे बोलमां