Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १५६ : : आत्मधर्म : ९१
व्ययने ओळंगी गयुं. पिंडना नाश वगर अने घडानी उत्पत्ति वगर माटीनी धु्रवता शेमां रहेशे? परिणाम वगर
परिणामी साबित ज नहि थाय. उत्पाद–व्यय वगर धु्रवने नक्की कोण करशे? धु्रव पोते धु्रवने नक्की नथी करतुं
पण नवी पर्यायनो उत्पाद अने जूनी पर्यायनो व्यय ते वडे धु्रव नक्की थाय छे.
‘आत्मा एकलो कूटस्थ–धु्रव छे’ एम कोई कहे, तो तेने पण–‘पहेलांं आत्माने कूटस्थ नहोतो मान्यो पण
परिणामी मान्यो हतो’–ते मान्यतानो नाश थयो, ने ‘आत्मा कूटस्थ छे’ एवी मान्यतानो उत्पाद थयो; ए रीते कूटस्थ
माननारमां पोतामां ज उत्पाद–व्यय आवी गया. एवा उत्पाद–व्यय वगर कूटस्थ माननारो ज सिद्ध नहि थाय.
कोई कहे के आपणे तो एकलुं धु्रव ज राखवुं छे, उत्पाद–व्यय नथी जोईता, तो ते एकला धु्रवने ज प्राप्त
करवा जनारने, उत्पाद–व्यय वगरनी धु्रवता ज नहि रहे, अथवा तो क्षणिक उत्पाद व्यय पोते ज धु्रव थई जशे.
जो एक वस्तु धु्रव न रहे तो जगतनी कोई वस्तु धु्रव न रहे. अथवा राग–द्वेष वगेरे जे क्षणिक विकल्प छे ते
पण धु्रव ज थई जशे, एटले क्षणे क्षणे थता विकल्पो ते ज द्रव्य थई जशे, ए मोटो दोष आवे छे.
वस्तु एकांत नित्य नथी पण वस्तु अनेकांत स्वरूप छे. वस्तु नित्य–अनित्यरूप, एक–अनेकरूप एवा अनेकांत
स्वरूपवाळी छे. वस्तुमां जो नवी पर्यायनो उत्पाद अने जूनी पर्यायनो व्यय नहि थाय तो तेनी अनित्यता अनेकता
ज साबित नहि थाय. अथवा क्षणिक उत्पाद–व्यय पोते ज धु्रव थई जशे, एटले समय समयनुं द्रव्य भिन्न भिन्न ज
ठरशे अने वस्तुने सर्वथा अनेकता ज थई जशे. एम थतां वस्तुनी सळंग एकता–नित्यता सिद्ध नहि थाय. माटे
अनेकांतमय वस्तुमां धु्रवपणुं नवा भावनी उत्पत्ति सहित तेम ज जूना भावना नाश सहित ज छे–एम मानवुं.
पहेलांंनी पर्यायनो व्यय, पछीनी पर्यायनो उत्पाद अने सळंग जोडाण अपेक्षाए धु्रवता–ए त्रणे साथे द्रव्य
अविनाभावी छे, एवुं द्रव्य अबाधितपणे उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप (त्रिलक्षणरूप) चिह्नवाळुं छे–एम अवश्य संमत करवुं.
व्याख्यान पछी–
अहीं उत्पादमां नवा भावनी उत्पत्ति करवी छे तेथी तेमां ‘सर्गने शोधनार’ एम भाषा वापरी छे.
व्ययमां वर्तमानभावनो नाश छे तेथी तेमां ‘संहारने आरंभनार’ एम भाषा वापरी छे. अने–
धु्रवमां जे छे तेनी स्थितिनी वात छे तेथी ‘स्थिति प्राप्त करवा जनार’ एम भाषा वापरी छे.–ए रीते
त्रणे बोलनी शैलीमां फेर पाडयो छे.
* * * * *
कारतक वद अमासना रोज स्वाध्याय होवाथी सवारे प्रवचनसारनुं व्याख्यान बंध हतुं.–
मागशर सुद १: रविवार (प्रवचनसार गाथा १००मीनो सार)
दरेक पदार्थमां एकेक समयमां उत्पाद–व्यय ने धु्रव छे. जो ते त्रणेने साथे न मानो तो तेमां दोष आवे छे;
ते दोष बतावीने उत्पाद–व्यय–धु्रवनुं अविनाभावीपणुं आ गाथामां द्रढ कर्युं छे.
[] जो एकलो उत्पाद ज मानो तो–
(१) जूनी पर्यायना व्यय वगर नवी पर्यायनी उत्पत्ति थशे नहि अथवा
(२) धु्रवना आधार वगर असत्नी उत्पत्ति थशे. माटे एक समयमां उत्पाद–व्यय–धु्रव त्रणे साथे होय
तो ज उत्पाद थाय.
[] जो एकला व्ययने ज मानो तो–
(१) नवी पर्यायना उत्पाद वगर जूनी पर्यायनो व्यय ज नहि थाय अथवा
(२) धु्रवपणुं रह्या वगर ज व्यय थशे तो सत्नो ज नाश थई जशे. माटे एक समयमां उत्पाद–व्यय–
धु्रव त्रणे साथे होय तो ज व्यय सिद्ध थाय.
[] उत्पाद–व्यय वगर एकला धु्रवने ज मानो तो–
(१) उत्पाद–व्ययरूप व्यतिरेक वगर धु्रवपणुं ज नहि रहे, अथवा
(२) एक अंश छे ते ज आखुं द्रव्य थई जशे. माटे उत्पाद–व्यय–धु्रव त्रणे एक समयमां साथे होय तो
ज धु्रवपणुं रही शके.
माटीमां घडो वगेरे कोई एक पर्यायना उत्पाद वगर अने पिंड वगेरे कोई एक पूर्व पर्यायना व्यय