भावोनी धु्रवता नहि रहे, बधुंय नाश थई जशे.
उत्पाद–व्यय ने धु्रव ए त्रणे एक साथे निर्विघ्नपणे द्रव्यमां छे एम संमत करवुं, निःसंदेह पणे नक्की करवुं.
एकलो उत्पाद, एकलो व्यय के एकलुं धु्रवपणुं ते द्रव्यनुं लक्षण नथी पण उत्पाद–व्यय ने धु्रव ए त्रणे एक साथे
ज द्रव्यनुं लक्षण छे एम जाणवुं.
एतस्योपासनोपायः साम्यमेकमुदाहृतम्।।
–आम कोणे कह्युं? केवळज्ञानरूपी दिव्यनेत्रो वडे समस्त पदार्थोने जाणनार तथा संसाररहित एवा सर्वज्ञ
भगवाने एक साम्यभावने ज शुद्धात्मानी उपासनानो उपाय कह्यो छे. आत्मानुं भान करीने तेमां ठरतां जेना
राग–द्वेष–अज्ञान तद्न टळी गया छे एवा सर्वज्ञभगवंतोए ज्ञानचक्षु वडे चौद ब्रह्मांडना भावोने प्रत्यक्ष जोया,
तेमां आत्मानी शांतिनो आ एक ज उपाय जोयो छे के साम्यभाव ते आत्मानी शांति छे. पहेलांं आत्मानी
सम्यक्श्रद्धा करवी ते पण साम्यभाव छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए त्रणे साम्यभाव छे,
अने ते ज शुद्ध आत्मानी उपासनानो उपाय छे.
पण ते खरेखर समता नथी, परंतु विषमता छे. ज्ञानमूर्ति आत्मस्वभावनुं भान थतां, पुण्य सारुं ने पाप
खराब–एवी पुण्य–पापमां विषमतानी द्रष्टि टळीने साम्यभाव प्रगटे तेनुं नाम समता छे. समताभाव कहो के
रस्तो एक साम्य ज छे, एम जोयुं छे.
स्वरूप नथी, हुं ते बंनेनो जाणनार छुं–एम जेणे भान कर्युं तेने ते बंनेमां चैतन्यना लक्षे समतानी प्रतीत छे.
समतानो अर्थ ज ज्ञातापणुं छे. मारो आत्मा ज्ञाता छे, कोई संयोगमां फेरफार करवानी मारी ताकात नथी अने
राग–द्वेष ते मारुं स्वरूप नथी, वस्तुमां जेम थाय तेनो हुं ज्ञाता ज छुं–आवी ज्ञानस्वभावनी प्रतीत प्रगटया
वगर कोईने साम्यभाव होय नहीं. शरीरमां नीरोगता हो के रोग हो, शत्रु हो के मित्र हो, शुभ हो के अशुभ हो
तेम ज जीवन हो के मरण आवो–ते बधामां हुं तो ज्ञाता ज छुं, एक ईष्ट अने बीजुं अनिष्ट एवुं मारा ज्ञानमां
नथी, आवी जेने प्रतीत थई छे तेने ते बधामां समता ज