Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १५८ : : आत्मधर्म : ९१
छे. अस्थिरताना अल्प राग–द्वेष थाय तो पण श्रद्धा–ज्ञानमां साम्यभाव टळतो नथी. सर्वज्ञभगवान जेवो ज
मारो ज्ञानस्वभाव छे, जगतनी बधी चीजनो हुं तो ज्ञाता–द्रष्टा छुं, जाणनार–देखनार चैतन्यस्वभाव सिवाय
जगतमां कोई चीज मारी नथी–आम जेने चैतन्यनी चिंता जागी छे अने चैतन्यना लक्षे ज्ञातापणे रहीने सर्वने
जाण्या करे छे तेने साची समता छे, ते ज धर्म छे, अने ते ज आत्मानी मुक्तिनो उपाय छे. ए सिवाय कोई पर
पदार्थमां कांई घालमेल करवानुं माने तो समताभाव रही शके नहि; केम के हुं परमां घालमेल करी शकुं–एम जेणे
मान्युं तेने पोतानी ईच्छा प्रमाणे परमां थाय त्यां मिथ्यात्वपूर्वकनो राग अने ईच्छा प्रमाणे न थाय त्यां
मिथ्यात्वपूर्वकनो द्वेष थया विना रहेशे नहीं.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के सर्वज्ञभगवाने एक साम्यभावने ज आत्मानी उपासनानो मार्ग कह्यो छे.
देव–गुरुनी सेवा करवी ते आत्मानी उपासनानो मार्ग छे–एम कह्युं नथी. पात्र जीवने साचा देव–गुरुनी
सेवानो शुभभाव भले हो; परंतु तेनो सरवाळो जो आत्मानी उपासनामां न फळे अने ते देव–गुरुनी सेवाना
रागमां ज धर्म मानीने अटकी जाय तो भगवान तेने शांतिनो रस्तो कहेता नथी; चैतन्यनी उपासना राग वडे
थती नथी. चैतन्यस्वभावनी सेवानो–उपासनानो रस्तो स्वभाव ज छे.
पहेलांं शुद्ध आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते सम्यग्दर्शन पण साम्यभाव छे. हुं
जगतनो साक्षी ज्ञाता छुं, जगत आखुं डूली जाय पण पोताना ज्ञातापणानो प्रतीत खसे नहि–एवो
सम्यग्द्रष्टिनो साम्यभाव छे. अने त्यार पछी स्वरूपमां विशेष एकाग्रता थतां ज्ञाताभाव अने वीतरागभाव
वधी जतां, राग–द्वेष पण न थाय–ते चारित्रदशानो साम्यभाव छे.
‘जीवित के मरणे नहि न्यूनाधिकता
भव मोक्षे पण शुद्ध वर्ते समभाव जो...’
–एमां तो चारित्रदशाना उत्कृष्ट समताभावनी वात छे. आत्माना अनुभवमां लीनता थतां एवो
ज्ञाताभाव प्रगटे के, आबरू ठीक के अनाबरू अठीक, जीवन रहे तो ठीक ने मरण अठीक, भव अठीक अने मोक्ष थाय
तो ठीक–एवो विकल्प पण न ऊठे. आवो साम्यभाव ते आत्मानी उपासनानो ने मोक्षनो उपाय छे, ए सिवाय
बीजो कोई उपाय नथी. पण एवी समता क्यारे आवे? पहेलांं नित्यानंद आत्माने जाण्यो होय तो तेमां
एकाग्रताथी जीवन–मरण वगेरेमां समताभाव रहे. परथी भिन्न आत्माना ज्ञानस्वभावने जेणे जाण्यो तेने ज्ञाननो
समताभाव प्रगट थया वगर रहे नहीं. ए समताभाव ते ज आत्मानी शांतिनो एकमात्र उपाय छे.
–महिका गाममां वैशाख सुद ४ ना रोज पद्म० एकत्व अधिकार गा. ६३ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन.
विद्यार्थीओ माटे श्री जैनदर्शन शिक्षण वर्ग
उनाळानी रजाओ दरमियान वैशाख सुद पांचम शुक्रवार ता. ११–५–५१
थी वैशाख वद अमास सोमवार ता. ४–६–५१ सुधीना २५ दिवस दरमियान
विद्यार्थीओने जैनदर्शनना अभ्यास माटे एक शिक्षणवर्ग खोलवामां आवशे.
१२ वर्षनी उपरना जैन भाईओने वर्गमां दाखल करवामां आवशे.
शिक्षणवर्गमां दाखल थनारने माटे भोजन तथा रहेवानी सगवड श्री जैन
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी थशे. आ शिक्षणवर्गमां दाखल थवा ईच्छा होय
तेमणे नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी अने ता. १०–५–५१ना रोज हाजर
थई जवुं (विद्यार्थीओए बिछानुं साथे लाववुं.)
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ : सौराष्ट्र
नोंध : आत्मधर्मना ९० मा अंकमां “वैशाख वद एकम सुधी” एम
भूलथी छपाई गयुं छे तेने बदले त्यां वैशाख वद अमास सुधी” समजी लेवुं.