मारो ज्ञानस्वभाव छे, जगतनी बधी चीजनो हुं तो ज्ञाता–द्रष्टा छुं, जाणनार–देखनार चैतन्यस्वभाव सिवाय
जगतमां कोई चीज मारी नथी–आम जेने चैतन्यनी चिंता जागी छे अने चैतन्यना लक्षे ज्ञातापणे रहीने सर्वने
जाण्या करे छे तेने साची समता छे, ते ज धर्म छे, अने ते ज आत्मानी मुक्तिनो उपाय छे. ए सिवाय कोई पर
मान्युं तेने पोतानी ईच्छा प्रमाणे परमां थाय त्यां मिथ्यात्वपूर्वकनो राग अने ईच्छा प्रमाणे न थाय त्यां
मिथ्यात्वपूर्वकनो द्वेष थया विना रहेशे नहीं.
सेवानो शुभभाव भले हो; परंतु तेनो सरवाळो जो आत्मानी उपासनामां न फळे अने ते देव–गुरुनी सेवाना
रागमां ज धर्म मानीने अटकी जाय तो भगवान तेने शांतिनो रस्तो कहेता नथी; चैतन्यनी उपासना राग वडे
थती नथी. चैतन्यस्वभावनी सेवानो–उपासनानो रस्तो स्वभाव ज छे.
सम्यग्द्रष्टिनो साम्यभाव छे. अने त्यार पछी स्वरूपमां विशेष एकाग्रता थतां ज्ञाताभाव अने वीतरागभाव
वधी जतां, राग–द्वेष पण न थाय–ते चारित्रदशानो साम्यभाव छे.
तो ठीक–एवो विकल्प पण न ऊठे. आवो साम्यभाव ते आत्मानी उपासनानो ने मोक्षनो उपाय छे, ए सिवाय
बीजो कोई उपाय नथी. पण एवी समता क्यारे आवे? पहेलांं नित्यानंद आत्माने जाण्यो होय तो तेमां
एकाग्रताथी जीवन–मरण वगेरेमां समताभाव रहे. परथी भिन्न आत्माना ज्ञानस्वभावने जेणे जाण्यो तेने ज्ञाननो
समताभाव प्रगट थया वगर रहे नहीं. ए समताभाव ते ज आत्मानी शांतिनो एकमात्र उपाय छे.
१२ वर्षनी उपरना जैन भाईओने वर्गमां दाखल करवामां आवशे.
शिक्षणवर्गमां दाखल थनारने माटे भोजन तथा रहेवानी सगवड श्री जैन
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी थशे. आ शिक्षणवर्गमां दाखल थवा ईच्छा होय
तेमणे नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी अने ता. १०–५–५१ना रोज हाजर
थई जवुं (विद्यार्थीओए बिछानुं साथे लाववुं.)