Atmadharma magazine - Ank 091
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १४५ : : आत्मधर्म : ९१
अहो! पोताना
पुनित प्रभाव द्वारा
जेमणे अनेक सुमुमुक्षुओ
ने मोक्षमार्गमां प्रेर्या छे...
अने भ्रष्ट थता अनेक
जीवोने वात्सल्यपूर्वक
फरी सन्मार्गमां द्रढपणे
स्थापित कर्या छे.....एवा
आ त्रिकाल मंगळस्वरूप
पवित्र आत्मा पू.
गुरुदेवना पुनति
शरणमां रहीने अपूर्व
आत्मकल्याणनी उपासना
करतां मुमुक्षुजनोनां हैया
आनंदथी अति उल्लसित
थाय छे अने शिर
तेओश्रीना चरणमां झूकी
जाय छे.
*
हे कृपानिधि, पू.
गुरुदेव! आप आत्मार्थी
जीवोना हृदयना आराम
अने जीवनना आधार
छो.....ऊंडा ऊंडा अंधारे
भटकता अनेक जिज्ञासु
जीवोने कल्याणमार्गनी
केडी आपना ज पुनित
प्रतापे सांपडी छे....अम–
मुमुक्षुओना जीवनमां
आपनो परम उपकार
छे... सर्व मंगल प्रसंगोमां
आपनो ज महान उपकार
छे....आप अमारा
आत्मउद्धारक छो...तेथी
अमारा अंतरमांथी
पोकार ऊठे छे के–
‘स्वस्ति श्री सद्गुरवे’
*
“चैतन्यभानुनो उदय”:
(वैशाख सुद २)
(१) आजे, भव्यजीवोरूपी कमलने विकसावनारा चैतन्य भानुनो उदय थयो...
(२) सूर्य उदय पामीने रात्रिना अंधकारनो नाश करे ते पहेलांं तो–अज्ञानअंधकारनो नाश करनारा
चैतन्यभानुनो उदय थयो...
(३) भव्यजीवोना संसार–समुद्रने सूकवी नाखनारा उग्र चैतन्यभानुनो उदय थयो...
(४) अज्ञान–अंधकारमां आथडता जीवोने मुक्तिमार्गना प्रकाशक चैतन्यभानुनो उदय थयो...
(५) जैनशासनरूपी आकाशमां एक झळहळता चैतन्यभानुनो उदय थयो...
हे साधर्मी बंधुओ...!
(१) चालो! ए चैतन्यभानुना दिव्यकिरणोने झीलीने आत्मकमलने विकसावीए...
(२) चालो! ए चैतन्यभानुना दिव्य तेजने झीलीने अज्ञान–अंधकारने मिटावीए...
(३) चालो! ए चैतन्यभानुना दिव्य प्रतापने झीलीने भवसमुद्रने सूकवी नाखीए...
(४) चालो! ए चैतन्यभानुना दिव्य प्रकाशमां मुक्तिमार्गे गमन करीए...
(५) चालो! ए चैतन्यभानुथी जैनशासनने दीपावीए......