नवतत्त्वनी श्रद्धा न थाय त्यां सुधी एकरूप आत्मानी श्रद्धा थाय नहि; अने जो नव तत्त्वनी पृथक् पृथक्
श्रद्धाना रागनी रुचिमां अटके तोपण एकरूप आत्मानी श्रद्धा–सम्यग्दर्शन–थाय नहि.
माने; पुण्यने पुण्य तरीके जाणे, पुण्यथी धर्म न माने तेम ज जडनी क्रियाथी पुण्य न माने; पापने
पापरूप जाणे, ते पाप बाह्यनी क्रियाथी थाय छे एम न माने; आस्रवने आस्रवरूपे जाणे, पुण्य अने
पाप ए बंने आस्रव छे, एने संवरनुं कारण न माने, तेम ज पाप अठीक ने पुण्य ठीक एवो भेद
परमार्थे न माने; वळी संवर तत्त्वने संवररूप जाणे, संवर ते धर्म छे, पुण्यथी के शरीरनी क्रियाथी ते
संवर थतो नथी पण आत्मस्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान, स्थिरताथी ज संवर थाय छे; निर्जरा एटले
शुद्धतानी वृद्धि ने अशुद्धतानो नाश, तेने निर्जरा समजे; ते निर्जरा बाह्य क्रियाकांडथी न थाय पण
आत्मामां एकाग्रताथी थाय; बंधतत्त्वने बंध तरीके जाणे; विकारमां आत्मानी पर्याय अटके ते
भावबंधन छे; ‘खरेखर कर्मो आत्माने बांधे छे ने कर्मो आत्माने रखडावे छे’–एम न माने पण जीव
पोताना विकारभावथी बंधायो छे ने तेथी ते रखडे छे–एम समजे. नवमुं मोक्षतत्त्व छे; आत्मानी तद्न
निर्मळदशा ते मोक्ष छे, एम जाणे. –आ प्रमाणे जाणे त्यारे तो नवतत्त्वोने जाण्या कहेवाय. आ नवतत्त्वो
छे ते अभूतार्थनयनो विषय छे, अवस्थाद्रष्टिमां नव भेद छे; तेनी प्रतीति करवी ते व्यवहारश्रद्धा छे;
तेनाथी धर्मनी उत्पत्ति नथी पण पुण्यनी उत्पत्ति छे. ए नवतत्त्वनी ओळखाणमां, साचा देव–गुरु–शास्त्र
कोण तथा खोटा देव–गुरु–शास्त्र कोण तेनी ओळखाण पण आवी जाय छे. आ नवतत्त्वनी श्रद्धा ते हजी
परमार्थ सम्यग्दर्शन नथी. नवतत्वने जाण्या पछी परमार्थ सम्यग्दर्शन क्यारे थाय ते वात आचार्यदेव
आ गाथामां करे छे.
वात छे. व्यवहारश्रद्धामां नवतत्त्वनी प्रसिद्धि छे पण परमार्थश्रद्धामां तो एकला भगवान आत्मानी ज
प्रसिद्धि छे. नवतत्त्वना विकल्पथी पार थईने एकरूप ज्ञायकमूर्तिनो अनुभव करे तेणे भूतार्थनयथी
नवतत्त्वोने जाण्या कहेवाय, अने ते ज नियमथी सम्यग्दर्शन छे. आवुं सम्यग्दर्शन प्रगट कर्या वगर कोई
रीते जीवना भवभ्रमणनो अंत आवे नहि.
सम्यग्दर्शन छे. नव–तत्त्वोने सम्यग्दर्शननो विषय कहेवो ते व्यवहारनुं कथन छे, खरेखर सम्यग्दर्शननो
विषय भेदरूप नथी पण अभेदरूप ज्ञायक आत्मा ज छे. मोक्षशास्त्रमां ‘
तत्त्वार्थश्रद्धान कहेवाय छे. अखंड चैतन्य–वस्तुनो आश्रय करतां भूतार्थनयथी एकपणुं प्राप्त थाय छे.
जेमां निमित्तनी अपेक्षा नथी ने भेदनो विकल्प नथी