केवो छे ते नक्की न करे तेनामां त्रिकाळ स्वयंसिद्ध स्वतंत्र वस्तुनी श्रद्धा करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करवानी त्रेवड
होई शके नहि.
धर्म नहि थाय. तेम ज, अवस्थामां ते विकार पोताना अपराधथी थाय छे एम जो नहि जाणे तो ते
विकारने टाळवानो प्रसंग केम बनशे? जीवनी अवस्थामां जेवा परिणामनी योग्यता होय तेवो तेवो आस्रवादि
भाव थाय छे–एम आचार्यदेवे कह्युं एटले शरीरादि बहारनी क्रियाथी आस्रव थाय ए वात ऊडाडी दीधी. जीव–
अजीवना पर्यायनी आटली स्वतंत्रता कबूल करे त्यारे नवतत्त्वने व्यवहारे कबूल्या कहेवाय.
गुणनी तेवी ज लायकात छे एम पण आवी जाय छे, ज्ञाननी तेवुं ज जाणवानी लायकात छे, चारित्रमां तेवा ज
परिणमननी लायकात छे. एटले पर सामे जोवानुं नथी रहेतुं पण पोतानी लायकात सामे जोवानुं रह्युं. अने जो
एकेक समयनी स्वतंत्रता नक्की करे तो परना आश्रयनी मिथ्याबुद्धि छूटी जाय, तेम ज एक समयनी पर्यायनी
योग्यता जेटलुं मारुं आखुं स्वरूप नथी–एम नक्की करीने एक समयनी पर्यायनो आश्रय छोडीने त्रिकाळी
स्वभाव तरफ वळ्या वगर रहे नहि. ‘पर्यायनो आश्रय छोडवो’ एम, समजाववा माटे कहेवाय पण खरेखर तो
अखंड द्रव्य तरफ वळतां पर्यायनो आश्रय रहेतो ज नथी. हुं पर्यायनो आश्रय छोडुं एवा लक्षे पर्यायनो आश्रय
छूटतो नथी.
थाय छे–एम पण नथी, त्यां जीवनी पोतानी वर्तमान योग्यता छे. समये समये कर्मनां जे रजकणो आवे ते
विकारना प्रमाणमां ज आवे एवो निमित्त–नैमित्तिक मेळ होवा छतां विकारने कारणे ते रजकणो नथी आवतां.
बंनेनो तेवो ज स्वभाव छे. जेम कांटाना एक पल्लामां शेर मूको अने सामे बराबर एक शेर वस्तु आवे त्यारे
कांटो सरखो थाय, तेवो ज तेनो स्वभाव छे, तेमां तेने ज्ञाननी जरूर नथी. तेम जड कर्मोने कांई खबर नथी के
आ जीवे आटलो विकार कर्यो माटे तेनी पासे जउं, पण तेनी पोतानी योग्यताथी ज ते कर्मरूपे परिणमी जाय छे.
विकारना प्रमाणमां ज कर्मो आवे तेवो तेनो स्वभाव छे. आ प्रमाणे जाणीने, आस्रवरहित शुद्धआत्मानी श्रद्धा
करवी ते प्रयोजन छे. आ जाणीने पण शुद्ध आत्मानी श्रद्धा कर्या वगर कदी धर्म थाय नहि.
थाय छे. पण अहीं संवरतत्त्व कई रीते प्रगटे ते वात नथी बताववी, अहीं तो मात्र संवरतत्त्व छे एटलुं ज
सिद्ध करवुं छे. संवर केम प्रगटे ते वात पछी बतावशे. जड कर्म खसे तो सम्यग्दर्शनादि थाय–एम परतंत्रता
नथी, सम्यग्दर्शनादि थवानी लायकात जीवनी पोतानी छे. अंर्तस्वभावमां एकता थतां जे संवर–निर्जराना
शुद्ध अंशो उघडे ते तो अभेदआत्मामां भळी जाय छे, पण ज्यारे नवतत्त्वना भेदथी विचार करे त्यारे जीवनी
पर्यायनी योग्यता छे–एम कहे छे, तेमां द्रव्य पर्यायनो भेद पाडीने कथन छे. नवतत्त्वना भेद पाडीने संवर
पर्यायने लक्षमां लेवा जतां कर्मना निमित्तनी अपेक्षा आवे छे, एकला अभेद स्वभावनी द्रष्टिमां तो ते भेद
पडता नथी, संवरनी निर्मळ पर्याय प्रगटी ते अभेदमां ज भळी जाय छे.