पडे नहि, तेम ज एकला अजीवतत्त्वने ज लक्षमां ल्यो तो पण साततत्त्वना भेद न पडे. जीवने अने अजीवने
एकबीजानी अपेक्षाए अवस्थामां सात तत्त्वो थाय छे,–ते बंनेनी अवस्थामां सात तत्त्वरूप परिणमन थाय छे.
जीवमां सात तेम ज अजीवमां पण सात भेद पडे छे. ते सात तत्त्वोनुं लक्ष छोडीने एकला चैतन्यतत्त्वने ज
अभेदपणे लक्षमां लेतां तेमां सात प्रकार पडता नथी ने सात प्रकारना विकल्प ऊठतां नथी, पण निर्मळ पर्याय
थईने अभेदमां भळी जाय छे.
ज छे अथवा एकला जड पदार्थो ज छे एम माने, अथवा जड चेतन बंनेनी अवस्था स्वतंत्र न माने, तो तेने
नवतत्त्वोनी यर्थाथ मान्यता होई शके नहि. नवतत्त्वोने मानवा तेमां तो व्यवहारवीर्य छे–शुभ विकल्पनुं अल्प
वीर्य छे अने पछी अनंत वीर्य चैतन्यद्रव्य तरफ वळे त्यारे एक शुद्ध आत्मानी प्रतीति थाय छे. नवतत्त्वनी
प्रतीत करतां, अभेद चैतन्यतत्त्वनी प्रतीति करवामां जुदी ज जातनो बेहद पुरुषार्थ छे. परंतु, जेनामां एक
पाई देवानी पण त्रेवड नथी ते अबजो रूपिया क्यांथी भरी शकशे? तेम जे कुदेवादिने माने छे तेनामां
नवतत्त्वनी श्रद्धानी पण ताकात नथी, जयां नवतत्त्वनी श्रद्धानी पण ताकात नथी त्यां ते जीव अभेद
आत्मानी श्रद्धा अने अनुभव क्यांथी करी शकशे? अने ते विना तेने धर्म के शांति थशे नहीं.
अवस्थामां ज्यारे निर्मळ सम्यग्दर्शनादि भाव प्रगटतां अशुद्धता अटकी जाय त्यारे अजीव परमाणुओमां पण
कर्मरूप परिणमन थतुं नथी; आने संवर कहेवाय छे. जीवमां संवररूप थवानी योग्यता छे ने अजीव परमाणुओ
तेमां निमित्त होवाथी तेने संवर करनार कहेवाय छे.
अटकी गया–एम नथी. ते परमाणुओ आववाना ज न हता तेथी न आव्या. परमाणुओमां कर्मरूप परिणमन
थवानुं हतुं पण जीवमां शुद्ध भाव प्रगटवाने लीधे ते परिणमन अटकी गयुं–एम नथी. ते परमाणुओमां पण ते
वखते कर्मरूप थवानी योग्यता ज न हती. शास्त्रोमां तो अनेक प्रकारनी शैलीथी कथन आवे पण वस्तुस्वरूप शुं
छे ते लक्षमां राखीने तेनो आशय समजवो जोईए. पहेलांं विकार वखते कर्मपरमाणुओ आवता हता अने हवे
संवरभाव प्रगट्यो ते वखते कर्मपरमाणुओ नथी आवता ते बताववा तेने संवर कह्यो छे.
संवरभाव प्रगट्यो त्यां तेने कर्मो आववाना होय ज नहि, पुद्गलमां ते वखते तेवुं परिणमन होयज नहि,
एटले आववा योग्य न हता ते परमाणुओने संवरमां निमित्त कह्युं, अर्थात् पुद्गलमां कर्मरूप परिणमनना
अभावने संवरमां निमित्त कह्युं.
निर्जराभाव प्रगटे ते टाणे कर्मो खरी जाय छे ते अजीव निर्जरा छे तेमां अजीवनी योग्यता छे. जीव अने अजीव
बंनेमां पोतपोतानी निर्जरानी योग्यता छे. आत्मस्वभावनी द्रष्टि अने एकाग्रता वडे चैतन्यनी शुद्धता थतां
अशुद्धता टळी ते जीवनी पोतानी लायकात छे अने ते वखते निमित्त तरीके कर्मो तेना कारणे स्वयं टळ्यां छे.
आत्माए कर्मोने हण्यां–एम कहेवुं ते मात्र निमित्तनुं कथन छे,