Atmadharma magazine - Ank 092
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ: २४७७ आत्मधर्म : १७५:
शास्त्रमांथी, भगवाननी मूर्तिमांथी, तीर्थमांथी के छेवटे शुभरागमांथी ते धर्म लेवा मागे छे, पण ए तो बधुं
परद्रव्योनुं आलंबन छे, अने परद्रव्योनुं आलंबन तो आत्माने अशुद्धतानुं ज कारण छे, भगवाननी वाणीनुं के
साक्षात् भगवाननुं पोतानुं आलंबन पण आ आत्माने अशुद्धतानुं कारण छे, छतां जे जीव तेनाथी आत्माने
लाभ थवानुं माने छे ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे, अधर्मी छे.
[] रुस्त्र ि, ल् रु
जो के जिज्ञासुने पहेलांं साचा देव–गुरु–शास्त्र उपर लक्ष जाय छे तेमनी भक्ति–बहुमान वगेरेनो
शुभराग थाय छे, परंतु तेनुं अवलंबन कांई कल्याणनुं खरुं कारण नथी, ते परना अवलंबने तो राग ज थाय
छे. कल्याणनुं खरुं कारण तो पोताना ध्रुवस्वभावनुं अवलंबन करवुं ते ज छे. जेने आवी समजण नथी ने
एकला परना ज आलंबनमां रोकाईने धर्म माने छे तेने कदी धर्म थतो नथी. साचा देव–गुरु–शास्त्रना
आलंबने पण धर्म थतो नथी तो पछी कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रने माने तेनी तो वात शुं करवी? कुदेव–कुगुरु–
कुशास्त्रने मानीने तेना आलंबनमां जे रोकाणा छे तेने तो सदाय मिथ्यात्वनुं ज ध्यान होय छे, ते क्षणेक्षणे
मिथ्यात्वने सेवीने तेनी पुष्टि करे छे. जे आत्मा सर्वज्ञ नथी ने रागी छे एवाने जे देव तरीके माने ते जीवे
पोताना आत्माने पण रागरहित जाण्यो नथी अने तेने रागरहित आत्मस्वभावमां एकाग्रता थती नथी, पण
ते रागमां ज एकाग्र रहे छे. जेणे रागीने देव मान्यो तेणे ते रागी करतां पण पोतानी दशा हलकी स्वीकारी,
एटले तेने तेना मानेला देव करतांय हेठली दशा (–तीव्र राग) थाय छे. परना अने विकारना कर्तृत्वथी रहित,
पूर्ण ज्ञानमय वीतरागी दशा जेनी थई नथी तेवा आत्माने देव तरीके जे माने ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे, केम के
जेणे सर्वज्ञदेवने जाण्या नथी तेणे आत्मानो रागरहित ज्ञानस्वभाव केवो होय ते पण जाण्यो ज नथी.
सर्वज्ञदेवनुं स्वरूप शुं छे? ते सर्वज्ञताने साधनारा संतोनी दशा केवी छे? अने ते सर्वज्ञदेव तथा संत गुरुओनी
अनेकांतवाणीमां शुं वस्तुस्वरूप कह्युंं छे? तेने पहेलांं ओळख्या वगर तो धर्म थाय नहि. तेम ज ते साचा देव–
गुरु–शास्त्रना परलक्षमां ज रोकाय त्यां सुधी पण धर्म थाय नहि, परलक्षे पुण्यनी उत्पत्ति थाय छे. ज्यारे ते
परलक्ष छोडीने, तेमणे कहेला पोताना शुद्धात्मा तरफ वळीने ते शुद्धात्मानुं ज आलंबन करे त्यारे धर्म थाय छे.
पहेलांं साचा देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये लक्ष, बहुमान वगेरे होय छे पण एटलुं करवामां कोई धर्म मानी ल्ये तो तेम
नथी. प्रथम जेने धर्मना साचा अने खोटा निमित्तनो (देव–गुरु–शास्त्रनो) ज विवेक नथी ते जीव तो निमित्तनुं
लक्ष छोडीने स्वभावनुं लक्ष करी शकशे नहि, ने तेने धर्म थशे नहि.
[७] सत् – असत् निमितनो विेक अने ध्रुवउपादानुं अवलंबन
जेना भावमां सत्–असत्नो विवेक जाग्यो होय तेने निमित्तमां पण सत्–असत्नो विवेक होय ज.
आत्माना धर्ममां क्या निमित्त योग्य छे ने क्या निमित्त अयोग्य छे एनो जेने विवेक नथी तेने तो
शुद्धआत्मानो विवेक होतो ज नथी. मारा स्वभावधर्ममां कयुं निमित्त ठीक छे ने कयुं निमित्त अठीक छे–एम
नक्की करीने कुदेवादि असत् निमित्तोनुं सेवन तो छोडे, ए उपरांत, सुदेवगुरु आदि सत् निमित्तो के कुदेव–कुगुरु
आदि असत् निमित्तो ए बधाय मारा आत्माथी पर द्रव्य छे ने ए बधा पर द्रव्यनुं लक्ष मने अशुद्धतानुं कारण
छे–आम नक्की करीने, समस्त परद्रव्योनुं आलंबन छोडतां तथा आत्मस्वभावनुं आलंबन करतां शुद्ध
आत्मानी श्रद्धा तथा शुद्ध आत्मानुं ध्यान थाय छे, ने मोह नाश पामे छे. आ रीते मोहना नाशनो उपाय ध्रुव
आत्माना आधारे ज थाय छे. जो के साधकने वच्चे शुभराग आव्या विना रहेतो नथी पण ते रागना कारणे
शुद्धता के मोहक्षय थतो नथी. साचा देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे शुभराग थाय तेनाथी पण आत्माना चैतन्यप्राण
पीडाय छे, तेथी ते राग पण सम्यग्दर्शननुं कारण नथी.
परंतु, ‘निमित्तना लक्षे राग थाय छे, धर्म थतो नथी’ आ उपरथी कोई जीव एम ऊंधुंं ल्ये के आपणे
सद्गुरु वगेरे निमित्तनुं शुं प्रयोजन छे? ज्ञानीना निमित्त वगर मारी मेळे हुं आत्माने समजी गयो.–तो एम
कहेनार स्वच्छंदी ज छे, केम के पोते सत् समजवा तैयार थाय त्यारे सामे पण सद्गुरु वगेरे सत् निमित्त होय
ज. सत् निमित्त सिवाय बीजुं निमित्त न होय. निमित्तनुं निमित्त तरीके ज्ञान करवुं जोईए; तेने बदले कोई