Atmadharma magazine - Ank 093
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: १९२: आत्मधर्म: ९३
[२२] आत्मानुं वर्तन केम सुधरे?
लोको कहे छे के ‘वर्तन सुधारो.’ पण वर्तन एटले शुं? देहनी क्रियामां आत्मानुं वर्तन नथी. वर्तन
एटले देहनी क्रिया नहि पण आत्माना अंतरना भाव छे. जेवो शुद्ध आत्मा छे तेने समजीने तेमां एकाग्रपणे
वर्तवुं ते ज साचुं वीतरागी वर्तन छे. अने शुद्ध आत्माने न समजतां विकारमां ज एकाग्रपणे वर्तवुं ते ऊंधुंं
वर्तन छे. ज्यां पोताना पूर्ण शुद्ध चैतन्यस्वभावने ज ज्ञाननुं ज्ञेय कर्युं अने तेनी श्रद्धा करी त्यां ज्ञान अने
श्रद्धानुं वर्तन तो सुधरी गयुं–अर्थात् ज्ञान अने श्रद्धा सम्यक् थया. चारित्रना वर्तनमां अमुक विकार होय छतां
ते विकारपरिणाम वखते पण श्रद्धा–ज्ञानने शुद्ध स्वभाव तरफ वाळीने तेनुं वर्तन सुधारी शकाय छे; ने एम
करवाथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे. पर्यायमां विकार होवा छतां ते ज वखते ते विकारने मुख्य करीने तेमां
श्रद्धा–ज्ञानने वाळवा ते ज विधिवडे शुद्धात्मा जणाय छे ने अपूर्व कल्याणनी शरूआत थाय छे.
आत्मा त्रिकाळ छे, तेमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ए त्रण मुख्य गुणो छे, तेनी पर्यायमां मलिनता छे.
अनादिथी पराश्रये ऊंधुंं परिणमन हतुं ते स्वभावनां आश्रये सवळुं थाय छे. चारित्रमां कांईक विपरीतता होवा
छतां श्रद्धां–ज्ञान शुद्ध स्वभाव तरफ वळीने शुद्ध आत्माने श्रद्धा–ज्ञानमां ल्ये छे. आ ज शुद्ध आत्माने जाणवानी
विधि छे. आ विधिथी जे शुद्धात्माने जाणे छे तेने ज आत्मानी शुद्धता प्रगटे छे.
[२३] साची सामायिक अने प्रतिक्रमण कोने होय?
सामायिक एटले समतानो लाभ थवो ते; ते सामायिक क्यारे थाय? आत्माना त्रिकाळ स्वभावमां
ज्ञान–आनंद छे, एवा त्रिकाळी स्वभावने जाणीने तेमां जे लीन थाय तेने आत्मानो आनंद प्रगटे छे ने
रागद्वेषना अभावरूप वीतरागी समता होय छे ते ज सामायिक छे. एवी ज सामायिकने भगवाने धर्म अने
मोक्षनुं कारण कह्युं छे. तथा ते जीव मिथ्यात्व–अविरति वगेरे पापथी पाछो फर्यो तेथी तेने प्रतिक्रमण पण थई
गयुं. आवी साची सामायिक अने साचुं प्रतिक्रमण शुद्ध आत्मानी समजण वगर कोई जीवने होय नहीं.
[२४] मोक्षार्थीने मुक्तिनो उल्लास [बळदनुं द्रष्टांत]
आत्माए अनंतकाळथी एक सेकंड पण पोताना स्वभावने लक्षमां लीधो नथी, तेथी तेनी समजण कठण
लागे छे ने शरीरादि बाह्य क्रियामां धर्म मानीने मनुष्यभव मफतमां गुमावे छे. जो आत्मस्वभावनी रुचिथी
अभ्यास करे तो तेनी समजण सहेली छे, स्वभावनी वात मोंघी न होय. दरेक आत्मामां समजवानुं सामर्थ्य छे.
पण पोतानी मुक्तिनी वात सांभळीने अंदरथी उल्लास आववो जोईए, तो झट समजाय. जेम बळदने ज्यारे
घेरथी छोडीने खेतरमां काम करवा लई जाय त्यारे तो धीमे धीमे जाय ने जतां वार लगाडे; पण ज्यारे खेतरना
कामथी छूटीने घरे पाछा वळे त्यारे तो दोडता दोडता आवे. केम के तेने खबर छे के हवे कामना बंधनथी छूटीने
चार पहोर सुधी शांतिथी घास खावानुं छे, तेथी तेने होंश आवे छे ने तेनी गतिमां वेग आवे छे. जुओ, बळद
जेवा प्राणीने पण छूटकारानी होंश आवे छे. तेम आत्मा अनादि काळथी स्वभाव–घरथी छूटीने संसारमां रखडे
छे; श्रीगुरु तेने स्वभाव–घरमां पाछो वळवानी वात संभळावे छे. पोतानी मुक्तिनो मार्ग सांभळीने जीवने जो
होंश न आवे तो ते पेला बळदमांथी ये जाय! पात्र जीवने तो पोताना स्वभावनी वात सांभळतां ज अंतरथी
मुक्तिनो उल्लास आवे छे अने तेनुं परिणमन स्वभावसन्मुख वेगथी वळे छे. जेटलो काळ संसारमां रखड्यो
तेटलो काळ मोक्षनो उपाय करवामां न लागे, केम के विकार करतां स्वभाव तरफनुं वीर्य अनंतु छे तेथी ते अल्प
काळमां ज मोक्षने साधी ल्ये छे. पण ते माटे जीवने अंतरमां यथार्थ उल्लास आववो जोईए.
[२प] मोक्षार्थीने मुक्तिनो उल्लास [वाछरडानुं द्रष्टांत]
श्री परमात्म–प्रकाशमां पशुनो दाखलो आपीने कहे छे के मोक्षमां जो उत्तम सुख न होत तो पशु