Atmadharma magazine - Ank 093
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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अषाढ: २४७७ : १९३ :
पण बंधनमांथी छूटकारानी ईच्छा केम करत? जुओ, बंधनमां बंधायेल वाछरडाने पाणी पावा माटे
बंधनथी छूटो करवा मांडे त्यां ते छूटवाना हरखमां कूदाकूद करवा मांडे छे; अहा! छूटवाना टाणे ढोरनुं बच्चुं पण
होंशथी कूदका मारे छे–नाचे छे. तो अरे जीव! तुं अनादि अनादिकाळथी अज्ञानभावे आ संसारबंधनमां
बंधायेलो छे, अने हवे आ मनुष्यभवमां सत्समागमे ए संसारबंधनथी छूटवाना टाणां आव्या छे. श्री
आचार्यदेव कहे छे के अमे संसारथी छूटीने मोक्ष थाय तेवी वात संभळावीए अने ते सांभळतां जो तने
संसारथी छूटकारानी होंश न आवे तो तुं पेला वाछरडामांथी पण जाय तेवो छे! खुल्ली हवामां फरवानुं ने छूटा
पाणी पीवानुं टाणुं मळतां छूटापणानी मोज माणवामां वाछरडाने पण केवी होंश आवे छे! तो जे समजवाथी
अनादिना संसारबंधन छूटीने मोक्षना परम आनंदनी प्राप्ति थाय–एवी चैतन्यस्वभावनी वात ज्ञानी पासेथी
सांभळतां क्या आत्मार्थी जीवने अंतरमां होंश ने उल्लास न आवे? अने जेने अंतरमां सत् समजवानो
उल्लास छे तेने अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहीं. पहेलांं तो जीवने संसारभ्रमणमां मनुष्यभव अने
सत्नुं श्रवण ज मळवुं बहु मोंघुं छे. अने कवचित् सत्नुं श्रवण मळ्‌युं त्यारे पण जीवे अंतरमां विचार करीने,
सत्नो उल्लास लावीने, अंतरमां बेसार्युं नहि, तेथी ज संसारमां रखड्यो. भाई, आ तने नथी शोभतुं! आवा
मोंघा अवसरे पण तुं आत्मस्वभावने नहि समज तो क्यारे समजीश? अने ए समज्या वगर तारा
भवभ्रमणनो छेडो क्यांथी आवशे? माटे अंदरथी उल्लास लावीने सत्समागमे साची समजण करी ले.
[२६] जिज्ञासा
जीव अज्ञानने लीधे अनादिकाळथी अवतारमां बळदनी जेम दुःखी थई रह्यो छे; छतां तेनाथी छूटवानी
जिज्ञासा पण मूढ जीवने थती नथी. नाना गामडामां एक खेडूत पूछतो हतो के ‘महाराज! आत्मा अवतारमां
रझडे छे, ते रझडवानो अंत आवे ने मुक्ति थाय एवुं कंईक बतावो!’ आवो जिज्ञासानो प्रश्न पण कोईकने ज
ऊठे छे. आवा मोंघां टाणां फरी फरीने मळता नथी, माटे जिज्ञासु थई, अंतरमां मेळवणी करीने साचुं
आत्मस्वरूप शुं छे ते समजवुं जोईए; केम के जे शुद्ध आत्माने ओळखे छे ते ज शुद्धात्मानी प्राप्ति करे छे.
प्रौढ वयना गृहस्थो माटे–
श्री जैनदर्शन–शिक्षणवर्ग
अगाउनी माफक आ वर्षे श्रावण सुद २ (ता. ४–८–प१)
शनिवारथी शरू करीने श्रावण वद १० (ता. २६–८–प१) रविवार
सुधी, सोनगढमां श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी
तत्त्वज्ञानना अभ्यास माटे एक जैनदर्शन शिक्षणवर्ग खोलवानुं
नक्की कर्युं छे. खास प्रौढ उंमरना जिज्ञासु भाईओ माटे आ वर्ग
खोलवामां आव्यो छे. जे मुमुक्षु भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर
सोनगढ (सौराष्ट्र)