होंशथी कूदका मारे छे–नाचे छे. तो अरे जीव! तुं अनादि अनादिकाळथी अज्ञानभावे आ संसारबंधनमां
बंधायेलो छे, अने हवे आ मनुष्यभवमां सत्समागमे ए संसारबंधनथी छूटवाना टाणां आव्या छे. श्री
संसारथी छूटकारानी होंश न आवे तो तुं पेला वाछरडामांथी पण जाय तेवो छे! खुल्ली हवामां फरवानुं ने छूटा
पाणी पीवानुं टाणुं मळतां छूटापणानी मोज माणवामां वाछरडाने पण केवी होंश आवे छे! तो जे समजवाथी
अनादिना संसारबंधन छूटीने मोक्षना परम आनंदनी प्राप्ति थाय–एवी चैतन्यस्वभावनी वात ज्ञानी पासेथी
सांभळतां क्या आत्मार्थी जीवने अंतरमां होंश ने उल्लास न आवे? अने जेने अंतरमां सत् समजवानो
उल्लास छे तेने अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहीं. पहेलांं तो जीवने संसारभ्रमणमां मनुष्यभव अने
सत्नुं श्रवण ज मळवुं बहु मोंघुं छे. अने कवचित् सत्नुं श्रवण मळ्युं त्यारे पण जीवे अंतरमां विचार करीने,
सत्नो उल्लास लावीने, अंतरमां बेसार्युं नहि, तेथी ज संसारमां रखड्यो. भाई, आ तने नथी शोभतुं! आवा
मोंघा अवसरे पण तुं आत्मस्वभावने नहि समज तो क्यारे समजीश? अने ए समज्या वगर तारा
रझडे छे, ते रझडवानो अंत आवे ने मुक्ति थाय एवुं कंईक बतावो!’ आवो जिज्ञासानो प्रश्न पण कोईकने ज
ऊठे छे. आवा मोंघां टाणां फरी फरीने मळता नथी, माटे जिज्ञासु थई, अंतरमां मेळवणी करीने साचुं
सुधी, सोनगढमां श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी
तत्त्वज्ञानना अभ्यास माटे एक जैनदर्शन शिक्षणवर्ग खोलवानुं
नक्की कर्युं छे. खास प्रौढ उंमरना जिज्ञासु भाईओ माटे आ वर्ग
खोलवामां आव्यो छे. जे मुमुक्षु भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी.