: १९४: आत्मधर्म: ९३
पुण्य अने धर्म
(जैनदर्शन शिक्षणवर्गनी परीक्षामां पहेलां प्रश्नना उत्तररूप निबंध)
घणा अज्ञानी जीवो पुण्य अने धर्म ए बंनेने एक ज चीज माने छे, पण खरेखर तो पुण्य अने धर्म
बंने जुदी जुदी चीज छे. धर्म तो आत्माना आश्रये थाय छे ने पुण्य परना आश्रये थाय छे; धर्मनुं फळ मोक्ष छे
ने पुण्यनुं फळ संसार छे; धर्म ते आत्मानो शुद्ध भाव छे ने पुण्य तो अशुद्धभाव छे.
धर्म ए आत्मानी निर्दोष निर्विकारी पर्याय छे, धर्मथी आत्माने साचुं सुख मळे छे, धर्म त्रिकाळी
आत्माना आधारे थाय छे, विकार के परपदार्थना लक्षे धर्म थतो नथी. पण अज्ञानी जीव पुण्यमां अने
बहारनी क्रियामां धर्म माने छे, ते अज्ञानी जीव धर्मनुं स्वरूप समजतो नथी. धर्म तो वीतरागभाव छे. पुण्य
ते रागभाव छे.
पुण्य तो आ जीव अनादि काळथी करतो आव्यो छे, पण जीवे धर्म तो अनादिकाळमां एक समयमात्र
पण कर्यो नथी. पुण्यथी तो बहारनी सामग्री मळे छे ज्यारे धर्मथी तो आत्मानी केवळज्ञानरूपी लक्ष्मी मळे छे.
पुण्य तो अज्ञानी अने अभव्य जीव पण करे छे पण तेने आत्माना भान वगर धर्म जरापण थतो नथी.
जेओ सिद्ध थया छे अने खरुं सुख पाम्या छे तेओ धर्मथी ज खरुं सुख पाम्या छे. पुण्यथी धर्म थतो
नथी तेम ज तेनाथी खरुं सुख मळतुं नथी, पुण्यथी तो बंधन थाय छे ने बंधन तो संसारपरिभ्रमणनुं ज
कारण छे.
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ते आत्मानी दोष वगरनी अविकारी पर्याय छे, तेने
मोक्षमार्ग कहो, संवर कहो, धर्म कहो, रत्नत्रय कहो के आत्मानी शांतिनो उपाय कहो, –जे कहो ते एक ज छे.
परंतु ए सिवाय पुण्य तो विकारी पर्याय छे, तेथी पुण्य ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी, पुण्य ते संवर नथी, पुण्य ते
धर्म नथी, पुण्य ते रत्नत्रय नथी, पुण्य ते आत्मानी शांतिनो उपाय नथी.
जेम एक लींडीपीपर होय तेने ६४ पहोर घसवाथी जे तीखास आवे छे ते लींडीपीपरमां अप्रगटपणे
हती ते ज प्रगट थई छे, ते तीखास क्यांय बहारमांथी एटले के पत्थरमांथी के हाथमांथी आवती नथी. तेम
आत्मामां धर्म (–शांति) शक्तिरूपे भरपूर छे, तेनी ओळखाण–श्रद्धा, ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवाथी ते प्रगटे
छे. ए धर्म क्यांय बहारमांथी एटले के देहनी क्रिया के पैसा वगेरेमांथी आवतो नथी. जेम लींडीपीपरनी
तीखास लींडीमांथी आवे छे तेम मात्मानी धर्मरूपी तीखास आत्माना स्वभावमांथी ज आवे छे, पुण्यमांथी के
पर पदार्थोमांथी ते आवती नथी. पुण्य अने धर्मनुं स्वरूप जुदुं जुदुं जे रीते छे ते रीते ओळखवुं जोईए.
भगवाने नव तत्त्वो कह्या छे–जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बंध संवर, निर्जरा अने मोक्ष,
आमांथी संवर अने निर्जरा तत्त्वमां धर्मनो समावेश थाय छे. पण पुण्यतत्त्वमां कांई धर्मनो समावेश थतो
नथी. अज्ञानीओ पुण्यथी धर्म माने छे. जेओ पुण्यथी धर्म माने छे तेओ पुण्यतत्त्वने अने संवर–निर्जरातत्त्वने
एक ज माने छे, एटले तेओ खरेखर नव तत्त्वने समज्या नथी. अने तेथी तेओए सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवानने
के ज्ञानीने पण खरेखर मान्या नथी. माटे जिज्ञासुओए पुण्य अने धर्म ए बंनेने जुदा जुदा जाणवा जोईए.