आत्माने जाणवा माटे प्रथम नव तत्त्वोनुं ज्ञान करवुं जोईए. ते नव तत्त्वोमां प्रथम जीव अने अजीव ए बे
जातनां तत्त्वो अनादिअनंत छे, कोईए तेने बनाव्यां नथी ने तेनो कदी नाश थतो नथी. जीव अने अजीव ए
बे स्वतंत्र तत्त्वो छे अने ते बेना संबंधे बंनेनी अवस्थामां सात तत्त्वो थाय छे. आत्मामां पोतानी योग्यताथी
पुण्य, पापादि सात प्रकारनी अवस्था थाय छे ने तेमां निमित्तरूपे अजीवमां पण ते सात प्रकार पडे छे.
वर्तमान अवस्थामां जो भावबंधन न होय तो आनंदनो प्रगट अनुभव होवो जोईए. पण आनंदनो प्रगट
अनुभव नथी केम के ते पोतानी पर्यायमां विकारना भावबंधनथी बंधायेलो छे. स्फटिकना ऊजळा स्वच्छ
स्वरूपमां जे राती–काळी झांई पडे छे ते तेनुं मूळ स्वरूप नथी पण स्फटिकनो विकार छे, उपाधि छे, तेम जीवनो
स्वच्छ चैतन्यस्वभाव छे, तेनी अवस्थामां जे पुण्य–पापना भाव थाय छे ने तेनुं स्वरूप नथी पण विकार छे,
बंधन छे; विकारभाव ते जीव–बंध छे ने तेमां निमित्तरूप जडकर्मो छे ते अजीव–बंध छे. ए रीते जीव–अजीव
बंनेनी अवस्था भिन्न भिन्न छे. जो पर निमित्तनी अपेक्षा वगर एकला आत्माना स्वभावथी विकार थाय तो
तो ते स्वभाव थई जाय, ने कदी टळी शके नहीं. पण विकार ते जीवनी अवस्थानी क्षणिक योग्यता छे ने तेमां
द्रव्यकर्म निमित्तरूप छे. निमित्तना लक्षे विकार थाय छे, स्वभावना लक्षे विकार के बंधनभाव थतो नथी.
कर्मो तेनी मेळे छूटी गया. जीव अने अजीव ए बे त्रिकाळी तत्त्वो छे तेने, तेम ज तेनी पर्यायमां सात तत्त्वरूप
परिणमन थाय छे तेने, –नवे तत्त्वोने ओळखवा जोईए.
अवस्था प्रगटे तेने मोक्ष कहे छे तेम ज अजीव कर्मो छूटी जवारूप पुद्गलनी अवस्थाने पण मोक्ष कहेवाय छे.
मोक्षतत्त्वने जाणी लीधुं तेथी मोक्ष थई जतो नथी, पण मोक्ष वगेरे नवे तत्त्वोने जाण्या पछी ते भेदनो आश्रय
छोडी अंतरना अभेदस्वभावना आश्रये मोक्षदशा प्रगटे छे.