तेनुं निमित्त नथी.
छे. अनादिना सनातन जैनमार्गने विषे आजे धर्मना मंगळ दिवसो शरू थाय छे. पण खरेखर पोताना
आत्मामां धर्मनी शरूआत क्यारे थाय? के जेवो आत्मस्वभाव सर्वज्ञभगवाने कह्यो छे तेवो पोतानो
आत्मस्वभाव ओळखे तो पोतामां धर्मनी शरूआत थाय. आ प्रथम सम्यग्दर्शनधर्मनी वात चाले छे, आत्माना
स्वभावने ओळखवानी वात चाले छे.
निर्मळ भाव प्रगटे ते ज आत्मानी क्रिया छे, ते ज धर्म छे. एवी धर्मक्रियानी आ वात चाले छे. आत्मा तो
ज्ञायक चैतन्यज्योत छे, आनंदकंद निर्विकारीमूर्ति छे, एवो जे ज्ञायकभाव ते ज जीव छे; तेनामां नवतत्त्वना
भेद नथी. पण तेनी अवस्थामां बीजी अजीवचीजना लक्षे सात भंग पडे छे तेनुं निमित्त अजीव छे. आत्मा
ज्ञायक चैतन्य छे ते तो शुद्ध जीव छे, ज्यारे ते ज्ञायक चैतन्यस्वभावनो अनुभव न रहे त्यारे तेनी अवस्थामां
अजीवना निमित्ते सात भंग पडे छे. ने निमित्त–रूप अजीवमां पण सात भंग पडे छे. अहीं जीव अने अजीवने
जुदा राखीने ते बंनेमां सात सात भंग बतावे छे. एक तरफ शुद्ध जीव जुदो राख्यो, सामे अजीव सिद्ध कर्युं;
जीवने स्वभावथी ज्ञायक सिद्ध कर्यो ने अजीवने विकारना हेतु तरीके जणाव्युं. एकला जीवस्वभावना लक्षे
वीतरागभावनी उत्पत्ति थाय छे ने सात तत्त्वना लक्षे तो रागरूप विकल्पनी उत्पत्ति थाय छे.
बंध अने मोक्ष एवा साते तत्त्वोना विकल्प शुद्ध जीवना लक्षे उत्पन्न थता नथी पण निमित्त कर्मना लक्षे उत्पन्न
थाय छे तेथी ते साते तत्त्वोने अहीं विकार कह्या छे. ते सात तत्त्वना लक्षे एकरूप चैतन्यआत्मा द्रष्टिमां के
अनुभवमां आवतो नथी. अने एकाकार ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिमां ने अनुभवमां सात तत्त्वना भंगभेदना
विकल्पो उत्पन्न थता नथी.
पण रागनी उत्पत्ति थाय छे ने ते रागमां अजीव निमित्त छे. संवर, निर्जरा ने मोक्ष ते आत्मानी निर्मळ पर्याय
छे पण ते त्रण पर्यायनो भेद पाडीने तेनो आश्रय करवा जतां विकारनी ज उत्पत्ति थाय छे, तेना आश्रयमां
चैतन्यनी शांति उत्पन्न थती नथी, माटे ते तत्त्वोने पण विकार कह्यां छे.
अभेदना आश्रये ज संवर–निर्जरा टके छे ने ते अभेदना आश्रये ज संवर–निर्जरा वधे छे. अभेद स्वभावना
आश्रये ज मोक्षमार्ग छे. संवर–निर्जरारूप पर्यायना लक्षे ते संवर–निर्जरा प्रगटता नथी, टकता नथी ने वधता
नथी, पण ते पर्यायना लक्षे तो रागनी उत्पत्ति थाय छे; माटे एकरूप चैतन्यस्वभावनी द्रष्टि अने अनुभव
सिवाय सात तत्त्वना विचारो करवा ते विकार छे. पुण्य–पाप वगेरे सात तत्त्वो एकला जीवनी अवस्थामां थाय
छे ने तेना हेतुभूत सात तत्त्वो एकला अजीवनी अवस्थामां थाय छे.–ए प्रमाणे जीव–अजीवनुं स्वतंत्र
परिणमन छे.
प्रगट्या पछी